रविवार, 4 जुलाई 2021

आख़िर किन वजहों से नाथूराम गोडसे ने की महात्मा गांधी की हत्या?



गिरफ़्तार होने के बाद गोडसे ने गांधी के पुत्र देवदास गांधी (राजमोहन गांधी के पिता) को तब पहचान लिया था जब वे गोडसे से मिलने थाने पहुँचे थे. इस मुलाकात का जिक्र नाथूराम के भाई और सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी किताब 'गांधी वध क्यों,' में किया है.


गोपाल गोडसे को फांसी नहीं हुई, क़ैद की सजा हुई थी. जब देवदास गांधी पिता की हत्या के बाद संसद मार्ग स्थित पुलिस थाने पहुंचे थे, तब नाथूराम गोडसे ने उन्हें पहचाना था.गोडसे ने कहा था ,'मैंने गांधीजी और वीरसावरकर के लेखन और विचार का गहराई से अध्ययन किया है। मेरी समझ में पिछले तीस वर्षों में भारतीय जनता की सोच और काम को किसी भी और कारकों से ज्यादा इन दो विचारों ने गढ़ने का काम किया है। इन सभी सोच और अध्ययन ने मेरा विश्वास पक्का किया कि बतौर राष्ट्रभक्त और विश्वनागरिक मेरा पहला कर्तव्य हिंदुत्व और हिन्दुओं की सेवा करना है। '

गांधीजी के इस फैसले से नाराज थे गोडसे  

नाथूराम गोडसे गांधीजी के उस फैसले के खिलाफ था ,जिसमें वह चाहते थे कि भारत की तरफ से पाकिस्तान को आर्थिक मदद दी जाए। तब महात्मा गाँधी ने इसके लिए उपवास भी रखा था। गोडसे और उससे जुड़े विचार के लोगों का मानना था कि सरकार की मुस्लिमों के प्रति तुष्टिकरण की नीति के असली कारण महात्मागांधी हैं। नाथूराम गोडसे देश के विभाजन और उस समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा में लाखों हिन्दुओं की हत्या के लिए भी महात्मागांधी को जिम्मेदार मानता था। 

कोर्ट में कही थी ये बात 

कोर्ट में अपने लम्बे चौड़े बयान  में गोडसे ने इस बात का ज़िक्र किया था। उन्होंने कहा था ,'३२वर्षों से इकट्ठा हो रही उकसावेबाज़ी  ,नतीजतन मुसलमानों के लिए उनके आखिरी अनशन ने आखिरकार मुझे इस नतीजे पर पहुँचने के लिए प्रेरित किया कि गांधी का अस्तित्व तुरंत खत्म करना चाहिए। 

हिन्दू संगठन की विचारधारा से प्रभावित 

नाथूराम ने खुले तौर पर कहा था ,'एक देशभक्त और विश्वनागरिक होने के नाते ३० करोड़ हिन्दुओं की स्वतंत्रता और  हितों की रक्षा अपने आप पूरे भारत की रक्षा होगी,जहां दुनिया का प्रत्येक पांचवां शख्स रहता है। इस सोच ने मुझे हिन्दू संगठन की विचारधारा और कार्यक्रम के नज़दीक किया। मेरे विचार से यही विचारधारा हिन्दुस्तान को आज़ादी दिला सकती है और उसे कायम रख सकती है। '

यहां सुने गोडसे का पूरा बयान 

Why Nathu Ram Godse killed Mohandas karamchandThis is original speech of Godse ji but not the voice ...
22-Feb-2017 · Uploaded by dhanjit giri
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गोडसे और उनके मूर्तिकारों को समझने की कोशिश

गोपल गोडसे ने अपनी किताब में लिखा है, "देवदास शायद इस उम्मीद में आए होंगे कि उन्हें कोई वीभत्स चेहरे वाला, गांधी के खून का प्यासा कातिल नज़र आएगा, लेकिन नाथूराम सहज और सौम्य थे. उनका आत्म विश्वास बना हुआ था. देवदास ने जैसा सोचा होगा, उससे एकदम उलट."

निश्चित तौर पर हम ये नहीं जानते कि वाकई में ऐसा रहा होगा.

देवदास से वो मुलाकात

नाथूराम ने देवदास गांधी से कहा, "मैं नाथूराम विनायक गोडसे हूं. हिंदी अख़बार हिंदू राष्ट्र का संपादक. मैं भी वहां था (जहां गांधी की हत्या हुई). आज तुमने अपने पिता को खोया है. मेरी वजह से तुम्हें दुख पहुंचा है. तुम पर और तुम्हारे परिवार को जो दुख पहुंचा है, इसका मुझे भी बड़ा दुख है. कृप्या मेरा यक़ीन करो, मैंने यह काम किसी व्यक्तिगत रंजिश के चलते नहीं किया है, ना तो मुझे तुमसे कोई द्वेष है और ना ही कोई ख़राब भाव."

देवदास ने तब पूछा, "तब, तुमने ऐसा क्यों किया?"

जवाब में नाथूराम ने कहा, "केवल और केवल राजनीतिक वजह से."

नाथूराम ने देवदास से अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा लेकिन पुलिस ने उसे ऐसा नहीं करने दिया. अदालत में नाथूराम ने अपना वक्तव्य रखा था, जिस पर अदालत ने पाबंदी लगा दी.

गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक के अनुच्छेद में नाथूराम की वसीयत का जिक्र किया है. जिसकी अंतिम पंक्ति है- "अगर सरकार अदालत में दिए मेरे बयान पर से पाबंदी हटा लेती है, ऐसा जब भी हो, मैं तुम्हें उसे प्रकाशित करने के लिए अधिकृत करता हूं."

अदालत में गोडसे का बयान

ऐसे फिर नाथूराम के वक्तव्य में आख़िर है क्या? उसमें नाथूराम ने इन पहलुओं का ज़िक्र किया है-

पहली बात, वह गांधी का सम्मान करता था. उसने कहा था, "वीर सावरकर और गांधीजी ने जो लिखा है या बोला है, उसे मैंने गंभीरता से पढ़ा है. मेरे विचार से, पिछले तीस सालों के दौरान इन दोनों ने भारतीय लोगों के विचार और कार्य पर जितना असर डाला है, उतना किसी और चीज़ ने नहीं."

दूसरी बात, जो नाथूराम ने कही, "इनको पढ़ने और सोचने के बाद मेरा यकीन इस बात में हुआ कि मेरा पहला दायित्व हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए है, एक देशभक्त और विश्व नागरिक होने के नाते. 30 करोड़ हिंदुओं की स्वतंत्रता और हितों की रक्षा अपने आप पूरे भारत की रक्षा होगी, जहां दुनिया का प्रत्येक पांचवां शख्स रहता है. इस सोच ने मुझे हिंदू संगठन की विचारधारा और कार्यक्रम के नज़दीक किया. मेरे विचार से यही विचारधारा हिंदुस्तान को आज़ादी दिला सकती है और उसे कायम रख सकती है."

इस नज़रिए के बाद नाथूराम ने गांधी के बारे में सोचा. "32 साल तक विचारों में उत्तेजना भरने वाले गांधी ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा तो मैं इस नतीजे पर पहुंच गया कि गांधी के अस्तित्व को तुरंत खत्म करना होगा. गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों को हक दिलाने की दिशा में शानदार काम किया था, लेकिन जब वे भारत आए तो उनकी मानसिकता कुछ इस तरह बन गई कि क्या सही है और क्या गलत, इसका फैसला लेने के लिए वे खुद को अंतिम जज मानने लगे. अगर देश को उनका नेतृत्व चाहिए तो यह उनकी अपराजेयता को स्वीकार्य करने जैसा था. अगर देश उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करता तो वे कांग्रेस से अलग राह पर चलने लगते."

महात्मा पर आरोप

इस सोच ने नाथूराम को गांधी की हत्या करने के लिए उकसाया. नाथूराम ने भी कहा, "इस सोच के साथ दो रास्ते नहीं हो सकते. या तो कांग्रेस को गांधी के लिए अपना रास्ता छोड़ना होता और गांधी की सारी सनक, सोच, दर्शन और नजरिए को अपनाना होता या फिर गांधी के बिना आगे बढ़ना होता."

तीसरा आरोप ये था कि गांधी ने पाकिस्तान के निर्माण में मदद की. नाथूराम ने कहा, "जब कांग्रेस के दिग्गज नेता, गांधी की सहमति से देश के बंटवारे का फ़ैसला कर रहे थे, उस देश का जिसे हम पूजते रहे हैं, मैं भीषण ग़ुस्से से भर रहा था. व्यक्तिगत तौर पर किसी के प्रति मेरी कोई दुर्भावना नहीं है लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि मैं मौजूदा सरकार का सम्मान नहीं करता, क्योंकि उनकी नीतियां मुस्लिमों के पक्ष में थीं. लेकिन उसी वक्त मैं ये साफ देख रहा हूं कि ये नीतियां केवल गांधी की मौजूदगी के चलते थीं."


सन्दर्भ -सामिग्री (१) :https://www.bbc.com/hindi/india/2015/01/150127_godse_gandhi_aakar_pk

(२ )https://navbharattimes.indiatimes.com/viral-adda/photo-gallery/mahatma-gandhi-death-anniversary-nathuram-godse-had-given-a-statement-of-90-pages-before-court-19528/


 

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

दीवारों पे दस्तक देते रहिएगा , दीवारों में दरवाज़े बन जाएंगे


बीजगणित-सी शाम, रेखाओं में खिंची हुई है मेरी उम्र तमाम! भोर-किरण ने दिया गुणनफल दुख का, सुख का भाग, जोड़ दिये आहों में आँसू घटा प्रीत का फाग, प्रश्नचिह्न ही मिले सदा से मिला न पूर्ण विराम! ~डॉ.कुँअर बेचैन Cherry blossomसादर नमन 

#जन्मदिवस पर विशेष :रचनाकार का परिचय उसका रचना संसार ही होता है उनके  जन्मदिवस पर उनकी रचनाओं  की याद ही उनकी सच्ची याद है जन्मजयंती है। एक फलसफा एक पॉजिटिविटी उनकी तमाम रचनाओं में सीधे श्रोता को सोचने पर विवश करता है हम भी इधर उधर विखंडित होते धागों को जोड़ें संस्कृति के क्षय को राष्ट्र के विखंड को रोकें आसार अच्छे नहीं हैं भले बहुत मुश्किल यह ये काम कुंवर जी के शब्दों में वैसे ही जैसे पानी पे पानी लिखना -

दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना
जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना

कोई उलझन ही रही होगी जो वो भूल गया
मेरे हिस्से में कोई शाम सुहानी लिखना

अश्क...

आते जाते हुए मौसम से अलग रह के ज़रा
अब के ख़त में तो कोई बात पुरानी लिखना

कुछ भी लिखने का हुनर तुझ को अगर मिल जाए
इश्क़ को अश्कों के दरिया की रवानी लिखना

ख़त...

इस इशारे को वो समझा तो मगर मुद्दत बाद

अपने हर ख़त में उसे रात-की-रानी लिखना 


            .... ....    गज़लकार कुंवर बेचैन साहब  

दीवारों पे दस्तक देते रहिएगा ,

दीवारों में दरवाज़े बन जाएंगे।

 उनकी ही आवाज़ में सुनियेगा दुबई की धरती से इस देसी आवाज़ को : 

https://www.youtube.com/watch?v=5sx41sCiD9Q

सुप्रसिद्ध गीत-गजलकार डॉ. कुंवर बेचैन नही रहे Dr Kunwar Bechain 2003

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Jun 5, 2013
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