मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

जो हो साइकेट्रिक ड्रग्स चिकित्सा के संग -संग मनो -विश्लेषण चिकित्सा (साइको -थिरेपी )को आनुषंगिक चिकित्सा का दर्ज़ा आज भी प्राप्त है

मनो -विश्लेषण चिकित्सा का उद्भव (आदि )

कैसे आरम्भ हुई साइकोथिरेपी ?

सिग्मंड  फ़्रायड  की दूर -दृष्टिता  का परिणाम थी मनो -विश्लेषण चिकित्सा ,बाइनाकुलर विज़न था फ़्रॉयड  महोदय के पास ।इनकी पहली मरीज़ा एक महिला थीं जो रूप परिवर्तन भावोन्माद (कन्वर्जन हिस्टीरिया ,Conversion Hysteria )से ग्रस्त हो गईं थीं।

इस स्थिति में महिलायें भावात्मक चोट (सदमे )को भौतिक समस्याओं के रूप में समझने -भोगने  लगतीं हैं। मसलन उन्हें लगता है उनके किसी अंग को फालिज मार गया है। आज कहते हैं मन से ही होते हैं काया के रोग। मनोकायिक रोग रहा है यह भाव -उन्माद भी। मनो -कायिक बोले तो साइको -सोमाटिक। 

फ्रायड के गुरु रहे  जोज़फ़ ब्रुएर ने आर्म -पेरेलिसिस का पहला ऐसा मामला दर्ज़ किया बतलाया जाता है। मरीज़ा अन्ना   ओ.  नाम की एक महिला  थीं। भौतिक जांच के बाद पता चला इनमें पेरेलिसिस के कैसे भी भौतिक लक्षण ही नहीं थे। इन्हें ब्रुएर के पास मनो -विश्लेषण चिकित्सा के लिए लाया गया। ब्रुएर ने सम्मोहन तकनीक को इनके ऊपर आज़माया साथ ही फ्री -एशोशिएशन टेक्नीक का  भी इस्तेमाल किया। 

What is Free Association?

Free association is a technique used in psychoanalytic therapy to help patients learn more about what they are thinking and feeling. It is most commonly associated with Sigmund Freud, who was the founder of psychoanalytic therapy. Freud used free association to help his patients discover unconscious thoughts and feelings that had been repressed or ignored. When his patients became aware of these unconscious thoughts or feelings, they were better able to manage them or change problematic behaviors.
अन्ना अपने मरणासन्न ( मृत्यु -आसन्न ) पिता के सिरहाने खड़ी थीं। खड़ी -खड़ी ही ये निद्रा में चली गईं जब इनकी आँख खुली इनके पिता मर चुके थे। आपको गहरी मानसिक वेदना पहुंची इस हादसे से ,एक हीन -भावना,अपराध -बोध भी आपके मन में बैठ गया  आप पिता की मृत्यु के लिए खुद को कुसूरवार मान ने लगीं। लेकिन आपने इन मनोभावों को दबाये रखा ,भाव -शमन किया अपनी रागात्मकता का मनो -संवेगों का; मनोविज्ञान की भाषा में यही रिपरैशन कहलाता है। उनकी मनोव्यथा रूपांतरित होकर उनके द्वारा कल्पित भौतिक लक्षणों में तब्दील हो गई उन्हें लगा उनका बाज़ू अब संवेदना शून्य है। 

 मनो -विश्लेषण चिकित्सा ने एक मर्तबा फिर उन्हें उस  सदमे का स्मरण करवाया और सम्मोहन द्वारा उस असर को हटा दिया। 
अन्ना अब आगे की मनो -विश्लेषण चिकित्सा का आधार बन गईं। ऐसे शुरुआत हुई मनो -विश्लेषण चिकित्सा या साइकोथिरेपी की। निष्कर्ष निकाला गया सारे भौतिक लक्षण मनो -संवेगों के दमन (शमन )का परिणाम होते हैं। शमन को हटाते ही मन की गांठ के खुलते ही लक्षण भी गायब हो जाते हैं।उनका बाजू लकवा भी दुरुस्त था अब। 
लेकिन धीरे -धीरे फिर शोध से यह भी पता चला शमन या दमन (repression )का हटा लेना निर्मूल करना सभी मामलों में कामयाब नहीं होता है।फ्रायड महोदय ने यहीं से मनो -विश्लेषण को एक व्यापक आधार दिया जिसके तहत असर ग्रस्त व्यक्ति के बारे में व्यापक (विस्तृत ,गहन ) जानकारी जुटानी आरम्भ  की गई।

Now Freud broadened his focus .He referred to psychoanalysis as an educational process ,which focused on "insight ".
Insight or the recognition of patterns and historical generative events ,became the cure for all ailments.

इसके तहत पहले व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमताओं ,बोध प्रक्रिया ,सोच ,की पड़ताल की गई ,इसी दरमियान एक मरीज़ ने बतलाया मुझे बरसों हो गए ये परामर्श चिकित्सा लेते- लेते मैं समझता भी सब कुछ हूँ लेकिन फायदा या हासिल अभी तक कुछ हुआ नहीं है। फ्रायड अब ये जान चुके थे इस प्रकार की वैयक्तिक गहन पड़ताल का आंशिक फायदा ही पेशेंट्स तक पहुँच पा रहा है। 

Recognizing one's patterns ,history ,and vulnerability was important ,but hardly curative.There were problems.

मरीज़ में रचनात्मक बदलाव का आना  दो और चीज़ों पर निर्भर करता है :

(१ )उसकी सोच के अलावा उसका रागात्मक भाव जगत ,उसकी संवेदनाएं बड़े मायने रखतीं हैं। 

(२ )रोज़मर्रा के हिसाब से रोज़ -ब -रोज़ हमें अपने जीवन को जीने का ढर्रा जीवन शैळी में बदलाव लाने की आदत डालनी होगी। केवल सोचने और सोचने से कुछ नहीं होना -हवाना है। 

गहन जानकारी जुटाना व्यक्ति विशेष की बस  एक संज्ञानात्मक परख है ,उसकी बोध प्रक्रिया की पड़ताल भर है। ये प्रक्रियाएं मस्तिष्क के बाएं अर्द्धगोल से ताल्लुक रखतीं हैं। एहम का ,हमारे ego -mind का ,यही प्राकृत आवास है।तर्कणा शक्ति ,सारे तर्क  और भाषा का वाग्जाल यहीं है।एक किस्म की  रेखीय बूझ है यहां।  

The left brain houses the ego -mind and is linear ,logical and linguistic .

सूचना संशाधन और सूचना को व्यवस्थिति करने ऑर्गेनाइज करने का काम दिमाग का यही हिस्सा करता है ,यादें और विचार सरणी भी यहीं हैं लेकिन यहां जीवन और जगत का सीधा बोध प्राप्त नहीं है।
It does not experience the world directly .

सीधा अनुभव दिमाग का दायां हिस्सा करता है यह ज्ञानेंद्रिय के पीछे -पीछे हो लेता है संवेदनाओं की प्रावस्थाओं को देखता समझता  है। लेकिन ये अनुभव भी पल दो पल के ही होतें हैं यहां कोई चेक या फ़िल्टर नहीं है। टोटैलिटी रूप में ही हैं एक अनुभव होता है बस । 

यानी ये सब भी कच्चा माल ही होता है जिसको  दिमाग का बांया हिस्सा अवधारणाओं में तब्दील कर लेता है। बस धारणाएं पुख्ता होने लगतीं हैं। 

मनो -विश्लेषण चिकित्सा को इन सब पर नज़र रखनी पड़ेगी। यानी बोध प्रक्रिया ,विचार सरणी तथा मरीज़ की संवेदनाओं संवेगों की भी गहन पड़ताल करनी पड़ेगी। 
जो हो साइकेट्रिक ड्रग्स चिकित्सा   के संग -संग मनो -विश्लेषण चिकित्सा (साइको -थिरेपी )को आनुषंगिक चिकित्सा का दर्ज़ा आज भी प्राप्त है। दोनों साथ -साथ चलतीं हैं। बेशक कुछ मनो -दशाओं में यह उतनी कारगर न भी हो।
संदर्भ -सामिग्री :
The Beginnings of Psychotherapy -Dr .Michael Abramsky
He is a licensed psychologist with 35 yrs of experience treating adolescents and adults for anxiety,depression and trauma .He is nationally Board Certified in both Clinical and  Forensic psychology ,has a MA in Comparative Religions ,and has practiced and taught Buddhist Meditation for 25 yrs .You may call him at 248 644 7398 

Pandit Vijay Shankar Mehta Ji | Shri Ram Katha | Baal Kand

भाव -सार :परमात्मा की बड़ी कृपा है यहां भारत में हमें एक गुरु प्राप्त हुआ है ,भक्तों ने हमें एक ऐसा काव्य दिया जो हमारे  जीवन के गूढ़ प्रश्न ,ऐसी चुनौतियां का हमें हल देता है  जो हमें अशांत करती हैं और  जिनमें हम धर्म और  अध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए भी उलझ जाते हैं। राम कथा हमें जीना सिखाती है।

राम जहां रहते हैं उस निवास स्थान को रामायण (वाल्मीकि )कहा गया।तुलसीदास ने जिस राम कथा को हमारे जीवन में सौंपा ,जिस रूप में रामचरितमानस में प्रस्तुत किया उससे राम हमारे रग -रग में बस गए।तुलसी की चौपाई हम लोगों की नस नस में बस गईं हैं अवधि भाषा के स्पर्श के साथ लिखा गया यह ग्रंथ वे लोग भी समझ लेते हैं जो पढ़ना लिखना नहीं जानते।  मानस की एक -एक पंक्ति में तुलसी की भक्ति के माध्यम से भगवान् खुद प्रकट हुए हैं। 

महत्वपूर्ण यह नहीं है संसार से आपको क्या मिला महत्वपूर्ण यह है आप संसार को क्या लौटा रहें हैं।तुलसी यही सिखाते हैं।  
आत्मा राम दुबे के यहां तुलसीदास का जन्म हुआ जन्म के  बाद इस बालक की माँ मर गई। इस बालक को अपशकुनी मनहूस जानकार  छोड़ दिया गया। ज़माने ने तुलसी को विष दिया लेकिन तुलसी ने रामचरितमानस के रूप में अमृत लौटाया। 
चित्रकूट के घाट पर भइ  संतन की भीड़ ,

तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत  रघुबीर।

प्रसंग   है :तुलसी दास चित्रकूट में नदी के किनारे राम कथा सुना रहे हैं। भगवान् उनकी भक्ति से खुश होकर सोचते हैं आज इसे दर्शन करा ही दें। भगवान्  साधारण भेष में आते हैं तुलसीदास पहचान नहीं पाते तब पेड़ पर बैठे हनुमान यह दोहा पढ़ते हैं ,और तुलसीदास अपने ईष्ट भगवान राम को पहचान जाते हैं संकेत मिलते ही ।

 कहतें हैं इसी के बाद तुलसी ने रामायण लिखनी शुरू की ,जिसका एक- एक  दृश्य हनुमान ने ऐसे दिखलाया जैसे तुलसी ने स्वयं भी अपनी आँखों देखा हो। 

परमात्मा जीवन में संकेत रूप में ही समझ आता है गुरु देता है यह संकेत। ऐसा ही संकेत हनुमान जी ने तुलसी को इस दोहे के मार्फ़त किया। 

कथा का सूत्र :तुलसी वंदना के साथ बालकाण्ड आरम्भ करते हैं भगवान् का जन्म होता है भगवान बड़े होते हैं विश्वामित्र भगवान् को ले जाते हैं। भगवान् का विवाह होता है और भगवान् अयोध्या लौट आते हैं कथा बस इतनी ही है। लेकिन इसका व्यापकत्व समेटा नहीं जा सकता। इसलिए चर्चा कथा के सूत्र की ही की  जाती है। 
बालकाण्ड  का सूत्र है सहजता। बालपन की सहजता। 

तुलसी मात्र महाकवि नहीं हैं ,संत हैं ,जो लिखा है तुलसी ने वह भीतर से बाहर आया है मात्र शब्द नहीं है उस ग़ज़ल के जिसे लिखने वाला दारु पीते हुए लिख रहा है।इसमें एक भक्त का बिछोड़ा है।  

तुलसी बाल- काण्ड के आरम्भ दुष्टों की, दुश्मनों की भी वंदना करते हैं ,ताकि कोई विघ्न न आये कथा कहने बांचने लिखने  में। 

तुलसी से पहले वैष्णव -विष्णु और राम के भक्त कहलाते थे , कृष्ण भक्त भी खुद को वैष्णव मानते  थे ,शिव भक्त शैव और माँ दुर्गा शक्तिस्वरूपा पारबती के भक्त शाक्त कहाते  थे।

तीनों परस्पर एक दूसरे को फूटी आँख नहीं देखते थे। तुलसी बालकाण्ड के आरम्भ में तीनों सम्प्रदायों के ईष्ट   की स्तुति ,और गुणगायन करते हैं। आप शिव और पार्वती की भी वंदना करते हैं राम की भी। 
तुलसी लक्ष्मण जी को राम की विजय पताका का दंड  कहते  हैं। ध्वज तभी लहराता है जब दंड मज़बूत हो ,आधार मजबूत  हो। तीनों भाइयों की वंदना के साथ तुलसी हनुमान को भाइयों की पांत में बिठाकर वंदना करते हैं। 

हनुमान जी मैं आपको प्रणाम  करता हूँ ,आपके यश का गान तो स्वयं राम ने किया है। आवेगों और दुर्गुणों का नाश हनुमान जी करते हैं। आप राम के वक्ष में तीर कमान लेकर बैठते हैं।बेहतरीन रूपक है यहां दुर्गुण नाशक हनुमान के स्तुति गायन का। 

जनक सुता जग जननी जानकी '  

अतिशय प्रिय करुणा -निधान की। 

नारी के तीनों विशेषण (बेटी ,जननी माँ ,प्राण  राम की )यहां स्तुतिमाला के मोती बनाके डाल दिए  हैं सीता जी की स्तुति में ,तुलसी ने। 

'तात सुनो सादर मन लाई '-याज्ञवल्क्य भारद्वाज ऋषि से कहते हैं जब की दोनों ऋषि हैं लेकिन जानते हैं मन बड़ा चंचल है इसलिए इस कथा को आदर पूर्वक और पूरे ध्यान से सुनो ,चित लाई ,चित्त्त लगाकर। फिर ऐसे में आम संसारी की तो क्या बात है। 

मन मनुष्य को असहज बनाता है आज की कथा ऐसी है बार -बार मन पे इशारा आ रहा है। बाहर से सरल होने का आवरण हो सकता है अंदर से सहज होना बड़ा कठिन है। आपकी कोई भी उम्र हो भीतर से सहज रहें। बालकाण्ड सिखाता है बच्चे बाहर भीतर दोनों जगह सहज होते हैं। 

भगवान् शंकर उमा देवी को कथा सुना रहे हैं :

(याज्ञवल्क्य  जी भरद्वाज मुनि को )

सुनी महेश परम् सुख मानी। तुलसी सावधान हैं सिर्फ महेश का नाम लेते हैं सती  का नहीं। हरेक कथा सुनता कहाँ हैं। इनको क्या प्रणाम करना है ये तो खुद विलाप कर रहें हैं अपनी पत्नी के लिए। शंकर जानते हैं लीला चल रहीं हैं ,सती संदेह करतीं हैं नहीं मानतीं हैं शंकर अलग शिला खंड पे जाकर बैठ जाते हैं। शंकर जी सूत्र बतलातें हैं जब पति पत्नी में मतभेद हो जाएँ तो टेंशन नहीं लेना है। 

होइ है वही जो राम रची रखा -सती संदेह करतीं हैं ,परीक्षा लेती हैं भगवान् की (भगवान् संदेह का विषय नहीं हैं ,लेकिन सती नहीं मानती ,सीता का भेष धर लेती हैं। ),भगवान् कहते हैं माते अकेले ही विचर रहीं हैं वन में ?भोले नाथ क्या कर रहें हैं ?

मैं कौन हूँ ये मैं तय करूंगा शंकर भगवान् मैना के अपमान करने पर कहतें हैं शंकरजी ऐसा ही कहते हैं। यहां सन्देश यह है घर टूटते ही ऐसे हैं किसी एक शब्द से। उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए। 

नारद ने सम्बन्ध बदल दिया पारबती की माँ मेनका को शंकर जी का असली रूप दिखलाकर। अब तो मेनका भगवान् से क्षमा मांगतीं हैं। 

 गुरु की यही महिमा है। 

(ज़ारी )

Pandit Vijay Shankar Mehta Ji | Shri Ram Katha | Baal Kand
संदर्भ -सामिग्री :(१ )https://www.youtube.com/watch?v=uD2C4zjlhgU

The Beginnings of Psychotherapy -Dr .Michael Abramsky(Hindi )

मनो -विश्लेषण चिकित्सा का उद्भव (आदि )

कैसे आरम्भ हुई साइकोथिरेपी ?

सिग्मंड  फ़्रायड  की दूर -दृष्टिता  का परिणाम थी मनो -विश्लेषण चिकित्सा ,बाइनाकुलर विज़न था फ़्रॉयड  महोदय के पास ।इनकी पहली मरीज़ा एक महिला थीं जो रूप परिवर्तन भावोन्माद (कन्वर्जन हिस्टीरिया ,Conversion Hysteria )से ग्रस्त हो गईं थीं।

इस स्थिति में महिलायें भावात्मक चोट (सदमे )को भौतिक समस्याओं के रूप में समझने -भोगने  लगतीं हैं। मसलन उन्हें लगता है उनके किसी अंग को फालिज मार गया है। आज कहते हैं मन से ही होते हैं काया के रोग। मनोकायिक रोग रहा है यह भाव -उन्माद भी। मनो -कायिक बोले तो साइको -सोमाटिक। 

फ्रायड के गुरु रहे  जोज़फ़ ब्रुएर ने आर्म -पेरेलिसिस का पहला ऐसा मामला दर्ज़ किया बतलाया जाता है। मरीज़ा अन्ना   ओ.  नाम की एक महिला  थीं। भौतिक जांच के बाद पता चला इनमें पेरेलिसिस के कैसे भी भौतिक लक्षण ही नहीं थे। इन्हें ब्रुएर के पास मनो -विश्लेषण चिकित्सा के लिए लाया गया। ब्रुएर ने सम्मोहन तकनीक को इनके ऊपर आज़माया साथ ही फ्री -एशोशिएशन टेक्नीक का  भी इस्तेमाल किया। 


What is Free Association?

Free association is a technique used in psychoanalytic therapy to help patients learn more about what they are thinking and feeling. It is most commonly associated with Sigmund Freud, who was the founder of psychoanalytic therapy. Freud used free association to help his patients discover unconscious thoughts and feelings that had been repressed or ignored. When his patients became aware of these unconscious thoughts or feelings, they were better able to manage them or change problematic behaviors.
अन्ना अपने मरणासन्न ( मृत्यु -आसन्न ) पिता के सिरहाने खड़ी थीं। खड़ी -खड़ी ही ये निद्रा में चली गईं जब इनकी आँख खुली इनके पिता मर चुके थे। आपको गहरी मानसिक वेदना पहुंची इस हादसे से ,एक हीन -भावना,अपराध -बोध भी आपके मन में बैठ गया  आप पिता की मृत्यु के लिए खुद को कुसूरवार मान ने लगीं। लेकिन आपने इन मनोभावों को दबाये रखा ,भाव -शमन किया अपनी रागात्मकता का मनो -संवेगों का; मनोविज्ञान की भाषा में यही रिपरैशन कहलाता है। उनकी मनोव्यथा रूपांतरित होकर उनके द्वारा कल्पित भौतिक लक्षणों में तब्दील हो गई उन्हें लगा उनका बाज़ू अब संवेदना शून्य है। 

 मनो -विश्लेषण चिकित्सा ने एक मर्तबा फिर उन्हें उस  सदमे का स्मरण करवाया और सम्मोहन द्वारा उस असर को हटा दिया। 
अन्ना अब आगे की मनो -विश्लेषण चिकित्सा का आधार बन गईं। ऐसे शुरुआत हुई मनो -विश्लेषण चिकित्सा या साइकोथिरेपी की। निष्कर्ष निकाला गया सारे भौतिक लक्षण मनो -संवेगों के दमन (शमन )का परिणाम होते हैं। शमन को हटाते ही मन की गांठ के खुलते ही लक्षण भी गायब हो जाते हैं।उनका बाजू लकवा भी दुरुस्त था अब। 
लेकिन धीरे -धीरे फिर शोध से यह भी पता चला शमन या दमन (repression )का हटा लेना निर्मूल करना सभी मामलों में कामयाब नहीं होता है।फ्रायड महोदय ने यहीं से मनो -विश्लेषण को एक व्यापक आधार दिया जिसके तहत असर ग्रस्त व्यक्ति के बारे में व्यापक (विस्तृत ,गहन ) जानकारी जुटानी आरम्भ  की गई।

Now Freud broadened his focus .He referred to psychoanalysis as an educational process ,which focused on "insight ".
Insight or the recognition of patterns and historical generative events ,became the cure for all ailments.

इसके तहत पहले व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमताओं ,बोध प्रक्रिया ,सोच ,की पड़ताल की गई ,इसी दरमियान एक मरीज़ ने बतलाया मुझे बरसों हो गए ये परामर्श चिकित्सा लेते- लेते मैं समझता भी सब कुछ हूँ लेकिन फायदा या हासिल अभी तक कुछ हुआ नहीं है। फ्रायड अब ये जान चुके थे इस प्रकार की वैयक्तिक गहन पड़ताल का आंशिक फायदा ही पेशेंट्स तक पहुँच पा रहा है। 

Recognizing one's patterns ,history ,and vulnerability was important ,but hardly curative.There were problems.

मरीज़ में रचनात्मक बदलाव का आना  दो और चीज़ों पर निर्भर करता है :

(१ )उसकी सोच के अलावा उसका रागात्मक भाव जगत ,उसकी संवेदनाएं बड़े मायने रखतीं हैं। 

(२ )रोज़मर्रा के हिसाब से रोज़ -ब -रोज़ हमें अपने जीवन को जीने का ढर्रा जीवन शैळी में बदलाव लाने की आदत डालनी होगी। केवल सोचने और सोचने से कुछ नहीं होना -हवाना है। 

गहन जानकारी जुटाना व्यक्ति विशेष की बस  एक संज्ञानात्मक परख है ,उसकी बोध प्रक्रिया की पड़ताल भर है। ये प्रक्रियाएं मस्तिष्क के बाएं अर्द्धगोल से ताल्लुक रखतीं हैं। एहम का ,हमारे ego -mind का ,यही प्राकृत आवास है।तर्कणा शक्ति ,सारे तर्क  और भाषा का वाग्जाल यहीं है।एक किस्म की  रेखीय बूझ है यहां।  

The left brain houses the ego -mind and is linear ,logical and linguistic .

सूचना संशाधन और सूचना को व्यवस्थिति करने ऑर्गेनाइज करने का काम दिमाग का यही हिस्सा करता है ,यादें और विचार सरणी भी यहीं हैं लेकिन यहां जीवन और जगत का सीधा बोध प्राप्त नहीं है।
It does not experience the world directly .

सीधा अनुभव दिमाग का दायां हिस्सा करता है यह ज्ञानेंद्रिय के पीछे -पीछे हो लेता है संवेदनाओं की प्रावस्थाओं को देखता समझता  है। लेकिन ये अनुभव भी पल दो पल के ही होतें हैं यहां कोई चेक या फ़िल्टर नहीं है। टोटैलिटी रूप में ही हैं एक अनुभव होता है बस । 

यानी ये सब भी कच्चा माल ही होता है जिसको  दिमाग का बांया हिस्सा अवधारणाओं में तब्दील कर लेता है। बस धारणाएं पुख्ता होने लगतीं हैं। 

मनो -विश्लेषण चिकित्सा को इन सब पर नज़र रखनी पड़ेगी। यानी बोध प्रक्रिया ,विचार सरणी तथा मरीज़ की संवेदनाओं संवेगों की भी गहन पड़ताल करनी पड़ेगी। 
जो हो साइकेट्रिक ड्रग्स चिकित्सा   के संग -संग मनो -विश्लेषण चिकित्सा (साइको -थिरेपी )को आनुषंगिक चिकित्सा का दर्ज़ा आज भी प्राप्त है। दोनों साथ -साथ चलतीं हैं। बेशक कुछ मनो -दशाओं में यह उतनी कारगर न भी हो।
संदर्भ -सामिग्री :
The Beginnings of Psychotherapy -Dr .Michael Abramsky
He is a licensed psychologist with 35 yrs of experience treating adolescents and adults for anxiety,depression and trauma .He is nationally Board Certified in both Clinical and  Forensic psychology ,has a MA in Comparative Religions ,and has practiced and taught Buddhist Meditation for 25 yrs .You may call him at 248 644 7398 

रविवार, 29 अक्टूबर 2017

CAN DIABETES BE HEALED ?

क्या आप जानते है ,मधुमेह एक अपविकासी  (degenerative disease)जीवन शैली रोग है ?

क्या डायबिटीज़ से बचाव संभव है ?क्या इस दिशा में वाकई कुछ हो सकता है ,कहीं से कोई टेका(इमदाद ,help ) मिल सकता   है। इससे जुड़ी वह जानकारी क्या है जो बिरले ही किसी को मालूम होगी वह भी उसे जो बे -हिसाब मेडिकल शोध की खिड़की को खंगलाता होगा ?

बे -शक हम सभी जानते हैं - मधुमेह रोग का दायरा लगातार सुरसा के मुंह सा फैलता जा रहा है फिर चाहे वह अमरीका जैसे खुशहाल खाते पीते दीखते लोग हों या गरीब देश। 

यह भी बहुतों ने सोचा होगा शक़्कर का बे -हिसाब इस्तेमाल इस महामारी की  वजह बनता है।आइये कुछ बातों पर गौर करते हैं :

(१ )हमारे शरीर में खुद को दुरुस्त कर लेने की क्षमता विद्यमान रही आई है और रहती है। जैसे कटी -फटी ऊँगली अपने आप ठीक हो जाती है वैसे ही हमारा अग्नाश्य (अग्नाश्य ग्रंथि ,pancreas )खुद को दुरुस्त कर लेने की क्षमता लिए रहता  है। लेकिन अगर आप अदबदाकर उस गर्म तवे को बारहा हाथ लगाते रहेंगे जो आपको जला देता है ,फिर आपका अल्लाह ही मालिक है कमान आपके हाथ से निकल जाएगी। 

शुगर और हाईग्लाईकेमिक इंडेक्स (G.I)वाला खाद्य वही काम करता है। High -glycemic foods )खाद्य ऐसे तमाम खाद्य हैं प्रसंस्करित खाद्य हैं ,जो जल्दी ही सिंपल सुगर्स में टूट जाते है अपचयित हो जाते है और तुरत फुरत हमारे खून में ग्लूकोज़ के स्तर को ऊपर ले आते हैं। नतीजा होता है हाई -ब्लड -शुगर ,भले कुछ समय के लिए ही सही। 

वाइट फूड्स से आप बाकायदा परिचित हैं फिर भी :

(१ )वाइट राइस (पोलिश वाला परिष्कृत ताजमहल सा जगमग ,लालकिले सा मशहूर देहरादून सा बासमती )

(२ )वाइट ब्रेड 

(३ )वाइट फ्लोर (मैदा )

(४ )वाइट -पोटेटो  

अलबत्ता वाइट स्किन लोग (गोर -चिट्टे नर -नारी )इस लिस्ट से बाहर ही रखे जाएंगे। 

ये तमाम खाद्य उस दर से आपके ब्लड सुगर में देखते ही देखते इज़ाफ़ा कर देते हैं जो सामान्य दर नहीं कही जाएगी। 

ऐसे में बेचारे अग्नाश्य पर दवाब बनता है  उसे अप्रत्याशित तौर पर इन्सुलिन का सैलाब लाना पड़ता है। मामला क्लाउड ब्रस्ट की तरह है हमारे पेन्क्रियेज़ के लिए। ऐसा इसलिए है ,कुदरती प्राकृत अवस्था में हमारे शरीर को शक्कर के बढ़ने की दर का इल्म ही नहीं होता है ,सब कुछ स्वयंचालित व्यवस्था करती रहती है। 

बे -चारे शरीर को ऐसे में मालूम ही कहाँ है यहां मांजरा कुछ और है- ब्लड सुगर बढ़ती ही जाती है बढ़ती ही जाती है। अगर मालूम हो के ये वृद्धि तात्कालिक है ,थम जाएगी तो पेन्क्रियेज़ इन्सुलिन का बे -हिसाब स्राव ही क्यों करे ?

अब इतना फ़ालतू इन्सुलिन तो अपना रंग दिखायेगा वह भी शक़्कर को जलाता ही जाएगा ठिकाने लगाता ही जाएगा और नतीजा होगा -हाइपोग्लाइसेमिया -इस स्थिति में आपके खून में तैरती शक्कर का स्तर एक दम से गिर कर निम्न हो जाएगा। 

बारहा शक्कर के स्तर में आकस्मिक घट-बढ़ धमनियों पर कालांतर में भारी पड़ती है। मैंने डायबिटीज़ के ऐसे मरीज़ बहुत करीब से देखें हैं उनकी चिकित्सा व्यवस्था का पूरा निगरानी तंत्र करीब से देखा है ,जिनकी डायबिटीज़  तीस -पैंतीस  साला हो गई है। 

 इन्हें बार -बार एंजियोग्रेफी की जरूत पेश आ जाती है ,लेकिन  बारहा एंजियोग्रेफी के लिए धमनी ही हाथ नहीं आती बीच में ही कहीं खो जाती है।पूरे परिवार का रोग बन जाता है मधुमेह जीवन- शैली -रोग। अब ऐसे में अग्नाश्य ही बे -चारा कहाँ बचेगा। 

उसका अपविकास होगा के नहीं होगा ?पेंक्रियाज़ डिजेनरेट करेगी या नहीं करेगी।मरता क्या न करता इस अपविकासी  स्थिति आने  से पहले अग्नाश्य अति -सक्रीय (hyperactive )हो जाता है। ताकि कुछ  ले दे के उसका काम तो ठप्प न हो।लेकिन होता उल्ट ही है। आपका ब्लड शुगर लेवल अब जल्दी जल्दी सामन्य से बहुत नीचे स्तर पर आने लगता है।ऐसे में आप एक टाइम का भोजन मिस कर जाएँ वक्त ही न निकाल पाए भोजन का चर्या में से फिर देखिये क्या होता है आपके साथ। 

हाइपो -ग्लाइसीमिया आपके लिए खतरे की घंटी हो सकता है ,चेतावनी यही है आप अपना खान -पानी दुरुस्त कर लें। अग्नाश्य भी सम्भल जाएगा। 

Some will get the shakes if they skip meals . 

क्या आप जानते हैं -अग्नाश्य के स्वास्थ्य को कुछ किण्वक 

या एंजाइम बचाये रह सकते हैं ? 

कुदरती खाना (तमाम किस्म के भोज्य पदार्थ  )इन एन्जाइज़ों के  ढ़ेर  के ढ़ेर लिए रहते हैं। ये कैंची है खाद्य को कतरने की। खाद्य टूट जाएगा अपने सरलतम रूपों में। 

लिटमस पेपर टेस्ट  है यह -वह खाना जल्दी सड़ेगा नहीं दीर्घावधि में भी ,जिसमें एन्जाइम्स का स्तर निम्तर बना होगा।

लेकिन एन्जाइम्स से भरपूर खाने की भंडारण अवधि ,सेल्फ- लाइफ कमतर होगी। परिष्कृत - प्रसंस्करित ,संशाधित खाद्यों में एंजाइम तकरीबन -तकरीबन नष्ट ही हो जाते है। 

ओवर कुक्ड और माइक्रोवेव्ड किए खाने के साथ भी यही होता है -एन्जाइम्स नदारद हो जाते हैं खाद्यों में से। उन्हें उनकी प्राकृत अवस्था में ही परम्परागत तरीके से पका बनाकर खाइये। 
बड़े एहम हैं एंजाइम हमारे भोजन के लिए। इनके अभाव में अग्नाश्य पर क्या गुज़रती होगी ये आप नहीं जानते हैं। 

संदर्भ -सामिग्री :माननीया शाइरी याले जी के साथ एक लम्बी बातचीत पर आधारित है यह आलेख। आप नामचीन काइरोप्रेक्टर हैं। डीसी का मतलब यहां  डॉक्टर आफ काइरोप्रेक्टिक है। 

Dr Sherry Yale ,DC is the owner of TLC Holistic Wellness .She lives in Livonia ,MI 48 150 phone :734 664 0339  

शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

Heart and Cardio-vascular Heart Diseases (Hindi lll )

Heart and Cardio-vascular Heart Diseases (Hindi lll )
Coronary Heart Disease

परिहृद्य धमनी रोग ;परि -हृदय -धमनी -रोग क्या है ?

इसे ही CAD भी कह दिया जाता है यानी कोरोनरी -आर्टरी -डिज़ीज़। दिल की बीमारियों में यह सबसे ज्यादा कॉमन है आमफहम है। इससे हमारी ब्लड वेसिल्स (रक्त शिराएं ,रक्त वाहिकाएं या फिर धमनियां यानी हृदय को रक्त मुहैया करवाने वाली नालियां असरग्रस्त होती हैं। एंजाइना इसी की एक कम गंभीर किस्म की नस्ल है क्योंकि यह चेतावनी देकर आता है दर्द की लहर सीने की हड्डी जहां है वहां से उठकर आगे बढ़ती है हाथों की उंगलियों तक आ जाती है ,कमर के किसी भी हिस्से में  गर्ज़  ये कहीं तक भी जा सकती है। बस मुंह में जीभ  के नीचे एक सब -लिंगुअल छोटी सी गोली रखिये थोड़ा सा आराम करिये। लेकिन यह वैसे ही है जैसे कम शक्ति का ज़लज़ला (भू -कम्प ),इसका बार -बार उठना ,आराम करते वक्त भी आसन्न खतरे की घंटी भी हो सकता है। 
You may be in for a MI (Mayo-cardiac -infarction )

बड़ा ज़लज़ला आपकी जान को आ सकता है मेजर ब्लॉकेड की  ओर इशारा है यह। एंजाइना पेक्टोरिस में तो हृदय को रक्त की आपूर्ति आंशिक तौर पर ही विलम्बित होती है यहां मांजरा दूसरा है। इसकी गंभीरता धमनी अवरोध कितना है कितनी धमनियों में चला आ रहा है आपको इसकी खबर भी  है या नहीं अनेक चीज़ों से तय होता है। 

दिल के आम  दौरे की वजह भी यही बनता है। हार्ट फेलियर का मतलब सिर्फ इतना होता है हृदय की कार्यप्रणाली पूरी तरह ठीक से काम नहीं कर पा रही है। 

कैसे बचा जाए बीमारी से (बचाव के  रण-नीतिक उपाय )क्या हो सकते हैं ?

सामान्य  से कुछ ज्यादा ही रक्त चाप का कायम रहना ,खून में चर्बी की मात्रा का ज्यादा बने रहना ,धूम्रपान की आदत और मोटापा आपके लिए रोग के खतरे के वजन को बढ़ाते हैं। ज़ाहिर हैं इन पे काबू रखिये यही बचाव है। और हाँ !(दिन )चर्या में से व्यायाम का सिरे से नदारद होना ,बैठे -बैठे हुकुम चलाना हरेक काम के लिए दिल के लिए अच्छा नहीं है। 

मधुमेह है तो ब्लड सुगर कंट्रोल फाइन होना चाहिए। 

Understanding Angina Pectoris

जब आपके हृदय के किसी हिस्से को रक्त की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती है ज़रूरी से कमतर रक्त यहां पहुँच रहा है ,आपको सीने में दर्द ,घुटन जैसा कुछ महसूस हो रहा है। तब यह एंजाइना का ही संकेत है। जानकार बतलाते हैं यह एहसास दर्द का डिस्कम्फर्ट का आमतौर पर तो चेस्टरनम के नीचे होता है लेकिन क्या काँधे क्या जबड़े ,गर्दन,  क्या आपकी कमर कहीं भी यह दर्द आपको बे -चैनी दे सकता है। 

विशेष :एक छोटा सा टेलर भर हमने आप के साथ देखा है हृदय और हृद संवहन तंत्र से जुड़े रोगों का। 

संदर्भ -सामिग्री :(१ )http://heartdiseasefaqs.com/cardiovascular-disease/?utm_source=bing&utm_medium=cpc&utm_campaign=heartdiseasefaqs.com&utm_term=cardiovascu

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

Pt Vijya Shankar Mehta JI Kishkindha Kand Katha as Life Management

अकर्ता का भाव आपके जीवन में आये। ऐसा अनुभव करिये आज अंतिम दिन है आपके जीवन का तब देखिये जीवन में कैसे परिवर्तन आते हैं । कथा आपके जीवन में रूपांतरण पैदा करे तभी सार्थकता है कथा सुन ने की ।

आप प्रकृति से जुड़ें ,जड़ वस्तुओं से  चेतन जैसा ही व्यवहार करें। जीवन से सहजता चली गई ,पूरा जीवन चला गया ,जीवन संतुलन का नाम है। जो चल रहा है उसको जम के पकड़ लें जो बीत गया उसे भूल जाएँ। अपेक्षा रहित हो जाएँ।
अनुचित का विसर्जन कथा का परिणाम हो तभी कथा सुन ना सार्थक होगा। अहम को छोड़िये दुर्गुणों से मुक्ति पाइये ,हलके रहिये तभी जीवन में जो समस्याएं कुकुरमुत्तों की तरह चली आती है अनिमंत्रित उनसे दो चार होने की सूझ मिलेगी ,बल मिलेगा सात्विक। चार प्रकार की समस्याएं आती हैं  हमारे जीवन में :

(१ )निजी जीवन की समस्याओं का संबंध होता है मन से। निजी जीवन में अशांति का केंद्र यह मन ही होता है।हमें  मन पे काम करना पड़ेगा अन्यों पर आरोप लगाने से हल नहीं होंगी समस्याएं। निजी जीवन में आप सबसे ज्यादा परेशान स्वयं से होते हैं।

(२ )दूसरी समस्या पारिवारिक जीवन की होती है जिसका संबंध होता है तन से क्योंकि परिवार का सम्बन्ध तन से रहता है।

(३ )तीसरी समस्या है सामाजिक जीवन की जिसका संबंध है जन्म से।

(४ )चौथी समस्या होती है व्यावसायिक जीवन की जिसका संबंध होता है  धन से।

किष्किंधा काण्ड इनका समाधान प्रस्तुत करता है। इसीलिए इसे मानस का रत्न कहा गया है।जैसे रत्न एक बेशकीमती डिब्बी में होता है जिसके नीचे भी अस्तर होता है  और जिसके ऊपर भी अस्तर लगा ढक्कन होता है।किष्किंधा काण्ड भी इसी तरह बीच में है मानस के।

  रामचररित मानस जीवन का प्रबंधन प्रस्तुत करती है। किष्किंधा काण्ड के सारे पात्र समस्या ग्रस्त हैं :

(१ )राम जी की समस्या सीता जी का अपहरण होना है

(२ )लक्षमण सोचते हैं यह सब मेरी गलती के कारण हुआ है

(३ )बाली इसलिए परेशान है सुग्रीव हाथ नहीं आता है जाकर छिप गया है किष्किंधा परबत पर

(४ )सुग्रीव की समस्या यह है बाली मार न दे।

(५  )हमनुमान की समस्या यह है राम कब मिलेंगे।

शरीर मन और आत्मा तीनों का प्रबंधन जीवन का प्रबंधन है अभी हम अपना सारा ध्यान अस्सी फीसद शरीर पर ही लगाते हैं इसे ही वजन देते हैं।ब्यूटीपार्लर की बढ़ती फैलती नर्सरी शहरों कस्बों में इसका प्रमाण है।  फिर भी शरीर से स्वस्थ रहते हुए भी हम अशांत रहते हैं। मन पे हमें काम करना पड़ेगा। मन अन-गढ़ा पड़ा हुआ है इसे गढ़ना पड़ेगा। ध्यान (मेडिटेशन )से गढ़ा जाएगा मन।बिना गढ़ा पथ्थर पथ्थर गढ़ा हुआ भगवान् की मूर्ती।

आपको आप के अलावा कोई तंग नहीं कर सकता ,मन को गढ़िए।मन और आत्मा का प्रबंधन सिर्फ मनुष्य ही कर सकता है पशुपक्षी नहीं ,उनके कार्यकलाप शरीर तक ही हैं।  लेकिन मनुष्य  शरीर के प्रबंधन में ही ९९.९ फीसद अटका हुआ है । भोग यौनि है यह पशुवत इस प्रकार का जीवन जो शरीर प्रबंधन तक ही सीमित है।

इंसान लगातार जानवर होता जा रहा है तो क्यों ?सोचिये ज़वाब आपको ही ढूंढना है।

माँ अंजना हनुमान को कहती हैं जीवन में तुम्हें बहुत बड़ा आदमी बन ना है तुम्हें राम से मिलना है राम के लिए काम करना है जीवन में तीन बातें याद रखना

 -प्रार्थना करना ,प्रार्थना  (उपासना मनुष्य को विनम्र बनाती है ),परिश्रम और इन दोनों के बाद भी प्रतीक्षा करना -धैर्य भक्ति का संबल है बहुत बड़ा गुण  है शर्त है।

अक्सर हनुमान बचपन में अकेले बैठे खुद से पूछा करते थे -आखिर मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है एक दिन माँ से भी यही सवाल पूछा तब उल्लेखित ज़वाब मिला।

बाली का बध हमें बतलाता है परिवार के सम्बन्ध  नीति और नैतिकता पर चलने चाहिए। बाली अपने अनुज की पत्नी का अपहरण करके ले आता है इसीलिए मारा जाता है लेकिन जाते -जाते अंगद को भगवान के  हवाले करके ये सन्देश  भी दे जाता है अपने जीते जी अपनी संतानों को भगवान से जोड़ देना।

माता -पिता को भारतीय संस्कृति में भगवान् का दर्ज़ा दिया गया है। आपको संतान के प्रति करुणा आखिर तक नहीं छोड़नी है संतान जो भी करे ये वो जाने। संताने माँ बाप का आईना होती हैं आईने में छवि विकृत है तो आईना साफ़ किया जाता है तोड़ा नहीं जाता ,कहीं न कहीं हमें अपना आचरण भी चेक करना पड़ेगा कहीं संतान हमारी वजह से तो नहीं बिगड़ रही।

मेडिटेशन कर लेना १५ मिनिट संतानें बचाने के लिए आज यह ज़रूरी है आज संतान केवल विचार और  शब्दों से नहीं पाली जा सकती ,उसके अंदर उतरना  पड़ेगा पहले अपना आचरण ठीक करना  पड़ेगा ।

सत्संग से क्रोध समाप्त हो जाता है। कुपित लक्ष्मण जी का क्रोध राम का यशोगान सुनने पर समाप्त हो जाता है लक्ष्मण  सुग्रीव को समझाने आये थे अपने ढंग से -तुम भगवान् का काम भूल गए ,सीता की खोज का काम भूल गए।

साकिया भले टाल दे मुझे मयखाने से ,

मेरे हिस्से की छलक जाएगी पैमाने से।

सुग्रीव राम से कृपा माँगते  हैं ये कहते हुए काम क्रोध और लोभ  के हण्डों  से कौन बचा है फिर मैं ठहरा नीच कुल का वानर गलती हुई मुझसे -तेरी कृपा के बिना अब मेरा पार नहीं मेरे साधने से कुछ न सधेगा।सुग्रीव भगवान से कृपा मांगना सिखलाते हैं।

किष्किंधा काण्ड का एक और सन्देश है :गलत बात एक सीमा तक ही सहना ,इसके आगे इसका प्रतिरोध न करना इसे बढ़ावा देना होगा। कोई एक चांटा मारे दूसरा आगे करना यहां तक तो ठीक लेकिन तीसरा मारे तो पलट के ज़ोरदार मुक्का मारना बुरा नहीं है।

संदर्भ -सामिग्री :

https://www.youtube.com/watch?v=HmT4ehEspeI

Women & Cardiovascular Disease(Hindi ll )

Heart and Cardiovascular diseases (Hindi ll )

Women & Cardiovascular Disease


अक्सर परिवार के सभी लोग -क्या मर्द और क्या औरत ,यही सोचते हैं -दिल की बीमारी महज़ मर्दों की बीमारी है। अपने भारत में अक्सर औरतों के सीने से उठने वाले दर्द के बारे में कह दिया जाता है -वहम है आपको गैस बन रही होगी (जबकि ऐसा होना एक मेडिकल कंडीशन भो हो सकती है एंजाइना या फिर और बड़ा ब्लॉकेड (धमनी अवरोध ),जब तक पता चलता है जांच से बहुत देर हो चुकी होती है। 

गौर तलब है संयुक्त राज्य अमेरिका (उत्तरी अमरीका )में मौत की एक बड़ी वजह औरतों और मर्दों में हृद -रोग ही बना हुआ है। 

नोट  करने लायक बात यह भी है , महिलाओं के मामले में स्ट्रोक अमरीका में औरतों की मौत का तीसरा बड़ा कारण बना हुआ है। 

Cardio -vascular Disease Risk Factors 


विशेष जाति  या धर्म समूह ही नहीं सभी जातियों ,समुदायों की महिलाओं का रोग है दिल का रोग। मधुमेह से ग्रस्त महिलायें भी सहज ही इससे असरग्रस्त हो जाती है। अफ़्रीकी अमरीकी महिलाओं में इसकी पूर्वापरता और दिल की बीमारी की दर गौरी महिलाओं के मुकाबले ज्यादा देखी  गई है।एशियाई मूल के लोगों में भी ऐसा ही देखने में आया है।  

हृद-वाहिका तंत्र से सम्बन्धी  (हृदय और रक्त संचरण तंत्र सम्बन्धी रोग )

 कितने किस्म के हैं ?


Types of Cardiovascular Diseases

यहां हम कुछ आम रोगों का ही ज़िक्र कर रहें हैं जो बहुत कॉमन हैं,आमतौर पर देखने में आये हैं :

(नेशनल वूमेन हेल्थ इन्फर्मेशन सेंटर (NWHIC)इनका विस्तृत ब्योरा अपनी वेब साइट पर उपलब्ध करवाता है। ) 

(१  )कार्डिओवैस्कुलर अथेरोस्क्लेरोसिस :इस मेडिकल कंडीशन में धमनियां संकरी भी हो जाती हैं लोच खोकर कठोर भी। धमनी काठिन्य (आर्टेरिओस्क्लेरोसिस )ही है यह एक किस्म का। और यह सब एक दिन में नहीं हो जाता है हमारे उम्रदराज़ होते जाने  के संग -संग कुछ धमनी काठिन्य तो स्वत :स्फूर्त होता है। साथ साथ तात्कालिक तौर पर उम्र के संग -साथ होता है । सभी कुछ तो छीजता है उम्र के साथ। 

अथेरोस्क्लेरोसिस में धमनी की अंदरूनी दीवार पे प्लाक (चिकनाई जैसा वसीय कचरा )जमा होते रहने से धमनियां संकरी हो जाती है। ट्रांस फेट और जीवन शैली से जुड़े भ्रष्ट - खान -पान का भी इसमें हाथ रहता ही है। 

क्या है खून का थक्का ?

आइये समझते हैं :

अंडरस्टैंडिंग ब्लड क्लॉट्स :परिणाम होते हैं ये थक्के ,ठंडा होने पर जमने वाली चिकनाई से पैदा वसीय प्लाक्स के ,कोलेस्ट्रॉल यानी खून में घुली अतिरिक्त चर्बी और अन्य कचरे के जो धमनी की अंदरूनी दीवारों पर चस्पां होकर उन्हें  संकरा बना देते हैं। रक्त संचरण में अवरोध पैदा होने से पैदा होतें हैं ये थक्के जो खून के सहज प्रवाह में और बाधा डालते हैं। 

हार्ट अटेक्स और सेरिब्रल स्ट्रोक (दिमाग का दौरा )इन्हीं थक्कों से पड़ते हैं। 

अलावा इसके खून में घुली हुई चर्बी कोलेस्ट्रॉल की मात्रा का निर्धारित मात्रा से ज्यादा हो जाना ,धूम्रपान का शौक (जीवन शैली में धूम्रपान को फैशन स्टेटमेंट मान ने की भूल करना ,भारत में महिलाओं का एक वर्ग इससे ग्रस्त है ),उच्च रक्त चाप से ,मधुमेह से पहले ही ग्रस्त होना ,मोटापा और बैठे -बैठे घंटों काम करने की मजबूरी ,जड़ -दैनिकी जिसमें घूमने फिरने का अवकाश नहीं है ,आपके लिए दिल और दिमाग के दौरे या अटेक के वजन को बढ़ाते हैं जोखिम हैं बड़े भारी।दिल को जोखों यूं और भी हैं।  

(शेष अगली और तीसरी क़िस्त में ...) 

Heart and Cardio -vascular Diseases (Hindi ll )

Heart and Cardiovascular diseases (Hindi ll )

Women & Cardiovascular Disease


अक्सर परिवार के सभी लोग -क्या मर्द और क्या औरत ,यही सोचते हैं -दिल की बीमारी महज़ मर्दों की बीमारी है। अपने भारत में अक्सर औरतों के सीने से उठने वाले दर्द के बारे में कह दिया जाता है -वहम है आपको गैस बन रही होगी (जबकि ऐसा होना एक मेडिकल कंडीशन भो हो सकती है एंजाइना या फिर और बड़ा ब्लॉकेड (धमनी अवरोध ),जब तक पता चलता है जांच से बहुत देर हो चुकी होती है। 

गौर तलब है संयुक्त राज्य अमेरिका (उत्तरी अमरीका )में मौत की एक बड़ी वजह औरतों और मर्दों में हृद -रोग ही बना हुआ है। 

नोट  करने लायक बात यह भी है , महिलाओं के मामले में स्ट्रोक अमरीका में औरतों की मौत का तीसरा बड़ा कारण बना हुआ है। 

Cardio -vascular Disease Risk Factors 


विशेष जाति  या धर्म समूह ही नहीं सभी जातियों ,समुदायों की महिलाओं का रोग है दिल का रोग। मधुमेह से ग्रस्त महिलायें भी सहज ही इससे असरग्रस्त हो जाती है। अफ़्रीकी अमरीकी महिलाओं में इसकी पूर्वापरता और दिल की बीमारी की दर गौरी महिलाओं के मुकाबले ज्यादा देखी  गई है।एशियाई मूल के लोगों में भी ऐसा ही देखने में आया है।  

हृद-वाहिका तंत्र से सम्बन्धी  (हृदय और रक्त संचरण तंत्र सम्बन्धी रोग )

 कितने किस्म के हैं ?


Types of Cardiovascular Diseases

यहां हम कुछ आम रोगों का ही ज़िक्र कर रहें हैं जो बहुत कॉमन हैं,आमतौर पर देखने में आये हैं :

(नेशनल वूमेन हेल्थ इन्फर्मेशन सेंटर (NWHIC)इनका विस्तृत ब्योरा अपनी वेब साइट पर उपलब्ध करवाता है। ) 

(१  )कार्डिओवैस्कुलर अथेरोस्क्लेरोसिस :इस मेडिकल कंडीशन में धमनियां संकरी भी हो जाती हैं लोच खोकर कठोर भी। धमनी काठिन्य (आर्टेरिओस्क्लेरोसिस )ही है यह एक किस्म का। और यह सब एक दिन में नहीं हो जाता है हमारे उम्रदराज़ होते जाने  के संग -संग कुछ धमनी काठिन्य तो स्वत :स्फूर्त होता है। साथ साथ तात्कालिक तौर पर उम्र के संग -साथ होता है । सभी कुछ तो छीजता है उम्र के साथ। 

अथेरोस्क्लेरोसिस में धमनी की अंदरूनी दीवार पे प्लाक (चिकनाई जैसा वसीय कचरा )जमा होते रहने से धमनियां संकरी हो जाती है। ट्रांस फेट और जीवन शैली से जुड़े भ्रष्ट - खान -पान का भी इसमें हाथ रहता ही है। 

क्या है खून का थक्का ?

आइये समझते हैं :

अंडरस्टैंडिंग ब्लड क्लॉट्स :परिणाम होते हैं ये थक्के ,ठंडा होने पर जमने वाली चिकनाई से पैदा वसीय प्लाक्स के ,कोलेस्ट्रॉल यानी खून में घुली अतिरिक्त चर्बी और अन्य कचरे के जो धमनी की अंदरूनी दीवारों पर चस्पां होकर उन्हें  संकरा बना देते हैं। रक्त संचरण में अवरोध पैदा होने से पैदा होतें हैं ये थक्के जो खून के सहज प्रवाह में और बाधा डालते हैं। 

हार्ट अटेक्स और सेरिब्रल स्ट्रोक (दिमाग का दौरा )इन्हीं थक्कों से पड़ते हैं। 

अलावा इसके खून में घुली हुई चर्बी कोलेस्ट्रॉल की मात्रा का निर्धारित मात्रा से ज्यादा हो जाना ,धूम्रपान का शौक (जीवन शैली में धूम्रपान को फैशन स्टेटमेंट मान ने की भूल करना ,भारत में महिलाओं का एक वर्ग इससे ग्रस्त है ),उच्च रक्त चाप से ,मधुमेह से पहले ही ग्रस्त होना ,मोटापा और बैठे -बैठे घंटों काम करने की मजबूरी ,जड़ -दैनिकी जिसमें घूमने फिरने का अवकाश नहीं है ,आपके लिए दिल और दिमाग के दौरे या अटेक के वजन को बढ़ाते हैं जोखिम हैं बड़े भारी।दिल को जोखों यूं और भी हैं।  

(शेष अगली और तीसरी क़िस्त में ...) 

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

Heart and Cardiovascular diseases ?

अक्सर हृद रोग (Heart disease )और ह्रदय तथा रक्त संचरण सम्बन्धी रोगों को यकसां मान और समझ लिया जाता है जबकि दोनों एक दूजे से जुदा हैं और इनका ताल्लुक हमारे शरीर के अलग -अलग अंगों से रहता है। 

हृदय रोग का मतलब सिर्फ दिल से और दिल से सम्बंधित रक्त -वाहिका तंत्र (रक्त -शिरा -तंत्र blood vessel system )तक ही सीमित रहता है। 

हृद -शिरा या वाहिका - संबंधी कार्डिओ- वैस्कुलर डिज़ीज़ का सबंध हृदय से तो होता ही है हृद के अलावा पूरे रक्त शिरा तंत्र ,रक्त संचरण से रहता है जो पूरे शरीर को भी रक्त मुहैया करवाता है, पैर के अंगूठे से दिमाग तक होने वाले संचरण से इसका संबंध रहता है। इसमें सब प्रकार की ब्लड वेसिल्स (शिराएं ,धमनियां तथा शरीर की सबसे छोटी रुधिर वाहिनियां कपिलरीज़ भी शामिल रहती हैं। फिर चाहे वह दिमाग को रक्त मुहैया करवाने वाला वाहिका तंत्र हो या टांग को ,फेफड़ों का  हो या आँख के परदे पे फ़ैली कपिलरीज़ का जाल ।  

'कार्डिओ' शब्द का अर्थ होता है हृदय -संबंधी तथा 'वैस्कुलर 'रक्त वाहिका तंत्र या रक्त शिरा तंत्र से ताल्लुक रखने वाला शब्द  है। 

Although often thought to be the same condition, heart and cardiovascular diseases are different and involve different parts of the body. Heart disease refers only to the heart and the blood vessel system of the heart.

Cardiovascular disease refers to heart disease and diseases of the blood vessel system (arteries, capillaries, veins) throughout the body, such as the brain, legs and lungs. “Cardio” refers to the heart and “vascular” refers to the blood vessel system.

हृदय है क्या है  ?दिल चीज़ क्या है कौनसी शै का नाम दिल है ?

हृदय एक मजबूत पेशी(strong muscle ) ही है। यह रक्त उठाने उलीचने, पूरे शरीर को मुहैया करवाने वाला एक रक्त पम्प है जिसका आकार हमारी मुठ्ठी  मुष्टिका के आकार से बस थोड़ा सा ही आकार में बड़ा रहता है। यही संचरण तंत्र में खून उलीचता रहता है। खून की मोटी , बारीक ,बाल सी पतली नालियों (arteries ,veins ,capillaries ) का एक  तंत्र है हमारी संचरण प्रणाली।

Understanding the flow of blood 

हृद -फेफड़ा तंत्र यानी हृदय और हमारे दोनों फेफड़े इसके प्रमुख करता धरता हैं। इनको रक्त मुहैया करवाने  वाली और निकासी करने वाली अनेक नालियां हैं जैसा ऊपर बतलाया गया है। 

धमनियों और सबसे छोटी खून की नालियों का काम हमारे हृदय और फेफड़ों से आक्सीजन युक्त और पुष्टिकृत रक्त लेकर शेष शरीर को मुहैया करवाना है। शिराओं का काम रक्त को वापस लाना है।यह वह रक्त है जो शेष शरीर को आक्सीजन और पुष्टिकर तत्व मुहैया करवाके उनके पुनर -आभरण के लिए फेफड़ों  और दिल की ओर  लौट रहा है।

(शेष अगले अंक में,दूसरी क़िस्त का इंतज़ार कीजिये  )


सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )http://heartdiseasefaqs.com/cardiovascular-disease/?utm_source=bing&utm_medium=cpc&utm_campaign=heartdiseasefaqs.com&utm_term=cardiovascu   

वो जिसको भी मिलते हैं , 'आम ' को ख़ास बना देते हैं। ये भी कमाल का 'पीर 'है इश्क , छोड़ देता है मुरीद बना के

मकतब -ए-इश्क का दस्तूर निराला देखा ,

उसको छुट्टी न मिली ,जिसने सबक याद किया।

कुछ लोग बिंदास जीते हैं प्यार करने और किये जाने के लिए ही भगवान उन्हें इस दुनिया में भेजता है। ये लोगों के दिलों में रहते हैं भले इनका लौकिक आवास बे -जोड़ हो। सबसे कनेक्ट होना कोई इनसे सीखे -ये आते हैं तो महफ़िल में आफताब उतर  आता है।पूरा माहौल चार्ज्ड हो जाता है। न पद का गुरूर न अप्राप्ति का मलाल।

कई कसर जान बूझकर छोड़ देता है वाहगुरु  इनकी दात में। शायद उसकी एक ही इच्छा रहती है ये खिलें और खेलें मुस्काएं और लोगों का हौसला बढ़ाएं। बाँटें अपना -पन निसि -बासर।

सौभाग्य रहा हमारा हम ऐसे कई लोगों के परिचय के दायरे में आये।

जिसने तुम्हारी याद की  तुमने उसे भुला दिया ,

हम न तुम्हें भुला सके ,तुमने हमें भुला दिया।

गज़ब ये- इन्हें हर कोई याद रहता है ,भूलें तब जब याद न रहे। सब कुछ याद रहता है इन्हें।

आप जिनके करीब होते हैं ,

वो बड़े खुशनसीब होते हैं।

ऐसे ही एक हर दिल अज़ीज़ ,अज़ीमतर हमारे दिल के बहुत करीब एक शख्श हैं मान्यवर डेप -काम श्री एम. डी. सुरेश  .(डेप्युटी कमाडाँट इंडियन नेवल एकादमी ,एषिमला ,कन्नूर ,केरल प्रदेश )  .

वो जिसको भी मिलते हैं ,

'आम ' को ख़ास बना देते हैं।

ये भी कमाल का 'पीर 'है इश्क ,

छोड़ देता है मुरीद बना के।

बा -हवस पाँव न रखियो कभी इस राह के बीच ,

कूचा -ए -इश्क है ये रहगुज़र आम नहीं।

(इश्क की गलियां हैं ये -ना -मुराद !आम रास्ता नहीं है ).

ये इश्क नहीं आसाँ ,एक आग का दरिया है -

और डूब के जाना है।

maktab-e-ishq ka dastur nirala dekha - Sher - Rekhta
rekhta.org/couplets/maktab-e-ishq-kaa-dastuur-niraalaa-dekhaa-meer-tahir-ali-rizvi-couplets
maktab-e-ishq ka dastur nirala dekha| Complete Sher of Meer Tahir Ali Rizvi at Rekhta.org

बुधवार, 25 अक्टूबर 2017

what are heart and cardiovascular diseases?

अक्सर हृद रोग (Heart disease )और ह्रदय तथा रक्त संचरण सम्बन्धी रोगों को यकसां मान और समझ लिया जाता है जबकि दोनों एक दूजे से जुदा हैं और इनका ताल्लुक हमारे शरीर के अलग -अलग अंगों से रहता है। 

हृदय रोग का मतलब सिर्फ दिल से और दिल से सम्बंधित रक्त -वाहिका तंत्र (रक्त -शिरा -तंत्र blood vessel system )तक ही सीमित रहता है। 

हृद -शिरा या वाहिका - संबंधी कार्डिओ- वैस्कुलर डिज़ीज़ का सबंध हृदय से तो होता ही है हृद के अलावा पूरे रक्त शिरा तंत्र ,रक्त संचरण से रहता है जो पूरे शरीर को भी रक्त मुहैया करवाता है, पैर के अंगूठे से दिमाग तक होने वाले संचरण से इसका संबंध रहता है। इसमें सब प्रकार की ब्लड वेसिल्स (शिराएं ,धमनियां तथा शरीर की सबसे छोटी रुधिर वाहिनियां कपिलरीज़ भी शामिल रहती हैं। फिर चाहे वह दिमाग को रक्त मुहैया करवाने वाला वाहिका तंत्र हो या टांग को ,फेफड़ों का  हो या आँख के परदे पे फ़ैली कपिलरीज़ का जाल ।  

'कार्डिओ' शब्द का अर्थ होता है हृदय -संबंधी तथा 'वैस्कुलर 'रक्त वाहिका तंत्र या रक्त शिरा तंत्र से ताल्लुक रखने वाला शब्द  है। 

Although often thought to be the same condition, heart and cardiovascular diseases are different and involve different parts of the body. Heart disease refers only to the heart and the blood vessel system of the heart.

Cardiovascular disease refers to heart disease and diseases of the blood vessel system (arteries, capillaries, veins) throughout the body, such as the brain, legs and lungs. “Cardio” refers to the heart and “vascular” refers to the blood vessel system.

हृदय है क्या है  ?दिल चीज़ क्या है कौनसी शै का नाम दिल है ?

हृदय एक मजबूत पेशी(strong muscle ) ही है। यह रक्त उठाने उलीचने, पूरे शरीर को मुहैया करवाने वाला एक रक्त पम्प है जिसका आकार हमारी मुठ्ठी  मुष्टिका के आकार से बस थोड़ा सा ही आकार में बड़ा रहता है। यही संचरण तंत्र में खून उलीचता रहता है। खून की मोटी , बारीक ,बाल सी पतली नालियों (arteries ,veins ,capillaries ) का एक  तंत्र है हमारी संचरण प्रणाली।

Understanding the flow of blood 

हृद -फेफड़ा तंत्र यानी हृदय और हमारे दोनों फेफड़े इसके प्रमुख करता धरता हैं। इनको रक्त मुहैया करवाने  वाली और निकासी करने वाली अनेक नालियां हैं जैसा ऊपर बतलाया गया है। 

धमनियों और सबसे छोटी खून की नालियों का काम हमारे हृदय और फेफड़ों से आक्सीजन युक्त और पुष्टिकृत रक्त लेकर शेष शरीर को मुहैया करवाना है। शिराओं का काम रक्त को वापस लाना है।यह वह रक्त है जो शेष शरीर को आक्सीजन और पुष्टिकर तत्व मुहैया करवाके उनके पुनर -आभरण के लिए फेफड़ों  और दिल की ओर  लौट रहा है।

(शेष अगले अंक में,दूसरी क़िस्त का इंतज़ार कीजिये  )


सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )http://heartdiseasefaqs.com/cardiovascular-disease/?utm_source=bing&utm_medium=cpc&utm_campaign=heartdiseasefaqs.com&utm_term=cardiovascu   

Does talcum powder — powder that many have slathered on babies for generations -- really cause cancer?

Does talcum powder — powder that many have slathered on babies for generations -- really cause cancer?


सेहत :क्या सचमुच टेलकम पाउडर भी अंडाशय कैंसर (ovarian cancer )की 

वजह बन रहा है ?वैज्ञानिक पहलू  :

टेलकम पाउडर जब प्रजनन अंगों के गिर्द छिड़का जाता है तब इसके सूक्ष्म कण योनि में सुगमता से जगह बना लेते हैं ,गर्भाशय गर्दन के पार ये न सिर्फ गर्भाशय तक आ जाते हैं अंडवाहिनी नलिकाओं (fallopian tubes )में भी प्रवेश ले लेते हैं।अण्ड़ाशय में ही पैठ पसर जाते हैं।  

आखिर फीमेल एग मैथुन के दौरान स्खलित स्पर्मेटे-जोआ से काम के प्रजनन क्षम स्पर्म्स (या शुक्राणओं )को एक अपार चुंबकीय बल की मानिंद अंदर खींच के ले जाता है बस इसे मौक़ा मिलने की देर होती है।बुनावट और संरचना ही ऐसी है वल्वा की यौनिक प्रणाली की। नारी का  प्रजनन तंत्र एक पेचीला लकिन नाज़ुक तंत्र या प्रणाली है . 

शिशुओं को जो डायपर पहनाया जाता है यह माँ के लिए ही सुविधा बनता है शिशु के लिए इससे ज्यादा वाहियात और कोई बात स्वास्थ्य विज्ञान के नज़रिये से हो नहीं सकती। ऊपर से तुर्रा ये के डायपर बदलते वक्त खुलकर पाउडर और छिड़क दिया जाता है आसपास । 

अब अगर आप किसी फंक्शन में हैं तो सारा सौदा मलमूत्र वहीँ  डायपर के अंदर ही पुट्रिफाई हो रहता है।

जन्म के समय कन्याएं अपने हिस्से के फीमेल एग्स लिए ही इस दुनिया में आती हैं ,जिनका प्रजनन क्षम उमर बनी रहने तक क्षय होता रहता है टेक आफ होता है यौवनारम्भ पर प्यूबर्टी पर।जब षोडशी रजस्वला हो जाती है मासिक चक्र की शुरुआत हो जाती है । मेनआरके कहा जाता है इस चरण को यानी मेंस्ट्रुअल साइकिल अब आरम्भ हो जाता है।  

कैंसर एवं  ,रोगविज्ञान के माहिरों ने कई मर्तबा कैंसर ग्रस्त अण्ड़ाशय -ऊतकों (Ovarian tissues )में टेलकम पाउडर के अल्पांश को बाकायदा देखा दर्ज़ किया है। यह कोई सुनी सुनाई बात नहीं है आँखन देखी  है। ऊतक जांच से ये सच्चाई सामने बार बार आयी  है। 

अलावा इसके पेल्विक लिम्फ नॉड्स (श्रोणि क्षेत्र की लसिका गांठों ,लसिका ग्रंथियों में भी इसकी व्याप्ति मिली है गर्ज़ ये के फेलोपियन ट्यूब्स से होता हुआ है आमाशय स्पेस में भी आया है टेलकम पाउडर । 

२०१३ में पहली मर्तबा एक अंडाशय कैंसर की जद में आई अमरीकी महिला ने एक नामचीन उपभोक्ता सामिग्री बनाने वाले अमरीकी निगम  को कचहरी में इसी वजह से घसीटा था जिन्होंने इसी कम्पनी का तैयार किया टेलकम पाउडर बरसों बरस इस्तेमाल किया था। 
फिलवक्त ऐसी ही बदनसीब कोई हज़ार अमरीकी महिलायें इस निगम के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए कतार बांधे कमर कसके खड़ी  हैं। 

स्त्री रोग और प्रसूति विज्ञान के माहिरों के अनुसार हर बरस कोई दस हज़ार अमरीकी महिलाएं टेलकम पाउडर के इस्तेमाल के चलते ओवेरियन कैंसर का शिकार हो रहीं हैं। 

कई अध्ययनों से इसकी पुष्टि हुई है अण्ड़ाशय कैंसर के खतरे का वजन ३३ फीसद बढ़ा हुआ हो सकता है इन अध्ययनों का यह साफ़ संकेत है। 

कमसे कम इतना तो हो- ये उपभोक्ता निगम तम्बाकू निगमों की तरह अपने उत्पाद पे एक चेतावनी ही ज़ारी करें -टेलकम पाउडर  का इस्तेमाल महिलाओं में एक ख़ास किस्म के कैंसर को बढ़ावा दे सकता है इस्तेमाल से पूर्व अपने हेल्थ केअर माहिर से पूँछें। 

संदर्भ -सामिग्री :

http://www.cnn.com/2016/05/03/opinions/talcum-powder-lawsuit-award-vox/index.html

विशेष :आंग्ल भाषा प्रेमियों के लिए मूल पाठ अंग्रेजी भाषा में भी दिया जा रहा है संदर्भ -सामिग्री सहित। 

There are more than 1,000 women lined up to sue Johnson & Johnson over just that: cancer diagnoses they attribute to the company's talcum powder products.

On Monday, a St. Louis jury ordered the company to pay $55 million to a South Dakota woman who had used talcum powder for years and has ovarian cancer.

So what's the big problem with a product millions of people have considered so safe they put it on babies during diaper change?
The theory is that talcum powder, when applied in the genital region, manages to work its way up through the vagina, the cervix, the uterus, the fallopian tubes and into the ovaries.
The female reproductive system has, after all, evolved to facilitate the upward mobility of sperm in order to fertilize eggs that have descended into the uterus, and the microscopic particles of talcum powder may well keep traveling all the way up.
Indeed, doctors have identified talc particles inside cancerous ovarian tissue. Talc has also been found in pelvic lymph nodes, indicating that it made it all the way out of the fallopian tubes and into the abdominal space.
In 2013, Deane Berg of Sioux Falls, South Dakota, was the first woman diagnosed with ovarian cancer to take on the medical and consumer products giant.
She came away without a dime awarded to her even though she won her suit; instead of awarding monetary damages the jury told Johnson & Johnson that it should affix a warning to its talc products like Johnson's Baby Powder and Shower to Shower, one that says the product could cause cancer.
And Berg's lawsuit laid historic legal groundwork: The company will now have to pay a combined $127 million in damages awarded in two cases by St. Louis juries this year if its appeals aren't successful.
In the Berg lawsuit, Brigham and Women's Hospital obstetrician and gynecologist Dr. Daniel Cramer testified to his opinion that upwards of 10,000 women a year are developing ovarian cancer in part due to their use of talcum powder.
Pathologist Dr. John Godleski, also at Brigham, found talc particles inside Berg's ovarian tumor tissue.
I don't have records from the two St. Louis cases where juries have penalized Johnson & Johnson with megamillion-dollar awards to the plaintiffs, but I'd expect those juries saw similar evidence to what Berg presented in 2013.
In fact, Cramer and his colleagues at Brigham just published a large study looking back at over 2,000 women diagnosed with ovarian cancer and comparing their use of talcum powder with that of a similar group of women who didn't have ovarian cancer.
In showing a strong link between talc use and ovarian cancer, a 33% higher risk overall, the Brigham group specifically faulted another large study published in 2014 that didn't identify a risk. That study, Cramer wrote, didn't look at premenopausal women who seem to be at higher risk, and didn't properly weigh the role of estrogen use, which seems to be a necessary ingredient in upping the risk for ovarian cancer in postmenopausal women.
The medical debate over whether talcum powder causes ovarian cancer goes back many decades, and the attorneys in these cases are demonstrating, through internal documents they've subpoenaed, that Johnson & Johnson knew about this research.
They allege that Johnson & Johnson is akin to the tobacco companies that knew about research linking smoking to lung cancer but kept this information from the public and fought off attempts to regulate their product.
I don't think Johnson & Johnson deserves quite the opprobrium we reserve for the tobacco companies, since conflicting research did exist, but they and companies like them are setting themselves up for these kinds of lawsuits if they're not open and transparent with consumers.
A smarter approach would have been to acknowledge the worrisome research studies in their consumer literature, on their websites, and to have flagged customers somehow on their product labeling to review this material with their doctors and decide for themselves whether and how to use the products.
But it's not all Johnson & Johnson's responsibility. Federal agencies like the Food and Drug Administration, the Centers for Disease Control and Prevention and the Consumer Products Safety Commission need the authority and the funding to keep up with reported and published adverse effects of all consumer products, and actively weigh when mandatory warnings are necessary.
Companies should welcome the federal agencies taking off some of the load -- Johnson & Johnson could have shared some of its liability with such an agency by regularly checking in about how it should act, or what warning it should issue, in light of recent research.
We have a problem when it falls to trial juries to weigh the scientific data on a given product against a particular medical case and decide whether a company should be adding warning labels, or paying out large sums in the hopes the companies will learn a lesson.
That's one way to get the job done, but it's after the fact, it's messy, and it's prone to error and excess. We can expect that appeals will significantly reduce these headline-grabbing jury awards.
Reference:http://www.cnn.com/2016/05/03/opinions/talcum-powder-lawsuit-award-vox/index.html