केंद्र सरकार के द्वारा हज़ राज्यसहायता हटा लेना एक अहम कदम है। इससे इस्लाम की आत्मा का सम्मान करने वालों का यह (इह)लोक ही नहीं वह (परलोक )भी सुधरेगा।
उद्यमशीलता बढ़ेगी एक कौम के अंदर। मोतरमायें इस प्रकार बचाई गई राशि के द्वारा शिक्षा प्राप्त करेंगी केंद्र सरकार उन्हें वजीफा दिलवाएगी जो साधनहीन हैं लेकिन होनहार हैं एक मुकाबले की भावना बढ़ेगी इससे मौतरमाओं में।
इस्लाम में किसी भी किस्म के ब्याज का निषेध है। राज्य सहायता खैरात ही तो थी। खैरात के पैसे से हाजी बने तो क्या बने। हाजी जी बनिए अपनी उद्यमशीलता से। पुरुष शब्द पुरुषार्थ को सार्थक करे। जो पुरुषार्थ करता है उद्यम करता है प्रयत्न करता है वही तो पुरुष है। किसी भी प्रकार के आरक्षण पर पोषित जीव कहाँ से और कितने पुरुष हैं हमें नहीं मालूम।
हमें मालूम है हमने इन आँखों से देखा है अपने बचपन में अपने मुस्लिम दोस्तों के निरंतर संपर्क में रहते हुए उनके घर बारहा जाकर जब बड़े अब्बा या दिल्ली वाले अब्बा (चच्चा )हज़ करके लौटते थे तो ढेर सारी चीज़ें लेकर लौटते थे।
हमारे दोस्त हमें दिखलाते थे ये देखो ये नान -ब्रेकेबिल कांच का ग्लास है टूटता नहीं है और उसे लम्बी चौड़ी बैठक में ज़ोर से लुढ़का कर दिखाते थे।
आज हम जानते हैं ये संसार ही क्षीज़ रहा है विनष्ट प्राय: है लगातार सरक रहा है मृत्यु के मुख में यहां अन -ब्रेकेबिल क्या है ? हाजी जी कितना पुण्य लेकर लौटते थे इसका कोई ज़िक्र नहीं था उन घरों में। उपभोक्ता चीज़ों की नुमाइश ज़रूर लगती थी -ये देखो ये भी हज़ से लेकर आये हैं बड़े अब्बा।
अब कांच के ग्लास नहीं पुण्य कमाके लौटेगा हर मुसलमान। आमीन।
सन्दर्भ सामिग्री :
(१ )https://www.editplatter.com/govt-withdraws-haj-subsidy-wants-empowerment-without-appeasement/
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