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१९८४ में सिखों नरसंहार हुआ था। उत्प्रेरक वाक्य था -जब कोई बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती काँपती है।
२००२ के गुजरात दंगे गोधरा काण्ड की स्वत : स्फूर्त प्रतिक्रिया थे। कार सेवकों से भरे दो डिब्बों को बाहर से मिट्टी का तेल छिड़क कर यात्रियों को ज़िंदा जला दिया गया था। इनमें कन्हैया का बाप भी हो सकता था।
ज़रा सी बात अपने खिलाफ सुनकर जिस के कान लाल हो जाते हैं उस मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलामों के भी गुलाम कन्हैया का नाम कंस होना चाहिए। राजीव गांधी पर मरणोंप्रांत सिख नरसंहार के लिए मुकदमा चलना चाहिए।
उसी राजीव गांधी के मंदबुद्धि बालक की ऊँगली पकड़कर कन्हैया अपनी नेतागिरी चमका रहा है।
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