मंगलवार, 21 नवंबर 2017

Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 12 Part 1 ,2

बड़े भाग पाइब सत्संगा ,


बिनहिं  प्रयास होइ भव भंगा।


अति हरि कृपा जाइ  पे होइ ,


पावत है एहि मारग  सोहइ  . 


आज संतों की चर्चा के तहत कथा से पहले(जाट जाति में जन्में ,राजस्थान के टोंक शहर के निवासी ) संत धन्ना जी की चर्चा :

संत धन्ना एक दिन अपने खेत पर गए देखा -वहां संत बैठे हैं धन्ना जी ख़ुशी से नाचने लगे संत अचानक क्या मेरे ऊपर तो प्रभु की ही कृपा हुई है सोचते हुए ।

 संत जब संतृप्त होकर खाने के बाद डकार लेते हैं ,सारे आशीर्वाद ऊपर आ जाते हैं। आज गेहूं के खेत के रूप में भगवान् मिले हैं। बीज तो मैंने सारा बाज़ार में बेच दिया था ,संतों के लिए भोजन सामग्री जुटाने के बदले। सिर्फ मैंने तो  बीज बोने का नाटक किया था। ताकि पिता  पीटें न। ये फसल कैसे लहलहाई। ?

मजदूर इतना सुंदर कैसे हो सकता है स्वयं भगवान् आज धन्ना के खेत में कामगार मजूर बनके  आएं हैं काम मांगने। धन्ना को रोमांच हो आया है। मजदूर इतना सुंदर कैसे हो सकता है। धन्ना के पूर्व जन्म के संस्कार उभर आये।धन्ना सोचे जा रहा है मजदूर इतना सुंदर कैसे हो सकता है।  

धन्ना जी को इहलाम होने लगा है -ये  कोई साधारण मजूर नहीं हो सकता।अवचेतन की स्मृतियों में भगवान् बसे  थे।मजूर के रूप में ही भगवान् कहने लगे मैं खेत की हिफाज़त कर लूंगा मुझे अपने खेत पे रख लो।मुझे काम चाहिए ,मेरे पास इस समय कोई काम नहीं है।  

तय हो गया एक चौथाई उत्पाद (हिस्सा  )मजूरी के रूप में मजदूर को देने को धन्ना राजी हो गए। 

जिमि बालक राखहिं महतारी .....

भगवान् बोले हम को और कुछ आता ही नहीं है ,हम खेत में ही रहेंगे ,रोटी तुम्हें यहीं पहुंचानी पड़ेगी। साझियाँ  के रूप में भगवान् सोये पड़े हैं। भूखे प्यासे। धन्ना ने सांझियाँ के चेहरे से खेस उठाया देखा ये तो साक्षात भगवान् राघवेंद्र सरकार हैं।भगवान् हड़बड़ा कर उठे और पुन : सांझिया का भेष बना लिया। 

धन्ना जी गाने लगे -

श्री रामचंद्र कृपाल भजमन हरण भव भय दारुणं .... 

भगवान् बोले गाना -वाना बाद में गाना बहुत ज़ोर की भूख लगी है अपनी पोटली खोलो क्या लाये हो खाने का। धन्ना जी माफ़ी मांगने लगे मैंने आपको अज्ञानता के कारण  क्या -क्या नहीं बोला। आज कुछ साधुसंत आ गए थे धन्ना उनकी सेवा टहल में लगे थे। भगवान् का खाना खेत पर लाने में आज देर हो गई थी । भगवान थककर लेट गए उनकी आँख लग गई थी। 

भगवान् बोले ये तुम्हारी चतुराई नहीं चलेगी अब हिस्सा देने का समय आ गया तो मुझे भगवान् -वगवान कहने का नाटक कर रहे हो। मेरा हिस्सा निकालो। 

धन्ना पैर छोड़ने को तैयार नहीं हुए -धन्ना ने जो बीज संतों के मुख में बोया था वह  पल्लवित होकर भगवान् रूप में धन्ना जी के खेत में आ गया था । 

कथा का सन्देश यहां पर यह है :संतों को कराया भोजन कभी व्यर्थ नहीं जाता। 

धन्ना का , बीज के हिस्से का गेहूं बाज़ार में बेच के दाल ,आटा आदि खरीद कर संतों को भोजन खुद पकाकर कराना फलीभूत हुआ था । 

कोई जब भूखे को भोजन कराता है- भगवान् तब सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं। जो अपना पेट काटकर दूसरों को अपने हाथ से परोसकर भोजन कराता है भगवान् उसका भंडार भरते रहते हैं। दूसरों को भोजन कराने वाले अन्न क्षेत्र में कभी कमी नहीं पड़ती है। 

जो संतों के मुख में डालता है वह मुख में उग आता है। भगवान् भजन से दिखाई देते हैं भाव से दिखाई देते हैं। वो स्वामी जी आज धन्ना के गुरु हो गए क्योंकि धन्ना के कारण धन्ना जी के गुरु को दर्शन प्राप्त हुआ था भगवान का। 

ये संत (स्वामी जी )एक बार धन्ना के खेत पे पधारे थे धन्ना स्वामी जी से बोले- भगवान् की मैं भी पूजा अर्चना  करना चाहता हूँ। महात्मा इधर उधर घूमकर लौट आये धन्ना  को एक मामूली गोल  पत्थर दिया कहते हुए यह शालिग्राम है इसकी पूजा किया करो -धन्ना ऐसा पूरे भाव से नित्य करते हैं और एक दिन साक्षात भगवान ही चरवाहा बनके आ जाते हैं धन्ना जी की गाय चराने। काम मांगने के बहाने। 

अब आज की राम कथा के प्रसंग में प्रवेश करते हैं :

सुनैना माँ ने किशोरी जी (जानकी जी )से कहा बेटी आज तुम्हारा स्वयंवर है  इसलिए बाग़ में जाओ गौरी माँ का पूजन करने । भगवान् राम जी भी ठीक इसी समय बाग़ में प्रवेश करते हैं गुरु - पूजन के लिए।  

एहि   अवसर आईं सीता सर ,

गिरिजा पूजन जननी पधारी।  

संग सखी सब सुभग सयानी ,

गावत गीत मनोहर वाणी। 

गृहस्थ आश्रम के लिए यह प्रसंग बड़ा महत्वपूर्ण है श्री राम करके दिखा रहे हैं ,श्री जानकी माता भी  वह करके दिखा रहीं हैं जो एक गृहस्थ को करना चाहिए। 

चरित्र करके दिखाया जा रहा है। दोनों की किशोरावस्था है। इस अवस्था में बेटा और बेटी सध गए तो उन्हें कोई डिगा नहीं सकता और यदि गिर गए तो कोई उठा नहीं सकता , मनुष्य के जीवन में हर सातवें वर्ष शरीरिक और मानसिक परिवर्तन होता है। चार चक्र युवावस्था के होते हैं।(०-७ शिशु - काल ;७ -१४ बाल्य काल ;१४ -२१ किशोरावस्था ;२१- २८ युवास्था जो आगे चलती है प्रौढ़ावस्था से पहले पहले तक ऐसे कई चक्र और भी आते हैं सात साला । हरेक सात साल के बाद हमारी पूरी चमड़ी भी बदल जाती है सांप की केंचुल सी।  

वयकिशोर सब भाँती सुहाए -

इसी उम्र में गुरु की शरण में जाइये। 

गुरु कोई शरीर नहीं होता। गुरु परमात्मा की किरण हुआ  करता  है। गुरु  मायने ज्ञान ,गरिमा ,मर्यादा ,प्रकाश ,सदाचार ,समर्पण -ये सब  गुण  गुरु के प्रतीक हैं। 

गौरी माने -ज्ञान ,प्रतिभा ,सेवा ,करुणा ,शील ,प्रेम ,त्याग, लज्जा ,समर्पण , दैवीय ,देवी ,दिव्य, मर्यादित ,सौम्यता । 

आज भारत की आत्मा को  खरोंच लगती  है क्योंकि स्त्रियां इस देश की आत्मा की  प्रतीक हैं जिन्हें आज एक सांसारिक ग्लोबल षड्यंत्र के तहत गिराया जा रहा है उदण्ड बनाया जा रहा है वस्त्र कम हो रहा है उनके तन   से.

 न्यायालय भी इनका समर्थन कर रहा है अनजाने ही यह सब हो रहा है। आज बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। योरोप में स्त्री का आकर्षण समाप्त हो चुका है क्योंकि  वह लगभग नग्न हो चुकी है।आज लड़कियों को जाने अनजाने  इसी दिशा में बढ़ाया जा रहा है। ये भारत है इसे नग्न देश मत बनाइये। यहां महादेव का जन्म होता है , महावीर का जन्म होता है।

अश्लील दृश्य नहीं चाहिए घर में बहु- बेटी का। मर्यादित आचरण और वस्त्र चाहिए घर -बाहर दोनों जगह।  
    


(१ )Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 12 Part 1 2016



(२)Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 12 Part 2 2016

1 टिप्पणी:

  1. Kaal Sarp Dosh Puja in Ujjain is a powerful ritual performed to remove the negative effects of Kaal Sarp Dosh in one’s horoscope. Ujjain, being one of the most sacred pilgrimage sites in India, is ideal for conducting this puja. Expert pandits perform the Kaal Sarp Dosh Puja with precise rituals, mantras, and offerings, helping individuals overcome obstacles in life, achieve peace, and experience spiritual upliftment. Visit us: Kaal Sarp Dosh Puja Ujjain | Mangal Bhat Puja Ujjain | mahamrityunjaya jaap in ujjain

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