शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

आतंकी दो चार मारकर ,हम खुशियों से फूल गए , सरहद की चिंताओं में हम ,घर के भेदी भूल गए।

पहले पुरुष्कार फिर डीलिट की कथित डिग्री लौटाने वाले लौटंकों ,चार उचक्के चालीस चोर कांग्रेसियों और लेफ्टीयों ने आज देश को आग के जिस मुहाने पे लाकर खड़ा कर दिया है वह जनेऊ से लेकर हरयाणा जाटआरक्षण आंदोलन तक आ पहुंचा है। उसी की सामूहिक अभिव्यक्ति इस रचना में हुई है जो किसी व्यक्ति की अनुभूति न रहकर समष्टिगत तदानुभूति बन गई है। वाट्स ऐप पर घूम रही थी ये रचना। क्यों न इसका विस्तार दिग्दिगांतरों तक हो फेस बुक से लेकर वाया ट्यूटर ब्लॉग जगत तक हो इसी मंशा के साथ आप तक पहुंचाई गई है ये भारतधर्मी समाज के उदगार की धारा :



खतरे का उद्घोष बजा है ,रणभूमि तैयार करो ,

सही वक्त है चुनचुन करके ,गद्दारों पर वार करो। 

आतंकी दो चार मारकर ,हम खुशियों से फूल गए ,

सरहद की चिंताओं में हम ,घर के भेदी भूल गए। 

सरहद पर कांटें हैं लेकिन ,घर के भीतर नागफणी ,

जिनके हाथ मशालें सौंपी ,वो करते हैं आगजनी। 

ये भारत की बर्बादी के ,कसे कथानक लगते हैं ,

सच तो दहशतगर्दों से ,अधिक भयानक लगते हैं। 

संविधान ने सौंप दिए हैं ,अस्त्र  शस्त्र आज़ादी के ,

शिक्षा के परिसर में नारे ,भारत की बर्बादी के। 

अफज़ल पर तो छाती फटते देखी है बहुतेरों की ,

जिस अफज़ल को न्यायालय ने ,आतंकी का नाम दिया ,

उस अफज़ल की फांसी को बलिदान बताने निकले हैं, 

और हमारे ही घर में हमको धमकाने निकलें हैं। 

बड़ी विदेशी साजिश के ,हथियार हमारी छाती पर ,

भारत को घायल करते ,गद्दार हमारी छाती पर। 

नाम कन्हैयाँ रखने वाले ,कंस हमारी छाती पर ,

माल उड़ाते जयचंदों के वंश हमारी छाती पर। 

लोकतंत्र का चुल्लू भरकर ,डूबमरो तुम पानी में ,

भारत गाली सह जाता है ,खुद अपनी रजधानी में। 

आज वतन को खुद के पाले घड़ियालों से खतरा है ,

बाहर के दुश्मन से ज्यादा ,घरवालों से खतरा है। 

देशद्रोह के हमदर्दी हैं ,तुच्छ सियासत करते हैं ,

और वतन के गद्दारों की ,खुली वकालत करते हैं। 

वोटबैंक की नदी विषैली ,उसमें बहने वाले हैं ,

आतंकी इशरत को ,अपनी बेटी कहने वाले हैं। 

सावधान अब रहना होगा ,वामपंथ की चालों से ,

बचकर रहना टोपी पहने ,ढोंगी मफलर वालों से। 

राष्ट्रवाद के रखवालों मत ,सत्ता का उपभोग करो ,

दिया देश ने तुम्हें पूर्ण ,उस बहुमत का उपयोग करो। 

हम भारत के आकाओं की ,खामोशी से चौंके हैं ,

एक शेर के रहते कैसे ,कुत्ते खुलकर भौंके हैं। 

अगर नहीं कुछ किया ,समूचा भार उठाने वाले हैं ,

हम भारत के बेटे भी ,हथियार उठाने वाले हैं। 

पूरा भारत धर्मी समाज इसी पीड़ा से आज गुजर रहा है जिसकी तदानुभूति हर पढ़ने वाले को भी होगी। 

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