'हाथ का पुर्जा "-कविता: डॉ वागीश मेहता ,राष्ट्रीय विचारक भारत धर्मी समाज
(१ )
गिर गया हाथ से पुर्जा तो ,तेरी तक़रीर का क्या होगा ,
इस देश की संवरे न संवरे ,तेरी तकदीर का क्या होगा।
आस्तीन चढ़ा लेने भर से ,कोई देश कभी न चला करता,
गर पले सांप आस्तीनों में ,फिर हाथ लकीर का क्या होगा।
(२ )
ये भारत है कोई इंडया नहीं ,नहीं टुकड़ा कोई धरती का ,
यह स्वयं धरित्री धारक है ,है पुण्य धाम मानवता का।
पंद्रह मिनिट का नाटक कर , कर्नाटक हासिल क्या होगा ,
निर्णय फाड़े काग़ज़ फेंके ,अब पहन जनेऊ क्या होगा।
(३)
बिन अनुभव की आंच तपे ,सिर पर गर ताज़ सज़ा तो क्या ,
जब वाह -वाही भट भाट करें ,फिर किसी की सूझ सलाह ही क्या।
ग़र भारत भाव नहीं जाना ,योरुप इतिहास पढ़ा तो क्या ,
फिर वज्र सरीखी दिल्ली में ,तेरी तदबीर का क्या होगा।
प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,एचईएस -वन ,सेवानिवृत्त )
(१ )
गिर गया हाथ से पुर्जा तो ,तेरी तक़रीर का क्या होगा ,
इस देश की संवरे न संवरे ,तेरी तकदीर का क्या होगा।
आस्तीन चढ़ा लेने भर से ,कोई देश कभी न चला करता,
गर पले सांप आस्तीनों में ,फिर हाथ लकीर का क्या होगा।
(२ )
ये भारत है कोई इंडया नहीं ,नहीं टुकड़ा कोई धरती का ,
यह स्वयं धरित्री धारक है ,है पुण्य धाम मानवता का।
पंद्रह मिनिट का नाटक कर , कर्नाटक हासिल क्या होगा ,
निर्णय फाड़े काग़ज़ फेंके ,अब पहन जनेऊ क्या होगा।
(३)
बिन अनुभव की आंच तपे ,सिर पर गर ताज़ सज़ा तो क्या ,
जब वाह -वाही भट भाट करें ,फिर किसी की सूझ सलाह ही क्या।
ग़र भारत भाव नहीं जाना ,योरुप इतिहास पढ़ा तो क्या ,
फिर वज्र सरीखी दिल्ली में ,तेरी तदबीर का क्या होगा।
प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,एचईएस -वन ,सेवानिवृत्त )
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