रविवार, 15 दिसंबर 2019

प्रकृति (हमारे तमाम पारितंत्र हमारा पर्यावरण हवा, मिट्टी पानी यानी पारिस्थितिकी -पर्यावरण )हमसे भिन्न नहीं हैं -To Conserve Eco-Systems and Our Environments : we salute the divinity in all the five elements


To Conserve Eco-Systems and Our Environments :

we salute the divinity  in all the five elements 

प्रकृति (हमारे तमाम पारितंत्र हमारा पर्यावरण हवा, मिट्टी पानी यानी पारिस्थितिकी -पर्यावरण )हमसे भिन्न नहीं हैं लेकिन हमारा दुर्भाग्य हमने स्वयं को उस से अलग कर लिया है। इसी लिए आज हम कष्ट में हैं जिसकी अभिव्यक्ति षोडशी ग्रेटा थुंबर्ग के शब्दों में मुखरित हुई थी संयुक्त राष्ट्र के मंच पर बीते सितंबर मॉस ,२०१ ९ में.उस नन्नी जान की चेतावनी को हम सुने समझे इस कायनात को बनाये रहें। इसके तमाम संशाधन न डकारें। एक बार फिर से पृथ्वी को गऊ बन के न कराहना पड़े ब्रह्माजी को लेकर जगत नारायण महाविष्णु की शरण न जाना पड़े। 

और भी बड़ा हमारा दुर्भाग्य है हमारा -हम प्रकृति को जीतने का भ्रम खड़ा करते आये हैं जबकि हारे हम ही हैं प्रकृति हमें सावधान करती है दृष्टा भाव से हमें निहारती है संतुलन स्थापित करने की कोशिश करती है हम हैं के तमाम संशाधनों का लगातार सफाया कर रहें हैं। डेढ़ अर्थ के समतुल्य संशाधन  हम डकार चुके हैं और अभी हमारी भूख ऊर्जा की  मिटी नहीं है।कहाँ से लायेंगें हम और संशाधन एक और पृथ्वी। माँ तो सबकी एक ही होती है ,दो- दो कहाँ होतीं हैं , 
समाधान है और एक दम  से फूल प्रूफ है सरल है उसके भले अनुगामी ना बन पाएं उसके सहचर तो बने सख्य-भाव से उसके साथ रहें । हम वही हैं  उसी जल का हिस्सा हैं जो पृथ्वी के पौर -पौर में समाया है हमारी तमाम कोशाओं में है। लेकिन हम आमादा हैं पृथ्वी के ऊपर और नीचे के जलाशयों की अनदेखी ही नहीं हम उन्हें हड़पते आये हैं आसमान छूती जंगली इमारतें हमने खरपतवार सी  पैदा कर दी  हैं पृथ्वी के विराट सीने पर। जो भूदोलन-किसी जलजले -अज़ाब -भूकंप के एक ही झटके में कभी भी धूल चाट सकती हैं। बस रिख्टर पैमाने पर उसे आठ नौ अनेक के पार नहीं जाना है छूना भर है। बेहतर हो गुरुनानक देव की ५५० वी वर्षगाँठ पर हम समझें :

पवन गुरु ,पानी पिता माता  धरत महत,
दिवस रात दुई दा दइआ  ...... (श्रीगुरुग्रंथसाहब )   

To Conserve Eco-Systems and Our Environments :

we salute the divinity  in all the five elements 

Pawan Guru Pani Pita Mata Dharat Mahat 

Divas Raat Dui Dai Daia   ...khelai sagl jagat . 

Air is our guru ,water our father ,and the great earth our mother ;
Day and night are the male and female nurses , in whose lap the whole world plays . 

यानी ये कुदरत ये सारी कायनात हमारी हवा पानी और मिट्टी हमसे जुदा कहाँ हैं  हमारी शिक्षिका हैं  गुरुआनी है यही ग्रीन -बानी है ग्रीन एनर्जी है। हरित ऊर्जा है। शाश्वत वाणी है। 
आकाश के नीचे शेष चारों तत्व हमारी हवा ,अग्नि ,पानी और मिट्टी (धरती )कायम हैं । इसके साथ लय- ताल, मेल-मिलाप , तादात्म्य ,समरसता हार्मनी बनाये रहना खुद को बनाये रखना है हम रहें न रहें ये पाँचों तत्व शाश्वत हैं। 
पृथ्वी इनके सम्मिलन के लिए बरसों से मौजूद रही है। ये महज़ इत्तेफाक है यहां जीवन है एक गुरुत्व है जो जैवमंडल (बायोम,biome/biomes )को संभाले हुए है । 

पहला पानी जिउ है पहला पानी जिउ है पहला पानी जिउ है .....
first there was only water .

-यह साधरण कथन नहीं है महावाक्य है गुरुनानक देव का। सभी जीवों का सार रूप जहां -जहां भी बायोस्फीयर की हलचल है वह वहां वहां ही है जहां जल है जल की पहुँच है। यह जल ही है इसलिए हमारे यहां कहा गया जल है तो जीवन है जल नहीं तो जीवन नहीं।जल ही जीवन  है। 
आज हम कराह उठे हैं इस सीमित पेय जल की छीना झपटी से। क्या अगला विश्व युद्ध इसी जल के कारण होगा। 
हमारी पर्यावरण चेतना पारितंत्रों इको तंत्रों के प्रति हमारी संवेदना का क्या हुआ ?यूं ही गंगा को पतित पावनी , नदियों को जीवन दायनी कहा गया। वृक्षों को वनदेवता और वनदेवियों को नाहक ही पूजा जाता है। मेघालय की जनजातियों ने आज भी एक Sacred Forest को जीवित रखा है यह वर्जना जोड़कर जो इस पवित्र वन से लकड़ी तोड़ेगा उसका पूरा का पूरा कुनबा वंशवेळ नष्ट हो जाएगी। 
नानक वाणी जीवन की इकाई मात्र में हर कोशिका में सोमाटिक और जेनेटिक सेल्स में जीवन का मूर्त रूप स्वयं 'अकाल पुरख 'को मूर्त रूप देखती है :

इक ॐ सतनाम करता पुरख निर्भय निर्वैर ,
अकाल मूरत अजूनि सैभंग गुरपरसाद 
अजूनि सैभंग गुरपरसाद  
व्याख्या :ईश्वर और उसकी कायनात एक ही है यानी रचना और रचता एक ही है दो नहीं है जो कुछ है वह हो रहा है एक डायनेमिक क्रिएशन है।  कर्ता  कोई नहीं है यहां होना भर है।हो  रहा है। 

क्योंकि दूसरा कोई है ही नहीं तो भय कैसा वैर कैसा  ?और किससे  वैर क्योंकि  भय के लिए दो होने चाहिए एक वो जो भयभीत हो दूसरा जिसका भय हो।

उसका प्रतिबिम्ब कल भी वैसा ही था आज भी वैसा ही है कल भी वही रहेगा। अंतरिक्ष और काल से वह परे है क्योंकि वही तो है जो कालों का काल है इसीलिए अकाल है।वह स्वयं प्रकट है दिव्यअखंड प्रकाश है। स्वयं -भू है। स्वयं प्रगटित है। यौनिक सृष्टि नहीं है। प्रकट मैनफेस्ट और अप्रकट  अनमैनीफेस्ट वही है सदैव ही परमानंद  ब्रह्मानंद है वह (गुरु की कृपा से ही उसका प्राकट्य है ).अनुभूत  तभी होगा जब आपका भांडा  साफ होगा  पावित्र्य से संसिक्त होगा।  
You are though art .you are that what was i searching for i am that .



https://www.youtube.com/watch?v=cQX_r3vL-j0

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें