अकर्ता का भाव आपके जीवन में आये। ऐसा अनुभव करिये आज अंतिम दिन है आपके जीवन का तब देखिये जीवन में कैसे परिवर्तन आते हैं । कथा आपके जीवन में रूपांतरण पैदा करे तभी सार्थकता है कथा सुन ने की ।
आप प्रकृति से जुड़ें ,जड़ वस्तुओं से चेतन जैसा ही व्यवहार करें। जीवन से सहजता चली गई ,पूरा जीवन चला गया ,जीवन संतुलन का नाम है। जो चल रहा है उसको जम के पकड़ लें जो बीत गया उसे भूल जाएँ। अपेक्षा रहित हो जाएँ।
अनुचित का विसर्जन कथा का परिणाम हो तभी कथा सुन ना सार्थक होगा। अहम को छोड़िये दुर्गुणों से मुक्ति पाइये ,हलके रहिये तभी जीवन में जो समस्याएं कुकुरमुत्तों की तरह चली आती है अनिमंत्रित उनसे दो चार होने की सूझ मिलेगी ,बल मिलेगा सात्विक। चार प्रकार की समस्याएं आती हैं हमारे जीवन में :
(१ )निजी जीवन की समस्याओं का संबंध होता है मन से। निजी जीवन में अशांति का केंद्र यह मन ही होता है।हमें मन पे काम करना पड़ेगा अन्यों पर आरोप लगाने से हल नहीं होंगी समस्याएं। निजी जीवन में आप सबसे ज्यादा परेशान स्वयं से होते हैं।
(२ )दूसरी समस्या पारिवारिक जीवन की होती है जिसका संबंध होता है तन से क्योंकि परिवार का सम्बन्ध तन से रहता है।
(३ )तीसरी समस्या है सामाजिक जीवन की जिसका संबंध है जन्म से।
(४ )चौथी समस्या होती है व्यावसायिक जीवन की जिसका संबंध होता है धन से।
किष्किंधा काण्ड इनका समाधान प्रस्तुत करता है। इसीलिए इसे मानस का रत्न कहा गया है।जैसे रत्न एक बेशकीमती डिब्बी में होता है जिसके नीचे भी अस्तर होता है और जिसके ऊपर भी अस्तर लगा ढक्कन होता है।किष्किंधा काण्ड भी इसी तरह बीच में है मानस के।
रामचररित मानस जीवन का प्रबंधन प्रस्तुत करती है। किष्किंधा काण्ड के सारे पात्र समस्या ग्रस्त हैं :
(१ )राम जी की समस्या सीता जी का अपहरण होना है
(२ )लक्षमण सोचते हैं यह सब मेरी गलती के कारण हुआ है
(३ )बाली इसलिए परेशान है सुग्रीव हाथ नहीं आता है जाकर छिप गया है किष्किंधा परबत पर
(४ )सुग्रीव की समस्या यह है बाली मार न दे।
(५ )हमनुमान की समस्या यह है राम कब मिलेंगे।
शरीर मन और आत्मा तीनों का प्रबंधन जीवन का प्रबंधन है अभी हम अपना सारा ध्यान अस्सी फीसद शरीर पर ही लगाते हैं इसे ही वजन देते हैं।ब्यूटीपार्लर की बढ़ती फैलती नर्सरी शहरों कस्बों में इसका प्रमाण है। फिर भी शरीर से स्वस्थ रहते हुए भी हम अशांत रहते हैं। मन पे हमें काम करना पड़ेगा। मन अन-गढ़ा पड़ा हुआ है इसे गढ़ना पड़ेगा। ध्यान (मेडिटेशन )से गढ़ा जाएगा मन।बिना गढ़ा पथ्थर पथ्थर गढ़ा हुआ भगवान् की मूर्ती।
आपको आप के अलावा कोई तंग नहीं कर सकता ,मन को गढ़िए।मन और आत्मा का प्रबंधन सिर्फ मनुष्य ही कर सकता है पशुपक्षी नहीं ,उनके कार्यकलाप शरीर तक ही हैं। लेकिन मनुष्य शरीर के प्रबंधन में ही ९९.९ फीसद अटका हुआ है । भोग यौनि है यह पशुवत इस प्रकार का जीवन जो शरीर प्रबंधन तक ही सीमित है।
इंसान लगातार जानवर होता जा रहा है तो क्यों ?सोचिये ज़वाब आपको ही ढूंढना है।
माँ अंजना हनुमान को कहती हैं जीवन में तुम्हें बहुत बड़ा आदमी बन ना है तुम्हें राम से मिलना है राम के लिए काम करना है जीवन में तीन बातें याद रखना
-प्रार्थना करना ,प्रार्थना (उपासना मनुष्य को विनम्र बनाती है ),परिश्रम और इन दोनों के बाद भी प्रतीक्षा करना -धैर्य भक्ति का संबल है बहुत बड़ा गुण है शर्त है।
अक्सर हनुमान बचपन में अकेले बैठे खुद से पूछा करते थे -आखिर मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है एक दिन माँ से भी यही सवाल पूछा तब उल्लेखित ज़वाब मिला।
बाली का बध हमें बतलाता है परिवार के सम्बन्ध नीति और नैतिकता पर चलने चाहिए। बाली अपने अनुज की पत्नी का अपहरण करके ले आता है इसीलिए मारा जाता है लेकिन जाते -जाते अंगद को भगवान के हवाले करके ये सन्देश भी दे जाता है अपने जीते जी अपनी संतानों को भगवान से जोड़ देना।
माता -पिता को भारतीय संस्कृति में भगवान् का दर्ज़ा दिया गया है। आपको संतान के प्रति करुणा आखिर तक नहीं छोड़नी है संतान जो भी करे ये वो जाने। संताने माँ बाप का आईना होती हैं आईने में छवि विकृत है तो आईना साफ़ किया जाता है तोड़ा नहीं जाता ,कहीं न कहीं हमें अपना आचरण भी चेक करना पड़ेगा कहीं संतान हमारी वजह से तो नहीं बिगड़ रही।
मेडिटेशन कर लेना १५ मिनिट संतानें बचाने के लिए आज यह ज़रूरी है आज संतान केवल विचार और शब्दों से नहीं पाली जा सकती ,उसके अंदर उतरना पड़ेगा पहले अपना आचरण ठीक करना पड़ेगा ।
सत्संग से क्रोध समाप्त हो जाता है। कुपित लक्ष्मण जी का क्रोध राम का यशोगान सुनने पर समाप्त हो जाता है लक्ष्मण सुग्रीव को समझाने आये थे अपने ढंग से -तुम भगवान् का काम भूल गए ,सीता की खोज का काम भूल गए।
साकिया भले टाल दे मुझे मयखाने से ,
मेरे हिस्से की छलक जाएगी पैमाने से।
सुग्रीव राम से कृपा माँगते हैं ये कहते हुए काम क्रोध और लोभ के हण्डों से कौन बचा है फिर मैं ठहरा नीच कुल का वानर गलती हुई मुझसे -तेरी कृपा के बिना अब मेरा पार नहीं मेरे साधने से कुछ न सधेगा।सुग्रीव भगवान से कृपा मांगना सिखलाते हैं।
किष्किंधा काण्ड का एक और सन्देश है :गलत बात एक सीमा तक ही सहना ,इसके आगे इसका प्रतिरोध न करना इसे बढ़ावा देना होगा। कोई एक चांटा मारे दूसरा आगे करना यहां तक तो ठीक लेकिन तीसरा मारे तो पलट के ज़ोरदार मुक्का मारना बुरा नहीं है।
संदर्भ -सामिग्री :
https://www.youtube.com/watch?v=HmT4ehEspeI
आप प्रकृति से जुड़ें ,जड़ वस्तुओं से चेतन जैसा ही व्यवहार करें। जीवन से सहजता चली गई ,पूरा जीवन चला गया ,जीवन संतुलन का नाम है। जो चल रहा है उसको जम के पकड़ लें जो बीत गया उसे भूल जाएँ। अपेक्षा रहित हो जाएँ।
अनुचित का विसर्जन कथा का परिणाम हो तभी कथा सुन ना सार्थक होगा। अहम को छोड़िये दुर्गुणों से मुक्ति पाइये ,हलके रहिये तभी जीवन में जो समस्याएं कुकुरमुत्तों की तरह चली आती है अनिमंत्रित उनसे दो चार होने की सूझ मिलेगी ,बल मिलेगा सात्विक। चार प्रकार की समस्याएं आती हैं हमारे जीवन में :
(१ )निजी जीवन की समस्याओं का संबंध होता है मन से। निजी जीवन में अशांति का केंद्र यह मन ही होता है।हमें मन पे काम करना पड़ेगा अन्यों पर आरोप लगाने से हल नहीं होंगी समस्याएं। निजी जीवन में आप सबसे ज्यादा परेशान स्वयं से होते हैं।
(२ )दूसरी समस्या पारिवारिक जीवन की होती है जिसका संबंध होता है तन से क्योंकि परिवार का सम्बन्ध तन से रहता है।
(३ )तीसरी समस्या है सामाजिक जीवन की जिसका संबंध है जन्म से।
(४ )चौथी समस्या होती है व्यावसायिक जीवन की जिसका संबंध होता है धन से।
किष्किंधा काण्ड इनका समाधान प्रस्तुत करता है। इसीलिए इसे मानस का रत्न कहा गया है।जैसे रत्न एक बेशकीमती डिब्बी में होता है जिसके नीचे भी अस्तर होता है और जिसके ऊपर भी अस्तर लगा ढक्कन होता है।किष्किंधा काण्ड भी इसी तरह बीच में है मानस के।
रामचररित मानस जीवन का प्रबंधन प्रस्तुत करती है। किष्किंधा काण्ड के सारे पात्र समस्या ग्रस्त हैं :
(१ )राम जी की समस्या सीता जी का अपहरण होना है
(२ )लक्षमण सोचते हैं यह सब मेरी गलती के कारण हुआ है
(३ )बाली इसलिए परेशान है सुग्रीव हाथ नहीं आता है जाकर छिप गया है किष्किंधा परबत पर
(४ )सुग्रीव की समस्या यह है बाली मार न दे।
(५ )हमनुमान की समस्या यह है राम कब मिलेंगे।
शरीर मन और आत्मा तीनों का प्रबंधन जीवन का प्रबंधन है अभी हम अपना सारा ध्यान अस्सी फीसद शरीर पर ही लगाते हैं इसे ही वजन देते हैं।ब्यूटीपार्लर की बढ़ती फैलती नर्सरी शहरों कस्बों में इसका प्रमाण है। फिर भी शरीर से स्वस्थ रहते हुए भी हम अशांत रहते हैं। मन पे हमें काम करना पड़ेगा। मन अन-गढ़ा पड़ा हुआ है इसे गढ़ना पड़ेगा। ध्यान (मेडिटेशन )से गढ़ा जाएगा मन।बिना गढ़ा पथ्थर पथ्थर गढ़ा हुआ भगवान् की मूर्ती।
आपको आप के अलावा कोई तंग नहीं कर सकता ,मन को गढ़िए।मन और आत्मा का प्रबंधन सिर्फ मनुष्य ही कर सकता है पशुपक्षी नहीं ,उनके कार्यकलाप शरीर तक ही हैं। लेकिन मनुष्य शरीर के प्रबंधन में ही ९९.९ फीसद अटका हुआ है । भोग यौनि है यह पशुवत इस प्रकार का जीवन जो शरीर प्रबंधन तक ही सीमित है।
इंसान लगातार जानवर होता जा रहा है तो क्यों ?सोचिये ज़वाब आपको ही ढूंढना है।
माँ अंजना हनुमान को कहती हैं जीवन में तुम्हें बहुत बड़ा आदमी बन ना है तुम्हें राम से मिलना है राम के लिए काम करना है जीवन में तीन बातें याद रखना
-प्रार्थना करना ,प्रार्थना (उपासना मनुष्य को विनम्र बनाती है ),परिश्रम और इन दोनों के बाद भी प्रतीक्षा करना -धैर्य भक्ति का संबल है बहुत बड़ा गुण है शर्त है।
अक्सर हनुमान बचपन में अकेले बैठे खुद से पूछा करते थे -आखिर मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है एक दिन माँ से भी यही सवाल पूछा तब उल्लेखित ज़वाब मिला।
बाली का बध हमें बतलाता है परिवार के सम्बन्ध नीति और नैतिकता पर चलने चाहिए। बाली अपने अनुज की पत्नी का अपहरण करके ले आता है इसीलिए मारा जाता है लेकिन जाते -जाते अंगद को भगवान के हवाले करके ये सन्देश भी दे जाता है अपने जीते जी अपनी संतानों को भगवान से जोड़ देना।
माता -पिता को भारतीय संस्कृति में भगवान् का दर्ज़ा दिया गया है। आपको संतान के प्रति करुणा आखिर तक नहीं छोड़नी है संतान जो भी करे ये वो जाने। संताने माँ बाप का आईना होती हैं आईने में छवि विकृत है तो आईना साफ़ किया जाता है तोड़ा नहीं जाता ,कहीं न कहीं हमें अपना आचरण भी चेक करना पड़ेगा कहीं संतान हमारी वजह से तो नहीं बिगड़ रही।
मेडिटेशन कर लेना १५ मिनिट संतानें बचाने के लिए आज यह ज़रूरी है आज संतान केवल विचार और शब्दों से नहीं पाली जा सकती ,उसके अंदर उतरना पड़ेगा पहले अपना आचरण ठीक करना पड़ेगा ।
सत्संग से क्रोध समाप्त हो जाता है। कुपित लक्ष्मण जी का क्रोध राम का यशोगान सुनने पर समाप्त हो जाता है लक्ष्मण सुग्रीव को समझाने आये थे अपने ढंग से -तुम भगवान् का काम भूल गए ,सीता की खोज का काम भूल गए।
साकिया भले टाल दे मुझे मयखाने से ,
मेरे हिस्से की छलक जाएगी पैमाने से।
सुग्रीव राम से कृपा माँगते हैं ये कहते हुए काम क्रोध और लोभ के हण्डों से कौन बचा है फिर मैं ठहरा नीच कुल का वानर गलती हुई मुझसे -तेरी कृपा के बिना अब मेरा पार नहीं मेरे साधने से कुछ न सधेगा।सुग्रीव भगवान से कृपा मांगना सिखलाते हैं।
किष्किंधा काण्ड का एक और सन्देश है :गलत बात एक सीमा तक ही सहना ,इसके आगे इसका प्रतिरोध न करना इसे बढ़ावा देना होगा। कोई एक चांटा मारे दूसरा आगे करना यहां तक तो ठीक लेकिन तीसरा मारे तो पलट के ज़ोरदार मुक्का मारना बुरा नहीं है।
संदर्भ -सामिग्री :
https://www.youtube.com/watch?v=HmT4ehEspeI
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