सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

एतदद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय | अहं कृत्स्नस्य जगत : प्रभव : प्रलयस्तथा ||

 एतदद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय | 

अहं कृत्स्नस्य जगत : प्रभव : प्रलयस्तथा ||   

सम्पूर्ण प्राणियों के  उत्पन्न होने में अपरा और परा -इन दोनों प्रकृतियों का संयोग ही  कारण  है -ऐसा तुम समझो। मैं सम्पूर्ण जगत का प्रभव तथा प्रलय हूँ। 

व्याख्या : अनंत ब्रह्माण्डों में स्थावर -जंगम ,थलचर -जलचर-नभचर ,जरायुज -अंडज -स्वेदज -उद्भिज्ज ,मनुष्य ,देवता ,गंधर्व ,पितर ,पशु ,पक्षी ,कीट ,पतंग आदि जितने भी प्राणी देखने -सुनने -पढ़ने में आते हैं ,वे सब अपरा और  परा -इन दोनों के माने हुए हुए संयोग से ही उत्पन्न होते हैं। अपरा और परा का संयोग ही सम्पूर्ण  संसार का बीज है। 

मैं सम्पूर्ण जगत का प्रभव तथा प्रलय हूँ -इससे   भगवान् का तात्पर्य है कि  मैं ही सम्पूर्ण संसार को उत्पन्न करने वाला हूँ और मैं ही उत्पन्न होने वाला हूँ ,मैं ही नाश करने वाला और मैं ही नष्ट होने  वाला हूँ ; क्योंकि मेरे सिवाय संसार का अन्य कोई भी कारण तथा कार्य नहीं है। मैं ही इसका निमित्त(Intelligent or Efficient Cause ) और उपादान कारण (Material Cause ) हूँ। 

भगवान् ही जगद रूप से प्रकट हुए हैं। यह जगत भगवान् का आदि अवतार है -'आद्योवतार :   पुरुष : परस्य '(श्रीमद्भगवद्गीता २/६ /४१ ) .आदि  अवतार    होने से जगत नहीं है ,केवल भगवान् ही है।

शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन : ||

उद्धरेदात्मनात्मानं   नात्मानमवसादयेत | 

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव  रिपुरात्मन :  || 

अपने द्वारा अपना उद्धार करें , अपना पतन न करें क्योंकि आप ही अपना मित्र हैं  और आप ही अपना शत्रु हैं । 

व्याख्या :गुरु बनना या बनाना गीता का सिद्धांत नहीं है। वास्तव में मनुष्य आप ही अपना गुरु है। इसलिए अपने को ही उपदेश दे अर्थात  दूसरे में कमी न देखकर अपने में ही कमी देखे और उसे मिटाने की चेष्टा करे। भगवान् भी विद्यमान हैं ,तत्व ज्ञान भी विद्यमान है और हम भी विद्यमान हैं ,फिर उद्धार में देरी क्यों ? नाशवान व्यक्ति ,पदार्थ और क्रिया में आसक्ति के कारण ही उद्धार में देरी हो रही है। इसे मिटाने की जिम्मेवारी हम पर ही  है ; क्योंकि हमने ही  आसक्ति की है। 

पूर्वपक्ष: गुरु ,संत और  भगवान् भी तो मनुष्य का उद्धार करते हैं ,ऐसा लोक में देखा जाता है ?

उत्तरपक्ष : गुरु ,संत और भगवान् भी मनुष्य का तभी उद्धार करते हैं ,जब वह (मनुष्य )स्वयं उन्हें स्वीकार करता है अर्थात उनपर श्रद्धा -विश्वास करता है ,उनके सम्मुख होता है ,उनकी शरण लेता है ,उनकी आज्ञा का पालन करता है। गुरु ,संत और भगवान् का कभी अभाव नहीं होता ,पर अभी तक हमारा उद्धार नहीं हुआ तो इससे सिद्ध होता है कि हमने ही उन्हें स्वीकार नहीं किया। जिन्होनें उन्हें स्वीकार किया उन्हीं का उद्धार हुआ। अत : अपने उद्धार और पतन में हम ही हेतु हुए।