शनिवार, 5 मई 2018

'हाथ का पुर्जा "-कविता: डॉ वागीश मेहता ,राष्ट्रीय विचारक भारत धर्मी समाज

'हाथ का पुर्जा "-कविता: डॉ वागीश मेहता ,राष्ट्रीय विचारक भारत धर्मी समाज 

                          (१ )

गिर गया हाथ से पुर्जा तो ,तेरी तक़रीर का क्या होगा ,

इस देश की संवरे न संवरे ,तेरी तकदीर का क्या होगा। 

आस्तीन चढ़ा लेने भर से ,कोई देश कभी न चला करता, 

गर पले सांप आस्तीनों में ,फिर हाथ लकीर का क्या होगा।  


                            (२ )

ये भारत है कोई इंडया नहीं ,नहीं टुकड़ा कोई धरती का ,

यह स्वयं धरित्री धारक है ,है पुण्य धाम मानवता का। 

पंद्रह मिनिट का नाटक कर , कर्नाटक हासिल क्या होगा ,

निर्णय फाड़े काग़ज़ फेंके ,अब पहन  जनेऊ  क्या होगा। 

                            (३)
बिन अनुभव की आंच तपे ,सिर पर गर ताज़ सज़ा तो क्या ,

जब वाह -वाही भट भाट  करें ,फिर किसी की सूझ सलाह ही क्या। 

ग़र भारत भाव नहीं जाना ,योरुप इतिहास पढ़ा तो क्या ,

फिर वज्र सरीखी दिल्ली में ,तेरी तदबीर का क्या होगा। 

प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ,एचईएस -वन ,सेवानिवृत्त )

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