गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

कितने वर्चुअल हो गए लोगों के ज़ज़्बात , लौंडे ही करने लगे लौंडी बनके बात।



फेसबुक बोले तो मुख -पोथी (पर्याय वाची मुख -चिठ्ठा )
“रूप”-शब्द-का हो रहा, यहाँ सुखद संयोग।
मुख-पोथी पर आ गये, सभी तरह के लोग।।
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निर्भय हो विचरण करें, तीतर और बटेर।
एक घाट पर पी रहे, पानी, बकरी-शेर।।
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आभासी संसार है, आभासी सम्बन्ध।
मिलने-जुलने के लिए, हो जाते अनुबन्ध।।
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विद्वानों की पंक्ति में, आ बैठे अल्पज्ञ।
पंचायत में ज्ञान की, गौण हुए मर्मज्ञ।।
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मुखपोथी के सामने, मर्यादा लाचार।
मतलब के रिश्ते यहाँ, मतलब का सब प्यार।।
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आगे-पीछे नाम के, “कवि” जिनका उपनाम।
ऐसे लोगों से हुआ, काव्य आज बदनाम।।
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बिन भाषा बिन भाव के, कविवर लिखते आज।
मुखपोथी में हो गया, अब ये आम रिवाज।।
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छद्म नाम से आ गये, मुखपोथी पर लोग।
नर नारी के नाम से, सुख का करते भोग।।
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पोथीबुक पर अधिकतर, बातें हैं अश्लील।
भोली चिड़िया को यहाँ, झपट रही है चील।।
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बिना प्रमाणक के यहाँ, व्यक्ति न आने पाय।
मुखपोथी को चाहिए, करने आज उपाय।।

एक प्रति-क्रिया उल्लेखित पोस्ट मुख पोथी पर :
कितने वरच्यल हो गए लोगों के जज़्बात ,
लोंडे ही करने लगे लौंडी बनके बात। 
बचके रहना दोस्तों ये आभासी मेल ,
'बातों -बातों' में यहां नाभि -नीचे खेल। 
मुख -चिठ्ठे की लूट है लूट सके तो लूट ,
मानुस जन्म अमोल है कूट सके तो कूट। 
सोच समझके दोस्तों -गैरों को गले लगायें ,
ठोक पीट के ही यहां सबको मीत बनायें। 
          --------(वीरेंद्र शर्मा उर्फ़ वीरुभाई बुलन्दशहरी )

संदर्भ -सामिग्री :http://uchcharan.blogspot.com/

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