मंगलवार, 10 अक्टूबर 2017

"राम का नाम भी लोगे तो ऐसे ही जला दिए जाओगे।"तौबा करो अयोध्या से अब वरना ...हश्र जानते ही हो।गो .....धरा .... गोधरा गोधरा गोधरा।

क्या हैं गुजरात हाईकोर्ट के गोधरा फैसले के निहितार्थ ?क्यों सांप सूंघ गया है मीडिया को ?

भाजपा -नीत सरकार के सत्ता में आते ही इंतहापसन्द मुसलमान जो कांग्रेस राज में परितुष्ट रखे जाते थे जिनका हिन्दुस्तान की सम्पत्ति पर पहला हक़ जतलाया दोहराया  जाता था - जिस तरह मुंह खोलकर बोलता रहा है ,वामपंथी कहीं से
एक कन्हैयाँ पकड़ लाये ,उससे पहले रोहित वोमिला के दुखद अंत की वजह बने वह सिलसिला अभी रुका नहीं है।

परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,

हवा में सनसनी घोले हुए हैं।

वर्तमान कांग्रेस -वामपंथ पोषित  जेहादी सोच के लोगों का हिन्दुस्तान पर बढ़ता शिकंजा और पंजे की शै के  मद्दे नज़र हमें उल्लेखित पंक्तियाँ अनायास याद हो आईं गोधरा के फ़ांसीयाफ्ता मुजरिमों को गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा  मिली राहत पर -

सकल जगत में खालसा पंथ गाजे ,जगे धर्म हिन्दू सकल भंड भाजे।

भावसार : सारी  कुरीतियां मिट जाएँ ,खालसा पंथ जागे -सम्भल जाएँ सनातन धर्मी समाज को तिरछी निगाह से देखने  वाले। यही सन्देश था गुरुगोविंद सिंह का खालसा पंथ की नींव रखते वक्त।औरंगजेबी सोच को फतहनामा था ये पंक्तियाँ।
लेकिन कांग्रेस के इरादे आज़ादी के पहले से ही कुछ और चले आये हैं :

१९२५ में कांग्रेस ने खालसा पंथ को एक अलग  धर्म का दर्ज़ा देकर एक तरह से सनातन धर्म के व्यापक स्वरूप में तोड़ फोड़ की ,मानव कृत विखंडन की शुरुआत  थी ये साजिश थी ।इसी साजिश के तहत जैन -पंथ को सनातन धारा से अलग करवाया इसे भी एक अलग धर्म की मान्यता मिली।

ऐसी  लगातार विखंडन की   एक  परिणति गोधरा कांड भी  थी ,जिसके तहत जेहादियों ने यह सन्देश दिया था -जो अयोध्या और राम का नाम लेगा उसका यही हश्र होगा।

आज इस संदर्भ का जेहन में चले आना आकस्मिक नहीं है ,गुजरात हाई -कोर्ट का वह फैसला है जिसके तहत फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील किया गया है। क्या कुछ संविधानिक तकाज़े रहें हैं इस मामले में ऊंची कचहरी की इस फेरबदल पर हमें कुछ नहीं कहना है।
अलबत्ता जिस तरह से भारतीय प्रिंट और इलेक्त्रोनी मीडिया ने इस खबर को नज़रअंदाज़ किया है वह भारत धर्मी समाज को ज़रूर खबरदार करता है। चौंकाता है ,आगाह करता है ,पूछता है खुद को मुस्लिम फस्टर्स कहने वाले कट्टर पंथियों द्वारा रचित गोधरा के फांसी पाए मुज़रिमों को कोर्ट की राहत पर वह खामोश क्यों है ?यह वही मीडिया है जो उसी दौर में एक मुसलमान एमपी के आगकी लपटों  में घिर जाने का तप्सरा बरसों बरस सुनाता रहा ,कई महीनों क्या सालों यह ज़नाज़ा निकला।

पूछा जा सकता है -

"भारतीय युवा क्या तब जागेगा जब उसके नाम पर भी तलवार चलायी  जाएगी ,पूछा जाएगा उससे -तुम्हारा नाम 'नन्द लाल क्यों है 'अकबरादुद्दीन क्यों नहीं है।कुंजबिहारी क्यों हैं आज़म खाना क्यों नहीं है ? मुरारी लाल क्यों है मोहम्मद अली क्यों नहीं है ?

खुद को मुस्लिम पहले समझने बूझने मान ने वाले जेहादी सोच के लोग यही सोचते होंगें इस फैसले पर  -हमारा कोई क्या कर लेगा ,अधिक से अधिक आजीवन कारावास ,उससे क्या हमारा खूंटा उखड़ता है ?

"राम का नाम भी लोगे तो ऐसे ही जला दिए जाओगे।"तौबा करो अयोध्या से अब वरना ...हश्र जानते ही हो।गो .....धरा .... गोधरा गोधरा गोधरा।    

भारत धर्मी समाज  को काटा जा रहा है ,गोधरा के जेहादियों का यही सन्देश जा रहा है , हम जो कुछ भी करें  ,हम्हारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता इस देश में। कहाँ गए नेहरू के वंशज?जिन्होनें इस अलहदगी की नींव  रखी जिन्ना को सरआंखों पर बिठाया ?सब खामोश ही नहीं संतुष्ट हैं मय अपने  पाले हुए प्रवक्ताओं के।

हमारा इस पोस्ट के मार्फ़त सम्पूर्ण भारत -धर्मी- समाज से आवाहन है इस मामले को ,गुजरात उच्च न्यायालय के मौजूदा फैसले के खिलाफ वह उच्चतम न्यायालय  जाए।

जाग जवानी भारत की  ,
कह  अलग कहानी भारत की।

संदर्भ -सामिग्री :यह विचार मानने डॉ नन्द लाल मेहता वागीश जी के हैं जो इस देश के न सिर्फ एक प्रखर विचारक हैं ,भारत धर्मी समाज के एक समर्पित सिपाही भी हैं। उनसे हुई फोन -वार्ता ही हैं ये उदगार जिसमें हमारी भूमिका श्रोता की थी। 

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