रविवार, 28 जनवरी 2018

गाय का संरक्षण भारतीय संस्कृति का ही नहीं खेती किसानी का भी संरक्षण साबित हो सकता है। यहां एक साथ ट्रेकर और बैलों से जुताई का काम हो सकता है। छोटी जोत वालों की हैसियत से बाहर ही रहा आया है ट्रेकटर। हिन्दुस्तान में किसी भी चीज़ को कम करने की ज़रूरत नहीं है संशाधनों के विकल्प बढ़ाते जाने की है।

भाई रणवीर सिंह जी ने भारतीय नस्ल की गाय के संरक्षण के लिए ट्रेकटर के उपयोग को और बढ़ावा न देकर बैलों की जोड़ी द्वारा  हल चलाने की परम्परा की ओर  लौटने की बात की है। उनकी इस बात में जान है के आज भी भारत के अंदरूनी इलाकों में खेत जोतने का यह तरीका काम कर रहा है। मैं इससे सहमत हूँ दिल्ली से गोहाटी तक की रेलयात्रा में ही नहीं दिल्ली से केरल प्रदेश की यात्रा में भी ,दिल्ली चैन्नई ,दिल्ली मुंबई की यात्राओं में भी मैंने यही नज़ारा देखा है।चैन्नई से बंगलुरु और चैन्नई से पुडुचेरी यात्रा में यही देखा है। चैन्नई से तिरुपति यात्रा में भी।केरल के कन्नूर से ऊटी और उससे और  आगे भी दृश्य यही है। 

  परम्परा आकर्षित ही नहीं करती संरक्षण भी प्राप्त करती है अमरीका जैसे विकसित राष्ट्रों में जहां ऑर्गेनिक फार्म्स भी हैं ऑर्गेनिक खेती भी है उत्पाद भी हैं। किसानों से उपभोक्ता सीधे उत्पाद खरीदता है खेत में जाकर ,फारमर्स मार्किट में जाकर। 

गाय का संरक्षण भारतीय संस्कृति का ही नहीं खेती किसानी का भी संरक्षण साबित हो सकता है। यहां एक साथ ट्रेकर और बैलों से जुताई का काम हो सकता है। छोटी जोत वालों की हैसियत से बाहर ही रहा आया है ट्रेकटर। हिन्दुस्तान में किसी भी चीज़ को कम करने की ज़रूरत नहीं है संशाधनों के विकल्प बढ़ाते जाने की है। 

पर्यावरण की नव्ज़ भी गाय से जुड़ी  है। आखिर ट्रेकटर डीज़ल से ही चलता है बैल को डीज़ल पिलाने की जरूरत नहीं पड़ती है। पर्यावरण का मित्र है बैल। जलवायु का  ढ़ांचा इस दौर में टूटने के संकेत देने लगा है कोरल बीचिज़ का  सौंदर्य 

तेज़ी से विलुप्त होने लगा है उन क्षेत्रों से जो पर्यटन का केंद्र कोरल से ही बने थे। ध्रुवों पे बर्फ भी उतनी नहीं गिर रही है आइस शीट ओज़ोन कवच की तरह दुबला रही है। 

गाय इसके और क्षय को रोक सकती है अपने कर्मठ बेटों (बैलों )के योगदान को केंद्र में लाकर। गाय  बचेगी तभी उसका कुनबा बढ़ेगा। अभी तो दोनों को खतरा है। 

शनिवार, 27 जनवरी 2018

संविधानिक संस्थाओं को तोड़ने का श्री गणेश इन्हीं राहुल की दादी साहिबा कर गईं थी। लेकिन इस बीच सरयू में काफी पानी बह चुका है -बिल्ली को फिर भी खाब में छिछड़े ही नज़र आ रहे हैं। खुदा खैर करे। ईश्वर इन नासमझो की भी हिफाज़त करे। जैश्रीकृष्णा जयश्रीराम जयहिंद की सेना प्रणाम ,जयभारत जय जय भारत जय तुझे सलाम।

गणतंत्र दिवस की परेड में मेहमानों ,मंत्रियों सांसदों को आदर पूर्वक बिठाने का एक क्रम होता है। इत्तेफाक से वर्तमान लोकसभा में कोई भी पार्टी नेता प्रतिपक्ष का दर्ज़ा  पाने लायक सांसद न प्राप्त कर सकी.   क्योंकि कोई भी विपक्षी दल कुल लोकसभा सदस्यों की संख्या का दस फीसद भी प्राप्त नहीं कर सका।

लिहाज़ा मायावती से राहुल तक सबका कद बराबर आंका जाना हर लिहाज़ से उचित ही कहा  जाएगा।यह कांग्रेस (सोनिया )का अंदरूनी मामला है के पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए इस देश की सबसे पुरानी कही समझी जाने वाली पार्टी को (जिसे मातृ पार्टी भी एक मायने में कहा जा सकता है क्योंकि कालान्तर में अनेक लोग इससे छिटक कर अलग हुए और नए राजनीतिक दल अस्तित्व  में आये  )एक भी सभ्रांत योग्य सर्वस्वीकार्य गैर -जमानती व्यक्ति नहीं मिला। हमारा पार्टी के इस अंदरूनी मामले से कोई लेना देना नहीं है लेकिन उस भुक्तान करके लगवाई गई खबर  से ज़रूर लेना देना है जिसके मुताबिक़ राहुल विन्ची (गांधी  तो वह कहीं से हैं नहीं न जन्म से न संस्कार से ,वर्ण संकर हम उन्हें कहना नहीं चाहते क्योंकि  अभी भी वह इस मामले में फ्लक्स में ही हैं )को राजपथ पर छटी कतार में बिठाना गैर -वाज़िब बतलाया गया।

अगर नेशनल हेराल्ड मामले से आप पाक साफ़ छूट जाते हैं और २०१९ में कोई कमाल कर दिखाते हैं तो ज़रूर आपको आगे की पंक्ति में बिठाने में हमें भी ख़ुशी होगी अभी तो आपके दल को पूर्व राष्ट्रपति भी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का केन्द्रक बतला रहे हैं। जिसकी कोख से पूर्व में प्रसूत जनेऊ (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय )पनप रहें हैं जो कन्हैया तत्व की पीठ थपथपा रहें हैं। नामशेष हो गए रक्तरंगियों के साथ दुरभि संधि करके वर्तंमान मुख्यन्यायाधीश पर महाभियोग लगाने का दिवास्वप्न देख रह हैं ये जानते हुए के मुंह की खायेंगे -लेकिन आज ये लोग गु खाकर  भी देश तोड़ने को तैयार हैं इनके पाले हुए कई आचार्य छात्रों को छद्म तरीके से बीफ(गौ मांस ) भरे हुए सैनविच परोसवा रहें हैं।

संविधानिक संस्थाओं को तोड़ने का श्री गणेश इन्हीं राहुल की दादी साहिबा कर गईं थी। लेकिन इस बीच सरयू में काफी पानी बह चुका है -बिल्ली को फिर भी खाब में छिछड़े ही नज़र आ रहे हैं। खुदा खैर करे। ईश्वर इन नासमझो की भी हिफाज़त करे। जैश्रीकृष्णा जयश्रीराम जयहिंद की सेना प्रणाम ,जयभारत जय जय भारत जय तुझे सलाम। 

FDA Panel Gives Qualified Support To Claims For 'Safer' Smoking Device(HINDI )

एक्स स्मोकर होने के नाते हमारा ऐसा मानना है ये जो ऐबदार शौक की चीज़ें होतीं हैं यहां फिसलन बहुत है। मैं कोरोनरी बाई पास ग्रेफ्टिंग से गुज़र चुका हूँ। रेड वाइन/वाइट वाइन  को लेकर भी हृदय रोगों के माहिर एक मत नहीं हैं मुझे चोटी के माहिरों से अनुदेश लेते रहने का सौभाग्य  प्राप्त है एस्कॉर्ट्स -फोर्टिस -एम्सआदि  -मायोट  होस्पिअटल चैन्नई के एक विशेषज्ञ ने मुझसे कहा -शर्मा साहब मैं ने अपनी  चालीस साला प्रेक्टिस में कभी भी किसी मरीज़ को वाइन लेने के लिए प्रेरित नहीं किया है वजह इसकी ये है आप कब वाइन से खुलकर रम पर आ जायेंगे इसका कोई निश्चय नहीं। 
बड़ी अजीब बात है जब आप जानते हैं के बीफ (गौ मांस )अनेक जीवन शैली रोगों की वजह बनता है तब यह निहायत बे -वक़ूफ़ी की बात है के आप इसको कम-हानिकारक पदार्थ बनाने के उपाय करें। धूम्रपान के मामले में भी यही बात लागू होती है ये सब बिक्री को बढ़ाने के हथ-कंडे होते हैं उस दौर में जब हम ग्रीन एनर्जी और पर्यावरण  -अपनी हवा पानी मिट्टी की गुणवत्ता को लेकर चिंतित हैं जलवायु परिवर्तन की आहट से आहत ही नहीं हैं अप्रत्याशित विनाश लीलाएं भी देख रहें हैं अपने बढ़ते कार्बन  फुटप्रिंट की वजह से  .ये पृथिवी भी एक ही है और हवा पानी मिट्टी भी इसकी सांझी है -फेफड़े सभी के पर्यावरण की तरह नाजुक हैं एक सिगरेट पीता है दूसरा उसे और उसके शौक के परिणाम भुगतता है सोशल टॉलरेंस के नाम पर। 
काहे भाई युवा भीड़ ,किशोर -वृन्द  को लती पदार्थ निकोटिन को आज़माने की बात कह रहे हो इस बिना पे के इससे उतनी हानि नहीं है। चस्का आज़माने का मौक़ा इसी युवा के पास है जो लत में कब बदल जाए इसका कोई निश्चय नहीं बस पहली सिगरेट सुलगाने की देर है। आगे आप सभी समझदार हैं जैसा आप उचित समझे माने बूझे गुने। 
A tobacco product that its maker claims to be safer than cigarettes won qualified support from a Food and Drug Administration advisory panel Thursday.
The advisers voted 8-1 to support cigarette giant Philip Morris' claim that its "iQOS"system "significantly reduces your body's exposure to harmful or potentially harmful chemicals." The device heats tobacco but doesn't ignite it.
But on the question of whether that approach translates into a reduction in the risk for tobacco-related diseases, the panel said the tobacco company's studies didn't demonstrate that. The vote was eight against, with one abstention.
Similarly, they said Philip Morris hadn't proved that reducing harmful exposure would necessarily "translate to a measurable and substantial reduction in morbidity and/or mortality." The vote was 5-2 against, with one abstention.
There was some support for the company's claims that "switching completely to iQOS presents less risk of harm than continuing to smoke cigarettes." But the measure failed on a vote of 4-5 against.
The FDA doesn't have to follow the advisory panel's advice but usually does.




During the two-day hearing, the company presented claims that iQOS poses less danger because the device heats tobacco, instead of igniting it, to produce an aerosol that contains 90 percent lower levels of dangerous chemicals than found in cigarette smoke.
If the agency grants the company's request and approves the product, iQOS would become the first tobacco product authorized by the FDA to be marketed as causing less harm than regular cigarettes.
Advocates and some smoking-cessation counselors urged the committee to endorse the product to make an alternative they consider to be safer available to millions of U.S. smokers. But some anti-smoking advocates question whether the device really is safer and fear it could hook more people on nicotine, including children.
Philip Morris argued the device would be exclusively marketed to smokers and estimates the iQOS could save 90,000 lives over 20 years in the United States.
"IQOS emits toxicants and is not risk-free," Manuel Peitsch, Philip Morris' chief scientific officer, said on the opening day of the hearing. "Nevertheless, iQOS emits significantly lower levels of toxicants than regular cigarettes. Switching to iQOS can significantly reduce the risk of disease compared to regular smoking."
The device could be more appealing to many smokers than electronic cigarettes because the iQOS heats tobacco instead of a liquid containing nicotine. That gives the user more of the taste and experience of regular cigarettes, the company argues.
Critics, however, questioned Philip Morris's safety claims.
"I think the whole thing is a scam," said Stanton Glantz, a prominent anti-smoking advocate at the University of California, San Francisco, to NPR before the hearing. "When you look at the actual evidence that Philip Morris has submitted to the FDA, it doesn't support the claim that these things are any better than cigarettes in terms of health effects in people."
Glantz noted that the tobacco industry has a long history of selling products that it claimed were safer, such as cigarettes marketed as "light," "mild" or "low-tar," that turned out to be just as dangerous.
"What we're seeing is just a replay of the old light and mild scam," Glantz said.
One study conducted in Switzerland found that while the iQOS produces many toxic chemicals at lower levels than cigarette smoke, some are higher than the company claims. Philip Morris disputes that research.
Some of the chemicals found are components of smoke, the researchers say. "We found lower concentrations of these compounds; however, we found them. And because we found them, we think this is smoke," Reto Auer, an assistant professor at the University of Bern in Switzerland who conducted the study, said in an interview before the hearing. "We disagree with the claim that it's smokeless. People should be aware there are still toxic substances in the iQOS."
Auer and Glantz's concerns were echoed by several people who spoke during a public comment period on the second day of the hearing.
The iQOS looks suspiciously similar to the most popular e-cigarettes among children, Matthew Myers, president of the Campaign for Tobacco-Free Kids, told the committee.
"It is high-tech. It is sleek. It is designed in exactly the way that would appeal to young people," Myers told the committee.
If the iQOS were approved, it could hook children and teenagers on nicotine, reversing the progress that has been made to reduce smoking among young people, Myers fears.
But most of the speakers at the hearing urged the committee to recommend approval to give smokers a potentially safer alternative to cigarettes. More than 36 million Americans currently smoke.
"There is no health threat that compares to smoking," said Hank Campbell, president of the American Council on Science and Health. "Even though we have been opposed to smoking for 40 years, we support these devices."
"Patients who smoke clearly need more tools to help them quit," said Jeff Fortenbacher, president and CEO of Access Health in Muskegon, Mich.
In an interview before the hearing, Jonathan Foulds, a professor of public health sciences and psychiatry at Penn State University, agreed.
"I think it's a step in the right direction for tobacco companies to be developing products that have the probability of being significantly less harmful than conventional cigarettes," Foulds says.
Philip Morris is already selling iQOS in more than 30 countries and argued there was no evidence it was enticing children to use the product or start smoking. In fact, the company said, cigarette smoking had dropped dramatically since the device was introduced in Japan.
The iQOS consists of several parts. One part is called a "heatstick," which is made from compressed wads of tobacco. If approved, three versions would be sold: Marlboro HeatSticks, Marlboro Smooth Menthol HeatSticks and Marlboro Fresh Menthol HeatSticks.
The iQOS device is reusable, but the heatsticks are not.
Users would insert a heatstick into a holder that has a blade that penetrates the middle of the tobacco wad. When the user presses a button, the blade heats the tobacco to temperatures only capable of producing an aerosol that contains nicotine, according to the company.
The tobacco never gets hot enough to combust, according to Philip Morris. Burning tobacco produces far greater levels of potential toxic substances than just heating it, the company says. The devices stay on for six minutes or 14 puffs, whichever comes first, before shutting off automatically.
Philip Morris hasn't said how much the device would cost in the United States. But in Japan, the device sells for about $80, and a pack of heatsticks costs about the same as a pack of cigarettes.
The FDA advisory committee's recommendation Thursday pertains only to the company's claims about the safety of the product. Philip Morris would still have to get the FDA to sign off on a separate application to actually sell the devices in the United States for the first time.
The hearing comes after the FDA announced plans to eventually reduce the amount of nicotine in regular cigarettes in the hopes of weaning more Americans off cigarettes. As part of that effort, the FDA has said the agency hopes to offer more alternative sources of nicotine that would be safer than cigarettes.
Separately, the FDA has begun reviewing the safety of electronic cigarettes. Those devices heat fluid containing nicotine to produce a vapor that users inhale. E-cigarettes have become increasingly popular, especially among young people. The growth in use has alarmed many public health experts.
While e-cigarettes may be safer than regular cigarettes, experts say e-cigarettes aren't completely safe and fear they are hooking a new generation of children on nicotine and acting as a gateway to traditional cigarettes.
https://www.npr.org/sections/health-shots/2018/01/25/580213742/fda-panel-gives-qualified-support-to-claims-for-safer-smoking-device?utm_source=npr_newsletter&utm_medium=email&utm_content=20180125&utm_campaign=breakingnews&utm_term=nprnews

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

दोस्तों इस कथानक को पढ़कर आपको ऐसा ज़रूर लगेगा के संजय लीला भंसाली की फिल्म का शीर्षक पद्मावत क्यों रखा गया अलाउद्दीन खिलजी का पाश्चाताप क्यों नहीं रखा गया। जिसके हाथ सिर्फ आखिर में शहीद प्रेमियों की राख ही लगती है और जो अपने लम्पट मन की गुलामी करते -करते आखिर में ग्लानि से भर आता है और कहता है मनुष्य की वासनाएं अन्नत हैं स्थाई हैं इनका कोई अंत नहीं जबकि ये कायनात खुदा की यह सृष्टि एक मृगमरीचका है माया है छलना है। अफ़सोस यह जान ने से पहले ही वह सुपुर्दे ख़ाक हो जाता है। वह अपनी जीत पर पाश्चाताप करता है। पद्मिनी और नागमणि और राजा रत्न सेन की ख़ाक उसकी मुठ्ठी में होती है।

दोस्तों इस कथानक को पढ़कर आपको ऐसा ज़रूर लगेगा के संजय लीला भंसाली की फिल्म का शीर्षक  पद्मावत क्यों रखा गया अलाउद्दीन खिलजी का पाश्चाताप क्यों नहीं रखा गया। जिसके हाथ सिर्फ आखिर में शहीद प्रेमियों की राख ही लगती है और जो अपने लम्पट  मन की गुलामी करते -करते आखिर में  ग्लानि से भर आता है और कहता है मनुष्य की वासनाएं अन्नत हैं स्थाई हैं इनका कोई अंत नहीं जबकि ये कायनात खुदा की यह सृष्टि एक  मृगमरीचका है माया है छलना है। अफ़सोस यह जान ने से पहले ही वह सुपुर्दे ख़ाक हो जाता है। वह अपनी  जीत पर पाश्चाताप करता है। पद्मिनी और नागमणि और राजा रत्न सेन की ख़ाक उसकी मुठ्ठी में होती है।

"Queen Nagmati rashly asks her new parrot who is more beautiful, she or his former owner Princess Padmini of Sri Lanka. Naturally, she gets a displeasing answer." An illustrated manuscript of Padmavat, c. 1750[1]
Padmavat (or Padmawat) is an epic poem written in 1540 by Sufi poet Malik Muhammad Jayasi,[2] who wrote it in the Hindustani language of Awadhi,[3][4] and originally in the Persian Nastaʿlīq script.[5] It is the oldest extant text among the important works in Awadhi.[6] A famous piece of Sufi literature from the period, it relates an allegorical fictional story about the Delhi Sultan Alauddin Khalji's desire for the titular Rani Padmini, the Queen of Chittor.[7] Alauddin Khalji and Padmini's husband Ratan Sen are historical figures, whereas Padmini is a fictional character, though this is disputed.[8]

Plot[edit]

Rani Padmini, the princess of the Singhal kingdom, is close friends with the talking parrot Hiraman. Her father disapproves of their closeness, and orders the parrot to be killed. The parrot flies away to escape the punishment, but is captured by a bird catcher, and ultimately ends up as a pet of the Chittor ruler Ratansen.[9]
Inspired by the parrot's description of Padmini's beauty, Ratansen decides to visit the Singhal kingdom. Joined by his 16,000 vassals and princes, and with the parrot as his guide, he reaches Singhal after crossing the seven seas. There, he tries to win Padmini by performing austerities in a temple. Informed by the parrot, Padmini visits the temple and returns without meeting Ratansen, although she begins to long for him. Meanwhile, at the temple, Ratansen decides to commit suicide for having missed her.[9] The deities Shivaand Parvati intervene, and Shiva advises him to attack the fortress of Singhal.[10]
Disguised as ascetics, Ratansen and his followers attack the fortress, but are captured by Gandharvsen. As Ratansen is about to be executed, his bard reveals his identity. Gandharvsen then marries Padmini to Ratansen, and also arranges 16,000 padmini women for his companions.[10] (Padmini is best among the four types of women, typically found only in Singhal.[11])
As Padmini and Ratansen consummate their marriage in Singhal, Ratansen's first wife Nagmati longs for him in Chittor. She uses a bird to send a message to Singhal, following which Ratansen decides to return to Chittor. Ratansen has excessive pride in being married to the most beautiful woman on the earth, for which he is punished by a sea storm during the return journey. He and Padmini are rescued by the Ocean, but all their followers die in the storm. Lakshmi, the daughter of the Ocean, tests Ratansen's love for Padmini by appearing before him disguised as Padmini. Ratansen passes the test, and is rewarded with gifts by the Ocean and Lakshmi. With these gifts, he recruits a new entourage at Puri, and returns to Chittor.[10]
In Chittor, Padmini and Nagmati rival for Ratansen's attention. Initially, he placates them by spending nights with them alternately, but then establishes peace by reprimanding them. Meanwhile, he banishes the Brahmin courtier Raghav Chetan for fraudulently winning a contest. Padmini gifts Raghav her bangle in order to placate him.[10]
Raghav goes to the court of Alauddin Khalji in Delhi. When asked about the bangle, he describes the unmatched beauty of Padmini.[10] Alauddin then besieges Chittor, and demands Padmini for himself. Ratansen rejects the demand, offering to pay a tribute instead. Alauddin rejects the offer, and the siege continues. Finally, as part of fresh terms of peace, Ratansen invites Alauddin as a guest inside the fort, against the advice of his vassals Gora and Badal. Alauddin deceitfully catches a glimpse of Padmini, captures Ratansen, and returns to Delhi.[11]
Padmini asks Gora and Badal to help her free Ratansen. The two men and their followers enter the fortress of Delhi, disguised as Padmini and her companions. They free Ratansen, but Gora is killed fighting during the escape, while Badal takes Ratansen to Chittor.[11]
During Ratansen's absence, the Kumbhalner ruler Devpal proposes marriage to Padmini. On his return, Ratansen learns about this insult, and decides to punish Devpal. In the ensuing single combat, Ratansen and Devpal kill each other. Nagmati and Padmini commit suicide by sati (widow's self-immolation) on Ratansen's pyre. Meanwhile, Alauddin's army reaches Chittor. Facing a certain defeat, the women of the fort commit suicide by jauhar (mass self-immolation), while the men fight to death. Alauddin captures an empty fortress, thus denied victory.[11]
The victorious Alauddin reflects on his Pyrrhic victory, and the nature of insatiable desire. He picks up the ashes of Ratansen and his wives Padmini and Nagmati, lamenting that he "wanted to avoid this". Alauddin continues, "Desire is insatiable, permanent / but this world is illusory and transient / Insatiable desire man continues to have / Till life is over and he reaches his grave."[12]

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

श्रवण मंगलम ,ज्ञान मंगलम ,दृश्य मंगलम दीदार मंगलम(IT IS HARD TO LISTEN WHEN YOU CAN'T HEAR (HINDI II )


 बीस साल से कम उम्र के ज्यादातर लोग श्रव्य -सीमा की अधिकतम आवृत्ति वाली बीस हज़ार साइकिल प्रतिसेकिंड की ध्वनि सुन लेते हैं। लेकिन उम्र के साथ श्रवण  ह्रास, श्रवण क्षय का कारण श्रवण (कान )की प्रत्यास्थता इलास्टिसिटी का क्षय होना है ,उम्रदराज़ होते जाने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया का अंग है ,तो भी पचास साला लोग १२,००० साइकिल प्रतिसेकिंड से ऊपर तक की ध्वनियाँ आराम से सुन लेते हैं। 

क्योंकि बातचीत का सामान्य व्यवहार अमूमन २६० साइकिल प्रतिसेकिंड की ध्वनियों के आसपास ही रहता ही इसलिए पचास साला लोगों को कोई श्रवण सम्बन्धी बाधा यूं पेश नहीं आती है। 

किसी भी आवाज़ को सही दिशा में कान देने का हमारा गुण इस तथ्य से संचालित रहता है के हमारा कान यदि आवाज़ का स्रोत हमारे दाहिने और है तो दायां कान बाएं की अपेक्षा इस ध्वनि  को ०.००० १ सेकिंड पहले (एक सेकिंड का दस -हज़ारवां  भाग पहले )सुन लेगा। आखिर हमारे दोनों कानों के बीच फांसला भी तो है हमारी दोनों  आँखों की तरह। 

और इसी से हम कयास लगा लेते हैं दूर से आती किसी बैंड बाजे की आवाज़ का के वह किस दिशा से आ रही है। अलबत्ता यदि आप मुड़के उसी तरफ देखने लगे तब आपके दोनों कानों तक आवाज़  एक साथ ही पहुंचेगी जैसे सामने से आती कोई आवाज़ के लिए कयास नहीं लगाना  पडता है यह वैसे ही है। 

क्या आप जानते हैं आपको सबसे ज्यादा दिलचस्पी अपनी  आवाज़ को ही सुनने में होती है क्योंकि उसे आप सुनते हैं सुनना चाहते भी है चाव से।  
अपनी आवाज़ आप वायु के उन कम्पनों द्वारा ही नहीं सुनते हैं जो आपके कान तक पहुँचते हैं ,खोपड़ी से होते हुए अस्थि के चालन द्वारा यानी बोन कंडक्शन भी एक मोड  बनता है आपके श्रवण  का लेकिन तब जब आप अपनी ही आवाज़ सुनते हैं। चाहे वह आपके कुछ खाने पीने  सटकने से ही पैदा हो रही है या कोई कुरकुरी चीज़ खाने चबाने से। दांत के नीचे  किरकरी आने पर आपको कैसा विचित्र आभास और अनपेक्षित अप्रत्याशित आभास होता है ये आप तब महसूस करते हैं जब दाल में  खाना खाते वक्त कोई कंकरी निकल आती है। यही वजह है कई मर्तबा आप अपनी ही रिकार्ड की गई आवाज़ सुनकर हैरानी जतलाते हैं। क्योंकि इसमें बोन कंडक्शन सम्प्रेषण शामिल नहीं है आवाज़ का। अपनी ही आवाज़ की गमक और हुमक ,अनुनाद आपकी खोपड़ी कपाल से होकर ही आरही है निम्न आवृति की ध्वनियों से।रिकार्डिंग में यह नदारद रहती है। इसीलिए रिकार्ड की गई  आवाज़ वीक प्रतीत होती है आपको। 

और इसीलिए रिकार्ड की गई आवाज में वह जान भी नहीं होती है  अलबत्ता आजकल उसे संशोधित करने वाली अनेक विधियां और साधन संशाधन रिकार्डिंग तामझाम मॉडुलेटर तमाम किस्म के  आ गए  हैं। 

अफसोसनाक है श्रवन -क्षय आइंदा और भी बढ़ता जाएगा व्यस्त्तता बढ़ने के साथ सिटी नॉइज़ में इज़ाफ़ा होते जाने के साथ। 

आज की स्थिति पर गौर करते हैं ये बताने के साथ के आज भी हम अपने परिवेश से आती अनेक प्रकार की  ध्वनियाँ  सुनने को राजी  नहीं हैं जो हमारे काम की और ज्ञानवर्धक भी हो सकती हैं उपयोगी भी। क्योंकि हम थके मांदे रहते हैं। 

युवाभीड़ की स्थिति क्या है ?  

आपने अक्सर देखा होगा बातचीत के दौरान लोगों को कहते सुनते -'भाई साहब आपने क्या कहा था मैं मिस कर गया मेरा ध्यान कहीं और था या फिर ये के यार थोड़ा वॉल्यूम बढ़ा दो टीवी का कुछ पल्ले नहीं पड़  रहा है।'

श्रवण ह्रास ही है यह। एक अनुमान के अनुसार इस श्रवण -क्षय(हियरिंग लोस ) से इस समय तकरीबन चार करोड़ अस्सी लाख अमरीकी वयस्क (बालिग़ ,एडल्ट )ग्रस्त हैं।  
कुछ बढ़ती उम्र के साथ हमारे लाइलाज पुराने पड़  चुके रोग भी इसके लिए कुसूरवार ठहरते हैं तो खासकर जीवनशैली रोग (दिल की बीमारियां ,हाई ब्लडप्रेशर ,डायबिटीज आदि )जिनके चलते हमारे श्रवण उपकरण कानों की ओर  पूरा रक्त या तो नहीं पहुँच पाता  है या सर्कुलेशन कमज़ोर हो जाता है। इससे श्रवण निर्बाध नहीं रहता है। इन रोगों के इलाज़ से भी नुकसानी ही उठानी पड़ती है कानों को इसकी भी कीमत चुकानी पड़ती है। 

बिना नुश्खे के तथा नुश्खे वाली  दो  सौ  से ज्यादा प्रिक्रिप्शन दवाएं कानों पे भारी पड़  रहीं हैं इनमें मूत्रल दवाएं (diuretics ),एंटीबायोटिक्स यहां तक के जीवन रक्षक एस्पिरिन भी शामिल है। इन दवाओं से अंदरूनी कान असरग्रस्त हो सकता है। 

अपने चिकित्सक से  भले निस्संकोच पूछिए क्या मैं जो दवाएं ले रहा हूँ वह मेरी श्रवण  शक्ति को प्रभावित करेंगी।

युवा भीड़ का हाल यह है के आज जितने युवा किशोर -किशोरियां एअरबड्स  और हेडफोन्स लगाए घूम रहें हैं उनसे पैदा तेज़ आवाज़ कानों पे भारी पड़  रही है। इस वक्त गत दशक की बनिस्पत तीस फीसद ज्यादा युवा  नॉइज़ से पैदा श्रवण ह्रास से ग्रस्त हैं। बढ़ता डेसिबेल लेवल उनके कानों को कुतर रहा है। 

इससे बचने के उपाय आज़माने चाहिए। फिर चाहे वह घास काटने वाले उपकरण हों या आइस की शवलिंग करने के लिए प्रयुक्त तामझाम हो कानों का बचाव ज़रूरी है। आईपॉड का संगीत अच्छा लगता है मगर किस कीमत पर। आज ऐसे डेसिबेल मीटर उपलब्ध हैं जो आपके स्मार्ट फोन को साउंड मीटर में तब्दील कर देते हैं  . आप भांप लेते हैं डेसिबेल से पैदा खतरों को। चर्च का संगीत (डेसिबेल लेवल इस संगीत का ) भी सुरक्षित नहीं माना गया है।एयरप्लग्स ,नॉइज़  केंसलिंग  हेडफोन्स भी आज उपलभ्ध हैं।वैक्यूम क्लीनर ,स्नोब्लोवर के इस्तेमाल के दौरान इन्हें पहन लीजिये। श्रवण के माहिरों की यही सलाह है। बचाव में ही बचाव है। 

एक सक्षम भरोसेमंद कान के बिना दृश्य जगत की जानकारी अधूरी ही रह जायेगी। संगीत सुनते वक्त टीवी देखते वक्त थोड़ी आवाज़ कम कर लीजिये धीरे -धीरे यही अच्छा लगने लगेगा।इस दूसरी क़िस्त में फिर से दोहरा दें -जीवन और जगत और अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी श्रवण एक बेहद ज़रूरी खिड़की है।

श्रवण मंगलम ,ज्ञान मंगलम ,दृश्य मंगलम दीदार मंगलम। 

Hearing is the most social of the senses(HINDI I )

हमारी यह सृष्टि ये सारी कायनात एक महावाद्यवृन्द रचना में नहाई हुई है वैसे ही जैसे ये विश्व "पृष्ठभूमि विकिरण कॉस्मिक बेक-ग्राउंड रेडिएशन "में संसिक्त है डूबा हुआ है। सृष्टि का प्रादुर्भाव भी ध्वनि से ही हुआ है जिसे ओंकार या ॐ कहा गया है आज भी सूर्यनारायण से यही ध्वनि निसृत हो रही है। लेकिन हमारे कान अपने काम की ही बात सुनने के अभ्यस्त हो चले हैं। हमारे श्रवण की भी सीमा है। 

इस श्रव्य परास के नीचे  अवश्रव्य और इसके ऊपर पराश्रव्य ध्वनि  हैं। श्रवण चंद आवृतियों ध्वनि तरंगों की लम्बाई तक ही सीमित है। २० साइकिल प्रतिसेकिंड से लेकर २० ,००० साइकिल्स प्रतिसेकिंड फ़्रीकुएंसी (आवृत्ति )की ही ध्वनियाँ हमारे श्रवण के दायरे में आती हैं। 

अगर हम २० हर्ट्ज़ (एक साइकिल प्रतिसेकिंड को एक हर्ट्ज़ कहते हैं  )से नीचे की ध्वनि सुनने लगें तो जीना मुहाल हो जाए हमारा। सांस की धौंकनी ,पेशियों की गति ,हमारे पदचापों  की ध्वनि हमें चैन से न बैठने दे चरचराहट चरमराहट ,धमाके हम सुनते रहें अपने अंदर से बॉन कंडक्शन के द्वारा। इसीलिए हमें अपनी रिकार्ड की गई आवाज़ अपनी सी नहीं लगती क्योंकि जब हम बोलते हैं तो खुद भी तो अपनी आवाज़ सुनते हैं बॉन कंडक्शन द्वारा। अस्थियां ठोस हैं और ठोस में से ध्वनि की आवाजाही बेहतर होती है। चमकादड़ की तो आँख वे  ध्वनि ही बनतीं हैं जिन्हें हम नहीं सुन पाते हैं। 

अस्तबल तोड़ के घोड़े भाग खड़े होतें हैं चील कौवे आकाश को छोड़ पेड़ों पर उतर  आते हैं भूकम्पीय तरंगों को भांपकर। हमारे लिए अवश्रव्य हैं ये तमाम ध्वनियाँ। 

कल्पना करो एक नृत्य नाटिका आप देख रहें हैं संगीतकी माधुरी पर और संगीत को म्यूट कर दिया जाए ,कैसा लगेगा आपको। दृश्य के पूर्ण अवलोकन   के लिए  श्रवण ज़रूरी तत्व है। 
आवाज़ हमारे हस्ताक्षर हैं आधार कार्ड है हमारा।  दो व्यक्तियों की आवाज़ बेशक यकसां लग सकती है लेकिन उनका रोना धोना झींकना चिल्लाना जुदा   होगा।गली  में खेलते बच्चों में से यदि आपका  बच्चा रो रहा है  तो आप जान लेंगे बच्चा मेरा है। और नींद में भी अगर कोई आपको नाम से पुकारे भले आहिस्ता ,आप सुन लेंगे। माँ साथ में सोये बच्चे की कुनमुनाहट सुन लेगी भले कितनी गहरी नींद में हो उसे  फ़ौरन  थपथपा के सुला देगी। 

मालिक के कदमों की आहात कुत्ते मीलों दूर से पहचान लेते हैं आप की चाल आपके भावजगत की इत्तल्ला दे देती है। कैट -वाक् का अपना सौंदर्य है। 

ठुमक ठुमक मत चलो, किसी का दिल धड़केगा ,
मंद मंद मत हंसों कोई राही भटकेगा। 

ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ....

और अगर पैंजनिया छम- छम न करें तो क्या माता कौशल्या रीझेंगी ?

आज आदमी अपने परिवेश की आवाज़ों से ही परेशान है और इसीलिए उसका संपर्क अपने ही परिवेश से कमतर होने लगा है। घर हो या बाहर आदमी आवाज़ नहीं सुनना चाहता ,दिन भर की थकान से बेदम है तनाव में है स्ट्रेस में है। 

जबकि आवाज़ें सामाजिक सच का आइना हैं। सच का एक आयाम तो ज़रूर हैं ही पूरा सच न सही। 

सलाम करो उस वाद्यवृन्द रचना के कंडक्टर को जिसे ये  इल्म हो जाता है सौ वायालन -कारों में से किस साजिंदे का वायलिन म्यूट है। हमारे कान एक ही आवृति की आवाज़ (टोन  ) के तीन से लेकर चार लाख उतार चढ़ावों को आरोह और अवरोह को ध्वनि की  मात्रा यानी तीव्रता में अंतर कर सकते हैं यह क्षमता उस कंडक्टर के पास है जो वाद्यवृन्द रचना का संचालन कर रहा है। उसकी एक एक  शिरा  में संगीत है। पूरा सुनता है वह सबको सुनता है सबकी सुनता है। आप कितना सुनते हैं  ?किसकी सुनते हैं ?

कुछ लोग शोर शराबे वाली भीड़ में घुसके ये ताड़ लेते हैं भीड़ का मूढ़ क्या है खासकर शादी ब्याह के मौकों पर आप ऐसा जमघट  देखते होंगें जिसमें घुसने की हिम्मत हर कोई नहीं कर पाता। कानों पर हाथ रख लेता है शोर से आज़िज़  आकर । 
गति और कम्पन ही ध्वनि है ,हरेक गति एक ध्वनि छिपाए हुए है अपने आगोश में। न्यूक्लियस के गिर्द घूमता इलेक्ट्रॉन भी। परमाणु घड़ी उसी इलेक्ट्रॉन के कम्पन पर आधारित है। 

स्पर्श एक  वैयक्तिक ऐन्द्रिक सुख है ध्वनि दूर -स्पर्श है -टच एट ए डिस्टेंस। 

श्रवण एक सामाजिक ऐन्द्रिक अनुभव है। 

hearing is the most social of the senses .

आवाज़ें हमें अपने परिवेश के प्रति खबरदार करतीं हैं। निद्रावस्था में भी श्रवण संपन्न होता है  अवचेतन स्तर पर। श्रवण हमें जगाता है। जागृत करता है। 

उठ जाग मुसाफिर भोर भई ,अब रेन कहाँ जो सोवत है  

सारा अध्यात्म जगत श्रवण पर खड़ा है कुछ मत कीजिये निरंतर श्रवण कीजिये यही  कालान्तर  में मनन (contemplation )और फिर निद्धियासन (constant contemplation ,मैडिटेशन )बन जाएगा। 

जड़ चीज़ों के साथ चेतन जैसा व्यवहार करो फिर आप कुर्सी के खिसकने की अलग आवाज़ सुनेंगे। दराज खोलने खिड़की बंद करने की ,तड़के की ,दाल के खदबदाने की आवाज़ों का भी अलग ज़ायका लेंगे।

कुछ लोगों का श्रवण अति विकसित होता है परिमार्जित  और गहन भी । अलग अलग सिक्कों के गिरने की आवाज़ आपको बतला देंगें।ज्योति हीन  व्यक्ति आपके कमरे की लम्बाई चौड़ाई बतला देगा। उसका संसार ध्वनियों पर ही खड़ा है। ध्वनियाँ जिनसे हम लगातार कटते  जा रहे हैं। 

सबसे तेज़ आवाज़ (लाउड साउंड )जो हमारा कान सुन सकता है वह उस आवाज़ से जो सबसे ज़्यादा मद्धिम है दस खरब गुना ज्यादा तेज़ी लिए होती है। स्नो फ्लेक्स का गिरना ,सुईं का ज़मींन पे गिरना भी सुन लेते हैं कुछ लोग। 

ऐसे होता है श्रवण ,ऐसे सुनते हैं हम आवाज़ें ? 

हमारे कान का पर्दा (एअर ड्रम )कम्पन करता है बाहर के किसी भी ध्वनिक उत्तेजन /उद्दीपन से /आवाज़ से। मध्यकान में एक रकाबी की आकृति की अस्थि होती है जो एक पिस्टन  की भाँती काम करते हुए इस कम्पन को आवर्धित कर देती है, एम्पलीफाई करती है। घोंघे  के आकार  सा होता है हमारा अंदरूनी कान जिसमें एक तरल भरा रहता है साथ ही  कोई तीसेक हज़ार हेयर सेल्स भी मौजूद रहतीं हैं। ये आवाज़ की आवृत्ति के अनुरूप बेंड हो जाती है मुड़ जातीं हैं। छोटी लड़ी ऊंची तथा लम्बी लड़ी निम्न फ्रीक्वेंसी के अनुरूप ऐसी अनुक्रिया करतीं हैं। 

इसी के साथ विद्युत्स्पन्दों की तेज़ी से घटबढ़ होती है जो बा -रास्ता नसों न्यूरॉन्स के ज़रिये दिमाग को खबर देती है दिमाग इसे आवाज़ के रूप में लेता है। 

दूसरी क़िस्त में पढ़िए :बीस से कम उम्र तक के तमाम लोग तकरीबन उन आवाज़ों को सुनलेते हैं जो प्यानों के उच्चतम C नोट की आवृत्ति होती है।  दूसरे शब्दों में  २० किलोहर्ट्ज़ की तमाम आवाज़ें।लेकिन पचासा आते आते कान  की प्रत्यास्थता एल्स्टिसिटी कम होने से १२ किलोहर्ट्ज़ तक ही सीमित हो जाता है श्रवण। क्यों और क्या हो रहा है  उस युवा भीड़ को जो  शोर के बीच भी  कानों में  हरदम प्लग ठूसें रहतें हैं ,हेड फोन के साथ चलते हैं।