तुम्हारी एक फोड़े उसकी फोड़ दो दोनों आँख। आँख के बदले आँख और दांत के बदले दांत से काम नहीं चलेगा यहां। क्योंकि :
(१) निकिता हत्या काण्ड एक साधारण अपराध नहीं था -चोरी और सीना जोरी थी ,कल को ऐसे बिगड़ैल नवाब जादों का किसी ब्याहता पे भी दिल आ सकता है ,सामाजिक ताना बाना छिन्न भिन्न होता है इस प्रकार की ज़बरिया हरकतों से। आबादी दहशत में आ जाती है।
(२ )किसी देश के नागर बोध का आइना वहां महिलाओं के प्रति निगाह से जुड़ा है। जहां महिलाओं का सम्मान नहीं वह देश दरिंदों का एक भौगोलिक क्षेत्र मात्र है राष्ट्र राज्य की संज्ञा देना इसे बे -मानी होगा।
(३ )कथित प्रेमी की हरकतों को जब शह नहीं मिलती तब वह कभी तेज़ाब फेंक देता है अपने कथित प्रेमिका के चेहरे पर कभी किसी और प्रकार से प्रतिशोध लेता है ,जबकि प्रेम प्रतिशोध नहीं आत्मबलिदान चाहता है।
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।राजा परजा सो रुच, शीश देय ले जाय।।
भावसार :कबीर साहेब ने कभी भी पांडित्य प्रदर्शन नहीं किया और ना ही लोगों को शब्दों की जादूगिरी से प्रभावित करने की कोशिश की, गूढ़ रहस्यों को उन्होंने बड़े ही सरल शब्दों में लोगों के समक्ष रखने में उनकी प्रतिभा विलक्षण रही। 'प्रेम' को हम प्रयत्न करके,मेहनत करके पैदा नहीं कर सकते हैं और ना ही हम प्रेम को बाजार से मूल्य चूका कर खरीद सकते हैं। प्रेम राजा और प्रजा सभी के लिए समान है, इसकी कीमत है 'शीश देय' , अहम और स्वंय के होने का एहसास को समाप्त करना। जब तक 'मैं' है प्रेम नहीं है। यह साहेब के द्वारा दिया गया 'बीज' है जिसकी जितनी व्याख्या की जाय कम है। प्रेम सांसारिक और भौतिक वस्तु नहीं है जिसे हम उपजा ले, किसी से खरीद लें, उधार ले लें। यह तो एहसास की बात है।
ज़ाहिर है प्रेम आत्मोसर्ग चाहता है।
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुल गाहिं ।
की अग्नि बुझ जानेके बाद पुनः सुलग जाती है। भक्त इसी आग में सुलगते हैं ।
जहां गांठ तहं रस नही यही प्रीति में हानि।
यही बात प्रेम में है। प्रेम मीठा रसपूर्ण होता है पर प्रेम में छल का गाॅठ रहने पर वह प्रेम नहीं रहता है।
नेह निबाहन एक रस, महा कठिन ब्यबहार।
किंतु प्रेम का निरंतर समान रुप से निर्वाह अत्यंत कठिन कार्य है।
सपने मोह ब्यापे नही, ताको जनम नसाय।
उसे स्वप्न में भी भ्रम नहीं होता और उसके पुनर्जन्म का अंत हो जाता है।
लोभी शीश ना दे सके, नाम प्रेम का लेय।
एक लोभी-लालची अपने सिर का वलिदान कभी नहीं दे सकता भले वह कितना भी प्रेम-प्रेम चिल्लाता हो।
राजा प्रजा जेहि रुचै,शीश देयी ले जाय।
राजा या प्रजा जो भी प्रेम का इच्छुक हो वह अपने सिर का यानि सर्वस्व त्याग कर प्रेम
प्राप्त कर सकता है। सिर का अर्थ गर्व या घमंड का त्याग प्रेम के लिये आवश्यक है।
sab pyaar ki baaten karte hain.. Matlabi Duniya1961_Mukesh_ Ramesh Gupta_Jayanti Joshi..a
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