बुधवार, 9 मई 2018

कौन कहता है के सपनों को न आने दें हृदय में , देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर अपने समय में।

कौन कहता है के सपनों को न आने दें हृदय में ,

देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर अपने समय में। 

राहुल (गांधी ?)द्वारा सपना देखने पर आश्चर्य कैसा ?जो व्यक्ति ढंग से राजनीतिक टिप्पणी नहीं कर सकता था और अक्सर संविधानिक पत्र को भी फाड़ देता था। आज वह शख्श संविधान प्रदत्त प्रक्रिया के तहत प्रधानमन्त्री बन जाने का स्वप्न ले रहा है। आखिर स्वप्न देखने से कौन किसको रोक सकता है। इसी विषय पर मैंने जब अपना कौतुक प्रकट करते हुए डॉ. वागीश मेहता (राष्ट्रीय विचारक ,भारत धर्मी समाज से )पूछा ,उन्होंने किसी प्रसिद्ध कवि की उक्त पंक्तियाँ उद्धृत कर दी। ये वही  शख्श है जिसने अपनी ही सरकार के संविधानसम्मत निर्णय को फाड़ के फेंक दिया था। और अब यही हाईकमान बना व्यक्ति सांसदों के प्रधानमन्त्री चुनने के निर्णय पर अग्रिम डाका डाल रहा है। वंशवाद का खूंटा उखड़ गया बछड़े की अकड़ न गई।  

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