शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

यह संसार नाम और रूप ही है। दोनों को विलगाया नहीं जा सकता। नाम का लोप होते ही संसार का लोप हो जाएगा। इसीलिए ओंकार की पुनरावृत्ति उसे साकार कर देती है जिसको यह सम्बोधित है।

वैदिक धर्म (हिदुत्व )के एक बड़े प्रतीक चिन्ह के रूप में एकाक्षरी (मनोसिलेबिल )समझे गए ॐ  का क्या महत्व है?

अमूमन किसी भी मांगलिक अनुष्ठान से पूर्व एक गंभीर और निष्ठ उदगार स्वत :प्रस्फुटित होता है हमारे मुख से एक अक्षरी ॐ। ये किसी भी अनुष्ठान के आरम्भ और संपन्न होने का सूचक होता है। चाहे फिर वह वेदपाठ हो या नित नियम  की वाणी (प्रार्थना ).गहन ध्यान -साधना ,मेडिटेशन का केंद्रबिंदु रहा है ॐ।

परमात्मा के नाम के करीब -करीब निकटतम बतलाया है ॐ को आदिगुरु शंकराचार्य ने। जब हम ॐ कहते हैं तो इसका मतलब परमात्मा से हेलो कहना है ,सम्बोधन है यह उस सर्वोच्च सत्ता की  प्रतिष्ठार्थ।

ॐ की बारहा पुनरावृत्ति (जप )वैराग्य की ओर ले जा सकती है इसलिए इसके जाप को  सन्यासियों के निमित्त समझा गया है। किसी भी प्रकार की वासना (इच्छा )सांसारिक सुख भोग की एषणा का नाश करता है इसका जप ऐसा समझा गया है। कहा यह भी गया यह गृहस्थियों को नित्य प्रति के आवश्यक सांसारिक कर्मों से भी विलग कर सकता है। सन्यासियों का ही आभूषण हो सकता है ॐ जो संसार से ,सब कर्मों से विरक्त हो ईश -भक्ति ,ज्ञानार्जन को ही समर्पित हो चुका है।

अलबत्ता इसका सम्बन्ध अन्य सभी मन्त्रों से रहा है ,ॐ अक्षर हर मन्त्र से पहले आता है ताकि गणपति (गणेश) मन्त्र जाप में कोई विघ्न न आने देवें। माण्डूक्य उपनिषद के अनुसार ॐ का निरंतर मनन अपने निज स्वरूप (ब्रह्मण ,रीअल सेल्फ )के सहज बोध की ओर ले जा सकता है। "ओंकार" का ज्ञान -बोध खुद को जान लेना है।

The name and the one that stands for the name are identical (are one and no second ).When we call a name there is an image of an object in our mind .

यह संसार नाम और रूप ही है। दोनों को विलगाया नहीं जा सकता। नाम का लोप होते ही संसार का लोप हो जाएगा। इसीलिए ओंकार की पुनरावृत्ति उसे साकार कर देती है जिसको यह सम्बोधित है।

ओंकार में तीन मात्राएँ "अ "; "उ " और  "म "शामिल हैं। ओ (O) दो मात्राओं का जोड़ है डिफ्थॉंग हैं अ और उ का। यानी अ -अकार और म -मकार।

"अ" को जागृत अवस्था का प्रपंच कहा गया है (प्रपंच या माया  इसलिए यह वे - किंग- स्टेट भी स्वप्न ही है फर्क इतना है इसकी अवधि औसतन ६० -७० वर्ष है बस जबकि नींद में आने वाले स्वप्न अल्पकालिक डेढ़ दो मिनिट से ज्यादा अवधि के नहीं होते .

उकार (उ )का सम्बन्ध उपनिषद ने स्वप्नावस्था से जोड़ा है। स्वप्न दृष्टा और स्वप्न देखने के अनुभव से जोड़ा है। जागृत अवस्था और स्वप्नावस्था परस्पर एक दूसरे का निषेध करते हैं। स्वप्नावस्था में आप को  न तो  स्थूल शरीर का बोध है न ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रीय का। स्वप्न देखने वाला मन ,स्वप्न के आब्जेक्ट्स सब स्वप्न की ही सृष्टि है जहां परबत ,समुन्दर से लेकर हर बड़े छोटे आकार की चीज़ें आप के यानी स्वप्न-दृष्टा के  द्वारा देखी जा रहीं  हैं ,स्वप्न के समय आपका अवचेतन मन सक्रीय है ,सूक्ष्म शरीर कार्यरत है स्थूल को कुछ पता नहीं है वह तो निढाल पड़ा है।

मकार (म )सुसुप्ति या गहन निद्रा (डीप स्लीप स्टेट )की स्थिति है जहां केवल आपका कारण शरीर(Causal Body ) शेष रह गया है ,वासनाएं हैं। सुबह उठकर आप कहते हैं -रात को मस्त नींद आई। ये कौन किस से कह रहा है वह कौन था जो गहन निंद्रा में था। फिर वह कौन है जो अब जागृत अवस्था में है ,जो स्वप्न देख रहा था वह कौन है। और मैं (मेरा स्व ,रीअल सेल्फ ) क्या है।

उपनिषद का ऋषि कहता है जो इन तीनों अवस्थाओं को रोशन कर रहा है वह 'तू '(यानी मेरा निज स्वरूप है रीअल आई है ).

अ ,उ ,म त्रय के और भी अर्थ निकाले गए हैं -तीन वेद(ऋग ,यजुर,साम )  -तीन लोक (मृत्य -स्वर्ग और इन दोनों के बीच का अंतरिक्ष ),तीन देवता (अग्नि- वायु- सूर्यदेव ),ब्रह्मा -विष्णु -महेश ,सतो -रजो -तमो गुण (त्रिगुणात्मक माया ). स्थूल -सूक्ष्म -कारण शरीर की तिकड़ी आदि। ज़ाहिर है तमाम सृष्टि का पसारा (विस्तार )इन तीन मात्राओं -अ,उ ,म में समाविष्ट है।

हम कह सकते हैं -Om refers to the personal form of  God ,the one with attributes i.e सगुण ब्रह्म।

मंगल ध्वनि ॐ  दो उच्चारणों के बीच का मौन -Impersonal form of God यानी निर्गुण ब्रह्म कहा जा सकता है। यह मौन निराकार है ,आयाम -हीन ,आयाम -शून्य ,Dimensionless है।

जबकि अ ,उ और म एक ड्यूरेशन (अवधि )लिए हैं ,मौन निर -अवधिक  है। इस प्रकार सिद्ध हुआ ओंकार ही प्रभु हैं प्रभु का नाम हैं।

महाकवि पीपा कहते हैं :

सगुण मीठो खांड़ सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,

जाको गुरु जो परस दे ,ताहि प्रेम सो जीम। 

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