ऐश्वर्य लोभान्मोहाद् वागच्छेद यानेन यो नरः।
निष्फलं तस्य तत्तीर्थ तस्माद्यान विवर्जयेत्। (मतस्य पुराण)
निष्फलं तस्य तत्तीर्थ तस्माद्यान विवर्जयेत्। (मतस्य पुराण)
तीर्थयात्रा में वाहन/यान वर्जित है क्योंकि ऐश्वर्य के गर्व से, मोह से या लोभ से जो यान पर बैठकर तीर्थयात्रा करता है, उसकी तीर्थ यात्रा निष्फल हो जाती है। राहुल गांधी ने अपनी तीर्थयात्रा के बारे में सच बोला या झूठ बोला आने वाले समय में उनको मिलने वाले भगवान महादेव के आशीर्वाद से खुद ही स्पष्ट हो जाएगा।
कांग्रेस का हाथ अब भोले के साथ।
राहुल बाबा की कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर लोग जुगाली कर रहें हैं बहरहाल इस सारे सिलसिले से सुरजेवाला बहुत दुःखी हैं।राहुल नेपाल होकर वाया ल्हासा मानसरोवर पहुंचे चीन की मेहमान नवाज़ी पर। लेकिन नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर ट्रस्ट के प्रबंधकों ने उन्हें हिन्दू मानने से इंकार कर दिया। कांग्रेस अब नेपाल को साम्प्रादायिक देश कह सकती है कह यह भी शक्ति है यह सब कुछ मोदी के इशारे पर हुआ है।
"राहुल बाबा को जनेऊ पहनकर जाना चाहिए था" सुरजेवाला मन ही मन सोच रहें होंगें। लाल अंडरवीअर ही पहन जाते तो सुरजेवाला उन्हें हनुमान भक्त घोषित करवा देते।
अब कौन सा वाहन उन्होंने इस यात्रा में कब कब इस्तेमाल किया इस बारे में कई कयास आ रहें हैं। चीनी हेलीकॉप्टर ,चीनी सेना का विशेष ट्रक ,अन्य कोई सड़क वाहन ?
लोग कह रहे हैं भाई साहब आपके चहरे पर सन बर्न क्यों नहीं हैं इतनी ऊंचाई पर सूरज बड़ा प्रचंड होता है गोरों पर उसकी विशेष कृपा रहती है राहुल कैसे बच गए ?और ३४ दिनी यात्रा आपने दस दिन में कैसे संपन्न कर ली।
भाईसाहब राहुल -बाबा ,राहुल हैं। नेहरुपंथी अवशेषी कांग्रेस की जान हैं। वह कोई भी करिश्मा दिखला सकते हैं दस दिन क्या यात्रा ढाई दिन में भी कैलाश की संपन्न कर सकते हैं।
हद तो ये है लोग उनके खानपान पर भी उंगलियां उठा रहें हैं :नेपाल के फलां होटल में उन्होंने पोर्क खाया या बीफ उनका व्यक्तिगत मामला है। आखिर भारत भ्रमण के बाद कैलाश कौन सा दूर था उनके लिए ये गया और वो आया बाबा राहुल।
तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी।
जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई ||
लोग तीर्थादि नहाने की बात करते हैं ,गुरु नानक कहते हैं -परमेश्वर को स्वीकार हो तभी तीर्थ -स्नानादि सम्भव है, और यदि स्वीकृति के बिना तीर्थ कर भी लें तो उसका क्या लाभ होगा।
गुरुनानक देव ये भी कहते हैं -
सोचै सोचि न होवई जे सोची लखवार ,
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिवतार।
यहां गुरुनानक देव तीर्थ स्नान आदि की निरर्थकता की और संकेत करते हैं तीर्थ स्नान द्वारा कोई पवित्र नहीं हो सकता। चाहे कोई लाख तीरथ नहा ले। जब तक मन का मुंह बंद नहीं होता मन की दौड़ बंद नहीं होती मौन बैठकर ध्यान लगाने से कुछ भी हासिल नहीं होता। मन का भांडा साफ़ हो तभी मन टिकता है। तभी वह गुरु से जुड़ता है।नाम जप से मन का भांडा साफ़ होता है। बाहरी आडंबर पूर्ण यात्राओं से नहीं।
अब लोग कह रहें हैं राहुल वहां जाकर नहाये नहीं , नहाना न नहाना आदमी का वैयक्तिक मामला है।हाँ अलबत्ता सवाल उनसे ये पूछा जा सकता है उनके मन से वहां 'मोदी ' निकला या नहीं। ईर्ष्या तो बकौल उनके उनका साथ छोड़ गई थी। पावित्र्य का साम्राज्य उन्हें कैलाश परिसर में दिखलाई दिया। लेकिन मोदी का क्या हुआ ?
सोचै सोचि न होवई जे सोची लखवार ,
जवाब देंहटाएंचुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिवतार।