इस देश में चंद नामचीन कुनबे तमाम संविधानिक संस्थाओं से अपने आप को ऊपर मान बैठे हैं। इनके उकील भी ऐसी ही भाषा बोलते हैं। भारतधर्मी समाज इन्हें कुंबाई उकील मानता है। कुनबे ये बदलते रहते हैं अपने सिब्बल साहब को ही लीजिये पहले ये नेहरुवंशीय अवशेष के उकील थे अब मुलायम कुनबे के। इस या उस कुनबे का आश्रय इन्हें चाहिए।
बक़ौल आदरणीय सिब्बल साहब -"मुझे सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं है,पचास सालों के मेरे अनुभव का आज मेरा यही निचोड़ है "होगी नाउम्मीदी आपको ये आपकी समस्या है - ज़नाब आपके अपने विचार हैं। सुप्रीम कोर्ट नीरक्षीर विवेकी संस्था है।
शीतलवाड़ों से लेकर छद्म गांधियों तक उसने न्याय दिया सबको। तथ्यों की विवेचना के आधार पर.
ज़नाब सिब्बल किसी ऊंचे आसन पे अपने आपको बैठा मान समझ रहे हैं जिनकी निगाह में अपेक्स कोर्ट एक ऐसा बच्चा है जिससे उन्हें अब कोई उम्मीद नहीं रह गई है। स्वयं घोषित माईबाप ऐसा सोचेँ किसी को क्या एतराज हो सकता है बहरसूरत ये बड़बोलापन कोर्ट की अवमानना के तहत आता है भारत धर्मी समाज की आस्थाओं विश्वासों पर भी प्रहार है। उन्हें ऐसे अनर्गल प्रलाप से बचना चाहिए। राम मंदिर मामले में तीस्ता शीतल वाड़ के मामले में आप के अनुकूल कुछ न हो सका। चौकीदार बेदाग़ निकल आया है। इसका आपको लगता है राहुल और उनकी अम्मा से ज्यादा अफ़सोस है। हुआ करे।
शीषक :कुंबाई उकील साहब