नारी संस्करण हैं नेहरू का सोनिया
गौरांग प्रभुओं की पत्नी गौरांगियों के प्रति नेहरू का मोह ही सोनिया के रूप में पुनर-अवतरित हुआ है इसीलिए देश तोड़क तमाम तरह की प्रवृत्तियां सोनिया में देखी जा सकतीं हैं और वे ज्यादा मुखर हुईं हैं सोनिया में चाहे वह सिख और जैन पंथों को सनातन धर्मी धारा से अलग दर्ज़ा दिलवाने का कुकृत्य रहा हो या हाल ही में कर्नाटक में लिंगायतों को सनातन धर्मी वृहद् समाज से अलग छिटकाने का असफल प्रयास।
शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के उत्पीड़न का मामला रहा हो या इतर साध्वियों पर षड्यंत्र के तहत मामले गढवाने का।
इसीलिए इनकी संतति राहुल मतिमंद रह गए हैं ऐसे लोगों की संततियां बे -सुध ज़मीं से कटी हुई ही रहतीं हैं इसीलिए राहुल को यह इल्म ही नहीं रहता ,वह क्या बोल रहें हैं क्या सुन रहें हैं।
सनातन धर्म में यह मान्यता रही है के पूर्वजों की आत्माएं लौट लौट कर उसी कुनबे में आती हैं ,रूप बदल के लिंग बदलके स्थान बदल के।
नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयं संघ नाम की सांस्कृतिक निष्ठावान राष्ट्र के एकता को समर्पित संघ को नाहक ही न शरीफ प्रबंधित रखा था ,लाल किले में ढाई महीना चलने वाली पैरवी ने जबकि संघ को किसी भी बिध गांधी हत्या के लिए दोषी नहीं पाया था।
नेहरू को इस राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगठन से यही खतरा था के यह देश की अस्मिता को प्रभुता को एक रखे हुए है भारतधर्मी समाज के लोग इसे बेहद प्यार करते हैं कहीं कांग्रेस वृहत्तर भारतधर्मी समाज की नज़रों में दोयम दर्ज़े पे न चली आये। नेहरू देवताओं के शासक इंद्र की तरह ताउम्र संघ से डरे रहे उस पर बहुविध फ़र्ज़ी आरोप मढ़वाते रहे ,संघ के नाम चीन लोगों की आकस्मिक मृत काया आज भी रहस्य बनी हुई है। किसने करवाया था यह सब। पूरा देश जानता है।
और नेहरू के आरआरएस विरोध को इंदिरा प्रियदर्शनी नेहरू ने विरासत में पाया था इसीलिए आपात काल के काले दिनों में इन सेवकों पर जम के कहर बरसाया था। उस दौरान हिन्दुस्तान की जेलों में कैद एक लाख तीस हज़ार लोगों में से एक लाख सिर्फ स्वयं सेवक थे अलावा इसके 'मीसा' जैसे गैर -वैधानिक अस्त्र के तहत जिन ३०,००० लोगों को अमानवीय हालातों में रखा गया था उनमें से २५ ,००० स्वयं सेवक थे। सारे उत्पीड़न को इन सेवकों ने चुपचाप पी लिया था ताकि भारत धर्मी समाज को अभिव्यक्ति की आज़ादी का मौलिक अधिकार बहाल हो सके।
जो मतिमंद राहुल आज यह पूछता है ,संघ में महिलाएं क्यों नहीं है उसे क्या मालूम शाह कमीशन की सुनवाई के दौरान संघ की सहयोगी संस्थाओं से बड़ी संख्या में माताएं और बहनें स्वयंसेवकों के लिए सुनवाई के दौरान खाना और मिठाई लेकर पहुंचतीं थीं। संघ उतना ही नहीं जितना इस लाडले को समझाया गया है।
गौरांग प्रभुओं की पत्नी गौरांगियों के प्रति नेहरू का मोह ही सोनिया के रूप में पुनर-अवतरित हुआ है इसीलिए देश तोड़क तमाम तरह की प्रवृत्तियां सोनिया में देखी जा सकतीं हैं और वे ज्यादा मुखर हुईं हैं सोनिया में चाहे वह सिख और जैन पंथों को सनातन धर्मी धारा से अलग दर्ज़ा दिलवाने का कुकृत्य रहा हो या हाल ही में कर्नाटक में लिंगायतों को सनातन धर्मी वृहद् समाज से अलग छिटकाने का असफल प्रयास।
शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के उत्पीड़न का मामला रहा हो या इतर साध्वियों पर षड्यंत्र के तहत मामले गढवाने का।
इसीलिए इनकी संतति राहुल मतिमंद रह गए हैं ऐसे लोगों की संततियां बे -सुध ज़मीं से कटी हुई ही रहतीं हैं इसीलिए राहुल को यह इल्म ही नहीं रहता ,वह क्या बोल रहें हैं क्या सुन रहें हैं।
सनातन धर्म में यह मान्यता रही है के पूर्वजों की आत्माएं लौट लौट कर उसी कुनबे में आती हैं ,रूप बदल के लिंग बदलके स्थान बदल के।
नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयं संघ नाम की सांस्कृतिक निष्ठावान राष्ट्र के एकता को समर्पित संघ को नाहक ही न शरीफ प्रबंधित रखा था ,लाल किले में ढाई महीना चलने वाली पैरवी ने जबकि संघ को किसी भी बिध गांधी हत्या के लिए दोषी नहीं पाया था।
नेहरू को इस राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगठन से यही खतरा था के यह देश की अस्मिता को प्रभुता को एक रखे हुए है भारतधर्मी समाज के लोग इसे बेहद प्यार करते हैं कहीं कांग्रेस वृहत्तर भारतधर्मी समाज की नज़रों में दोयम दर्ज़े पे न चली आये। नेहरू देवताओं के शासक इंद्र की तरह ताउम्र संघ से डरे रहे उस पर बहुविध फ़र्ज़ी आरोप मढ़वाते रहे ,संघ के नाम चीन लोगों की आकस्मिक मृत काया आज भी रहस्य बनी हुई है। किसने करवाया था यह सब। पूरा देश जानता है।
और नेहरू के आरआरएस विरोध को इंदिरा प्रियदर्शनी नेहरू ने विरासत में पाया था इसीलिए आपात काल के काले दिनों में इन सेवकों पर जम के कहर बरसाया था। उस दौरान हिन्दुस्तान की जेलों में कैद एक लाख तीस हज़ार लोगों में से एक लाख सिर्फ स्वयं सेवक थे अलावा इसके 'मीसा' जैसे गैर -वैधानिक अस्त्र के तहत जिन ३०,००० लोगों को अमानवीय हालातों में रखा गया था उनमें से २५ ,००० स्वयं सेवक थे। सारे उत्पीड़न को इन सेवकों ने चुपचाप पी लिया था ताकि भारत धर्मी समाज को अभिव्यक्ति की आज़ादी का मौलिक अधिकार बहाल हो सके।
जो मतिमंद राहुल आज यह पूछता है ,संघ में महिलाएं क्यों नहीं है उसे क्या मालूम शाह कमीशन की सुनवाई के दौरान संघ की सहयोगी संस्थाओं से बड़ी संख्या में माताएं और बहनें स्वयंसेवकों के लिए सुनवाई के दौरान खाना और मिठाई लेकर पहुंचतीं थीं। संघ उतना ही नहीं जितना इस लाडले को समझाया गया है।
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