वामपंथी आपको कब अपनी सोच का बना देंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। जब मैं अपनी आज से 4-5 साल पुरानी सोच देखता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं भी एक किस्म का वामपंथी ही था। मेरे भीतर यह वामपंथी सोच कैसे घुसाई गई? जाहिर सी बात है स्कूली किताबों और फिल्मों के जरिये। मैं मूर्ति पूजा को ढकोसला मानता था। सारे रीति-रिवाज समय की बरबादी लगते थे। जो धार्मिक हैं उनपर हँसी आती थी। सिर्फ इतना ही नहीं, मेरे घर पर कोई पूजा-पाठ हो तब गायब हो जाया करता था। कहीं घूमने गये और रास्ते में मंदिर वगैरह पड़ा तो सब मंदिर जाते थे मैं बाहर में टाइमपास करता था। फिल्मों में देखता था कि कैसे धार्मिक व्यक्ति मखौल के लायक है। लेकिन हाँ यह मखौल सिर्फ हिंदू आस्थाओं के ही लिए था। यह भी पढ़ें: क्या आपके इर्द-गिर्द कोई शहरी नक्सली रहता है?
तब तो वामपंथ को हमारे भीतर घुसाने के गिने-चुने स्त्रोत थे। लेकिन आज तो स्थिति और भी गंभीर हो गई है। कारण अब सोशल मीडिया नामक हथियार भी इनके हाथ लग चुका है। यहाँ वो गरीबों, किसानों, दलितों, पिछड़ों की आड़ में सवर्णों को विलेन बनाकर बड़ी आसानी से अपनी वामपंथी गंदगी हमारी नसों में उतार रहे हैं। उनका मकसद आपको कोई खाटी वामपंथी बनाना नहीं है। वो जानते हैं कि शहरी हिंदू पिस्तौल उठाकर क्रांति करने नहीं निकलेगा। वह तो आपको अपना बौद्धिक सिपाही बनाना चाहते हैं। उनको इससे घंटा फर्क नहीं पड़ता कि आपने मार्क्सवाद पढ़ा है या नहीं। दास कैपिटल की जानकारी है या नहीं। वह बस चाहता है कि आप इस भ्रम में रहें कि आप इस सिस्टम से लड़ रहे हैं। जब आप इस भ्रम में पड़ते हैं तो उनका संख्या बल बढ़ता है। आगे मैं आपको बताऊंगा कि इस संख्या बल का क्या फायदा है?
हथियारों से क्रांति करने के लिये तो उनके पास ग्रामीण या आदिवासी आबादी है ही। जल जंगल और जमीन के नाम पर फौज तो बना ही ली है, फिर वो आप जैसे पढ़ेलिखे शहरी लोगों पर मेहनत क्यूँ कर रहे हैं? कारण वह जानते हैं कि जो वह चाहते हैं उसके लिये लंबा समय लगेगा। और अपने मकसद के लिये उन्हें केंद्र या राज्य में ऐसी सरकार चाहिये जो उनके किसी कार्य का विरोध न करे। और अगर वह विरोध करती है तब वह आप लोगों को समझाने लगते हैं कि देखो यह हम पर नहीं तुमपर हमला है। हम शहरी नागरिक इस बात से अनजान कि हम वामपंथी प्रोपोगेंडा का शिकार हो चुके हैं ट्विटर पर ट्रेंड करवा रहे हैं कि #MetooUrbanNaxal यह फायदा है संख्या बल का। मौजूदा केंद्र सरकार इन वामपंथियों के सामने झुक नहीं रही है। अभी पांच वामपंथियों को गिरफ्तार किया। लेकिन क्या आपने नोटिस किया कैसे मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में हड़कंप मच गया? यह होता है संख्याबल का फायदा। यह जो ट्विटर पर या हर जगह इन गिरफ्तार हुए वामपंथियों का झंडा उठाये घूम रहे हैं न इनमें से 90 फीसदी को तो पता भी नहीं है कि वामपंथ है क्या। इन्हें न मार्क्सवाद पता है न माओवाद।
कोई सिस्टम 100 फीसदी ठीक नहीं होता। मान लो 10 फीसदी खराबी है भी तो बचे हुये 90 फीसदी को नजरअंदाज कर कैसे उस 10 फीसदी की वजह से लोगों को भड़काया जाये इस पैंतरे से बनते हैं शहरी नक्सली। जो इस तरीके से न बन पाये उसे नारीवादी बना कर जोड़ लो… जो इस पैंतरे से न बने उसे किसी एक जाति के प्रति घृणा पैदा करके जोड़ लो… जो इससे भी न जुड़े उसे सेक्युलर बनाकर जोड़ लो… जो इससे भी न फँसे उसे मजदूर या किसान के नाम पर जोड़ लो… या फिर प्रगतिशीलता के नाम पर जोड़ लो… अंत में इनके वोट से मौजूदा सरकार गिरा दो… इन जैसों के वोट का ऐसा खौफ पैदा करो कि वो वामपंथियों पर हाथ डालने से डरें। जिस तरह हम किसी को एकदम खांटी राष्ट्रवादी बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं और अगर सामने वाले में हल्की सी भी कमी दिखे उसे दुत्कार देते हैं और अपनी संख्या कम करते जाते हैं वामपंथ का वह सिस्टम नहीं है। आप 1 फीसदी वामपंथी भी हैं तो उन्हें चलेगा। अब सवाल यह कि वह शांतिदूतों पर मेहनत क्यूँ नहीं करते? तो इसका कारण यह है वामपंथी सिर्फ और सिर्फ विनाश चाहते हैं। यह काम तो शांतिदूत मुफ्त में कर ही रहे हैं… अलग से ऊर्जा इनपर व्यर्थ करने की क्या जरूरत है? यह भी पढ़ें: जंगलों से सफाया, लेकिन शहरों में बढ़ा नक्सली खतरा
तब तो वामपंथ को हमारे भीतर घुसाने के गिने-चुने स्त्रोत थे। लेकिन आज तो स्थिति और भी गंभीर हो गई है। कारण अब सोशल मीडिया नामक हथियार भी इनके हाथ लग चुका है। यहाँ वो गरीबों, किसानों, दलितों, पिछड़ों की आड़ में सवर्णों को विलेन बनाकर बड़ी आसानी से अपनी वामपंथी गंदगी हमारी नसों में उतार रहे हैं। उनका मकसद आपको कोई खाटी वामपंथी बनाना नहीं है। वो जानते हैं कि शहरी हिंदू पिस्तौल उठाकर क्रांति करने नहीं निकलेगा। वह तो आपको अपना बौद्धिक सिपाही बनाना चाहते हैं। उनको इससे घंटा फर्क नहीं पड़ता कि आपने मार्क्सवाद पढ़ा है या नहीं। दास कैपिटल की जानकारी है या नहीं। वह बस चाहता है कि आप इस भ्रम में रहें कि आप इस सिस्टम से लड़ रहे हैं। जब आप इस भ्रम में पड़ते हैं तो उनका संख्या बल बढ़ता है। आगे मैं आपको बताऊंगा कि इस संख्या बल का क्या फायदा है?
हथियारों से क्रांति करने के लिये तो उनके पास ग्रामीण या आदिवासी आबादी है ही। जल जंगल और जमीन के नाम पर फौज तो बना ही ली है, फिर वो आप जैसे पढ़ेलिखे शहरी लोगों पर मेहनत क्यूँ कर रहे हैं? कारण वह जानते हैं कि जो वह चाहते हैं उसके लिये लंबा समय लगेगा। और अपने मकसद के लिये उन्हें केंद्र या राज्य में ऐसी सरकार चाहिये जो उनके किसी कार्य का विरोध न करे। और अगर वह विरोध करती है तब वह आप लोगों को समझाने लगते हैं कि देखो यह हम पर नहीं तुमपर हमला है। हम शहरी नागरिक इस बात से अनजान कि हम वामपंथी प्रोपोगेंडा का शिकार हो चुके हैं ट्विटर पर ट्रेंड करवा रहे हैं कि #MetooUrbanNaxal यह फायदा है संख्या बल का। मौजूदा केंद्र सरकार इन वामपंथियों के सामने झुक नहीं रही है। अभी पांच वामपंथियों को गिरफ्तार किया। लेकिन क्या आपने नोटिस किया कैसे मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में हड़कंप मच गया? यह होता है संख्याबल का फायदा। यह जो ट्विटर पर या हर जगह इन गिरफ्तार हुए वामपंथियों का झंडा उठाये घूम रहे हैं न इनमें से 90 फीसदी को तो पता भी नहीं है कि वामपंथ है क्या। इन्हें न मार्क्सवाद पता है न माओवाद।
कोई सिस्टम 100 फीसदी ठीक नहीं होता। मान लो 10 फीसदी खराबी है भी तो बचे हुये 90 फीसदी को नजरअंदाज कर कैसे उस 10 फीसदी की वजह से लोगों को भड़काया जाये इस पैंतरे से बनते हैं शहरी नक्सली। जो इस तरीके से न बन पाये उसे नारीवादी बना कर जोड़ लो… जो इस पैंतरे से न बने उसे किसी एक जाति के प्रति घृणा पैदा करके जोड़ लो… जो इससे भी न जुड़े उसे सेक्युलर बनाकर जोड़ लो… जो इससे भी न फँसे उसे मजदूर या किसान के नाम पर जोड़ लो… या फिर प्रगतिशीलता के नाम पर जोड़ लो… अंत में इनके वोट से मौजूदा सरकार गिरा दो… इन जैसों के वोट का ऐसा खौफ पैदा करो कि वो वामपंथियों पर हाथ डालने से डरें। जिस तरह हम किसी को एकदम खांटी राष्ट्रवादी बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं और अगर सामने वाले में हल्की सी भी कमी दिखे उसे दुत्कार देते हैं और अपनी संख्या कम करते जाते हैं वामपंथ का वह सिस्टम नहीं है। आप 1 फीसदी वामपंथी भी हैं तो उन्हें चलेगा। अब सवाल यह कि वह शांतिदूतों पर मेहनत क्यूँ नहीं करते? तो इसका कारण यह है वामपंथी सिर्फ और सिर्फ विनाश चाहते हैं। यह काम तो शांतिदूत मुफ्त में कर ही रहे हैं… अलग से ऊर्जा इनपर व्यर्थ करने की क्या जरूरत है? यह भी पढ़ें: जंगलों से सफाया, लेकिन शहरों में बढ़ा नक्सली खतरा
My Name is Arundhati Roy and #MeTooUrbanNaxal
ऐसे कई दुर्मुख और दुर्मुखियाँ जो अतीत में काश्मीर के अलगाव वादियों के मनोरंजन का प्रिय शगल रहें हैं कट्टरपंथियों की गोद में झूला झूले हैं आज दलित हिमायती होने का दम्भ भरते हैं। इन्हें भारतधर्मी समाज का हर आम आदमी पहचाने इनकी असलियत को जाने ये आज के दौर में निहायत ज़रूरी हैं ये ही हैं जनेऊ में गंद के समर्थक कन्हैया -आरामगाह जनेऊ के खिवैया। इनके एक समर्थक इन दिनों अमरनाथ यात्रा पर जाने का मन बना चुकें हैं। ये जनेऊ पहनते हैं हिन्दू घोषित करवा रहें हैं खुद को ये कई सुर्जेवालों से। ये प्रवक्ता नुमा इनके लाल लंगोट का रंग देखकर कल इन्हें हनुमान भक्त घोषित कर दें ,इस पर हमें ज़रा भी आश्चर्य नहीं होगा।
अब मिलिए भारतधर्मी समाज के एक ऐसे शख्स से जो बिला शर्त भारत को बेहद प्यार करता है और जिसकी पूर्व में दर्ज़ की गई शिकायत आज जो लोग रस्सा लेकर कूद रहें हैं उनकी मुखर सोच के लोगों की उनके ही घर में नज़रबंदी की वजह बनी है।
आज इनमें से कई कथित विखंडनवादी एक्टिविस्ट आपात काल की दुहाई भी दे रहें हैं और किस प्रकार का प्रलाप, कैसा स्यापा ये भारत भर में कर रहें हैं इसे बूझने के लिए दिमाग पे ज़ोर डालने की ज़रुरत आपको नहीं पड़ेगी।
‘I’m a small person’: Meet Tushar Damgude, whose police complaint sparked the crackdown on activists
He accuses activists such as Sudhir Dhawale, Varavara Rao and Jignesh Mevani of spreading violent ideas and inciting Dalits to rise against the upper castes.
On Thursday afternoon, as Tushar Damgude juggled interviews with half a dozen journalists, he claimed he felt trapped by his “political neutrality”.
The 38-year-old businessman from Pune has been in the national limelight for the past two days, after a police complaint he filed in January led to a crackdown on human rights activists who now stand accused of being “urban Naxals waging a war against the government”.
“I did not realise things would go this far when I filed my complaint,” said Damgude, a history graduate with a small construction business. “I support anyone who is a nationalist and I am against anyone who is anti-national. But today I am being hounded by the media as if I am an accused myself.”
Damgude’s complaint, which the police filed as a first information report on January 8, alleged the violence that marred a Dalit commemoration at Bhima Koregaon on January 1 was instigated by leftist activists with alleged Maoist links who had spoken at a public meeting called Elgar Parishad the previous day.
Acting on his complaint, the Pune police raided the homes of seven activists across the country in April. Two months later, on June 6, the police arrested five activists – Sudhir Dhawale, Surendra Gadling, Mahesh Raut, Shoma Sen and Rona Wilson – from Mumbai, Nagpur and Delhi. Labelling them “urban Maoist operatives”, the police claimed to have found evidence that they were plotting to assassinate Prime Minister Narendra Modi. On August 28, the police raided 10 more activists and arrested five of them – Arun Ferreira, Vernon Gonsalves, Gautam Navlakha, Varavara Rao and Sudha Bharadwaj. The Supreme Court stayed the arrests and ordered them placed under house arrest until September 5.
The police have made sweeping allegations against the activists, describing them as “active members” of the banned Communist Party of India (Maoist) who are involved in a “top-level conspiracy” to overthrow the “sovereignty and integrity of the country” by establishing a nationwide “anti-fascist front”.
For Damgude, the police’s allegations vindicate his complaint. “Their agenda is to mislead the Dalit community, to convert them to Maoist thought…and adopt the path of violence,” his complaint said. “Through their publications, books and speeches, they want to increase enmity in society.”
The controversial arrests triggered by his complaint have invited media attention, and Damgude has spent the past two days trying to convince people that he holds “open-minded”, neutral views.
‘They want Dalits to rise against upper castes’
“I am a writer,” Damgude told a string of reporters in a Pune restaurant on Thursday. “I write on social media about all kinds of issues because I have khule vichar [an open mind]. I believe in meeting and having discussions with everyone and I am open to talking to all the accused in this case as well. They are not my personal enemies.”
For the past few months, Damgude’s Facebook page has been full of posts attacking Sudhir Dhawale, Varavara Rao and other leftist figures for allegedly glorifying Maoism, spreading violent ideas and purchasing weapons. Both in his complaint and on social media, Damgude highlights revolutionary songs, pamphlets and speeches as proof of a violent conspiracy to attack the country.
“In 2014, Dhawale called for a ‘struggle on the streets’ as part of speech and in 2017, Jignesh Mevani used the same language – ‘struggle on the streets’ – in his speech at Elgar Parishad,” Damgude said. “These people want Dalits to rise against the upper castes. They have said things like, ‘August 15 is not our day, only January 26 is our day.’ That is the extent to which they go.”
August 15 is the Independence Day and January 26 marks the Republic Day, when India’s Constitution, shaped largely by Bhimrao Ambedkar, came into effect.
Damgude’s Facebook page has a picture of him with Sambhaji Bhide, a Hindutva leader accused of inciting violence against the Dalits at Bhima Koregaon. Fellow Hindutva leader Milind Ekbote is also an accused in the matter, but neither have been arrested yet despite a Supreme Court order.
Damgude claimed he has never met Ekbote while his picture with Bhide, whom he respectfully refers to as “Guruji”, has been needlessly played up in the media. “I had not met Guruji before April this year, and I went to meet him only because I read in the media that he had made a speech endorsing Manusmriti,” he said. “So when I met him, I told him it is more important to talk about other issues facing the country right now, like the plight of widows and farmers. And he agreed with me.”
Now that the picture has gained wide media attention, Damgude said he has been getting angry calls from Bhide’s followers. “They abuse me and ask me, ‘Are you so big that you can go tell Guruji what to do?’”
‘I have friends in all parties’
According to Damgude, few people understand his “neutrality” in political matters because he is both friendly with, and critical of, all parties. “I have photos with Raj Thackeray [of the Maharashtra Navnirman Sena] also,” he said. “I don’t reject any political party because I have friends in all of them. I have done some campaigning for the Congress too.”
While he believes in Hindutva, Damgude emphasised that he is critical of extremism within it. “Just like the Maoist forces are trying to destabilise the country, Hindutva is being hijacked by some forces that are not truly Hindutva – like the Sanatan Sanstha,” he said. “Killing people in the name of gau raksha, beating people on Valentine’s Day – that’s not Hindutva. I have always written against all of this.”
Damgude claimed he has also vehemently spoken out against the Marathas’ demand for caste-based reservations in Maharashtra. “I am a Maratha myself, but I have critiqued the movement,” he said. “I have received threat calls from Marathas too.”
In spite of the media scrutiny, Damgude does not regret filing his complaint against people he believes are “Maoist forces” out to destroy India. However, he is wary of talking about his family. “I have two small children and now because of the FIR, my family is under threat,” he said, without explaining further. “They have been accused of a plot to kill the PM, and I am just a small person.”
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