बुधवार, 15 नवंबर 2017

बाढ़ै खल बहु ,चोर, जुआरा , जे लम्पट परधन परदारा , माँ नहीं मातु ,पिता नहीं देवा साधुन संग करवा -वहिं सेवा ,

करहिं आहार शाक फल कंदा ,

सुमरहिं ब्रह्म सच्चिदानंदा। 

आहार का प्रभाव भजन पर पड़ता है। भजन करने वाले को आहार बहुत शुद्ध चाहिए। मनुष्य जैसा आहार करता है वैसा उसका स्वभाव बनता है। 

पत्ती वाली सब्ज़ी (मैथी ,पालक ,शलगम के पत्ते ,बथुआ ,चौलाई आदि )से पेट शुद्ध  होता है।जिस मौसम में जो पत्ते वाली सब्ज़ी (शाक )मिले खाइये। 

 फल से मन शुद्ध होता है मौसम का फल हर मौसम में अनेक प्रकार के फल आते हैं उससे मन शुद्ध होता है। मौसमी फल खाइये ,ज़रूरी नहीं है शेव और अनार ही खाएं। अमरुद एंटीऑक्सीडेंट के मामले में शिखर पर बैठा है शेव  तो कोई इस क्रम में पांचवें  स्थान पर है।

बेर और जामुन ,किसी से कम नहीं है और न ही कम है फालसा (बैरी ).,और रसभरी।   

कंद से बुद्धि शुद्ध होती है विचार शुद्ध होता हैआलू ,अरबी ,कंद ,जिमीकंद ,चुकंदर ,शलगम ,मूली ,गाजर आदि यहीं  हैं।  

भजन जिससे बिगड़ता है वो आहार आपकी थाली में ही हो ये ज़रूरी नहीं है। 

मध्य प्रदेश में  सर्वाधिक  शाकाहारी लोग  रहते हैं। जब कोई साधु  भोजन पर बात करता है। प्याज लहसुन पर ध्यान चला जाता है। इस समय मनुष्य ज़हरीला बहुत सारा केमिकल खा रहा है ,जीवनाशी ,कीटनाशी ,आदि छिड़कना लाज़मी सा हो गया है कथित उत्तम खेती में।  अगर इस ज़हर से बचना है तो प्याज लहसुन एक औषधि है। भोजन की थाली से स्वास्थ्य बनता बिगड़ता  है।भले भोजन की थाली का भोजन सात्विक ही होना चाहिए। भजन को बनाने बिगाड़ने वाली और भी बातें हैं। 



एक आहार वो है जिसको हमारा शरीर दिन रात करता है। जो हमारी इन्द्रियाँ करतीं हैं। हमारा रोम-रोम  स्पर्श करता है,स्पर्श का सुख भोगता है वाज़िब , गैर वाज़िब  ,आँख अश्लील दृश्य का ,कान उत्तेजक  संगीत का आहार कर रहा है. जिभ्या के द्वारा वाणी का आहार हो रहा है स्वाद का आहार हो रहा है भजन इनसे, बिगड़ता है भोजन से नहीं। इन्हें सात्विक बनाइये। 

वी हेव ए क्रिमिनल आई 

उत्तेजक -परफ्यूम नाक सूंघती विवाह में ,नाइट पार्टियों में। मन बौराता है फिर घर आकर अनाप शनाप करता है।   

शयन कक्ष ,सोने वाले कमरे से (बैड रूम ) से टेलीविजन हटा दीजिये ,वरना लाख कोशिश कर लीजिये भजन नहीं होगा। कुछ दिन प्रयोग करके देख लीजिये। अर्द्ध नग्न चित्र मन में बसेरा कर लेते हैं। 

भगवान् ने प्रकट होकर दर्शन दिया है। मनु महाराज कहते हैं मुझे आप के  जैसा ही पुत्र चाहिए। 
 भगवान् ने कहा मेरे जैसा तो मैं ही हूँ। मैं ही तुम्हारे घर में पुत्र रूप जन्म लूंगा। आपके लिए अब  जैसा मैं हूँ वैसा दूसरा कहाँ से ढूंढ कर लाऊँ ?

आप सरिस खोजहुँ कहाँ जाहिं 

कुछ समय के बाद आप बहुत आसानी से शरीर छोड़ेंगे ,मेरे लोक में आकर निवास करेंगे - जल्दी ही आएंगे।  त्रेता में आप अवध नरेश होंगे मैं ही आपके यहां पुत्र बनकर जन्म  लूंगा।अंश के सहित मैं आपके यहां  अवतार लूंगा। धैर्य रखिये आप  जल्दी आएंगे गोलोक । 

जब भी सत्य लोभ के पीछे दौड़ेगा तो कोई न कोई 'कपट -मुनि' मिलेगा जो आपको राक्षस बनाके छोड़ेगा। 

आगे की कथा -इसी संदर्भ में है 

प्रतापभानु को ब्राह्मणों का शाप हो गया। सत्यकेतु का बेटा लोभ लालच के पीछे दौड़ा है राक्षस हो गया। यही प्रतापभानु आगे चलकर रावण बना। रावण ने जन सभा बुलाई है सभी नागरिकों अपने एक लाख पुत्रों सवा लाख नातियों के साथ बैठा है। 

रावण ने आदेश दिया -मेघनाद जाओ 

जेहि बिधि होये धर्म होये  निर्मूला -

जैसे भी हो जिस विधि भी धर्म को नष्ट हो करो।वेदों को समाप्त कर दो ,गौशालों में आग लगाओ ब्राह्मणों की बस्तियां उजाड़ो।   मूर्तियों को खंडित कर दो ,स्त्रियों   के गर्भ गिराओ।त्राहि त्राहि मच गई चारों दिशाओं में। तीनों लोक थरथरा के कांपने लगे।  

शंकर जी पार्वती को भगवान् राम के जो पूर्ण ब्रह्म हैं अवतार लेने के कारणों पर प्रकाश डाल रहे हैं :



बाढ़ै खल बहु ,चोर, जुआरा ,

जे लम्पट परधन परदारा ,

माँ नहीं मातु ,पिता नहीं देवा 

साधुन संग करवा -वहिं सेवा ,

जिनके ये आचरण भवानी ,

तेह जानहुँ निसिचर सब  प्राणी। 

धरती को शास्त्र में धैर्य कहा है। धरती ये पापाचार देखकर घबरा जाती है। पाप का भार भूमि सह नहीं पा रही है ,ऋषियों के पास सहायता मांगने जाती है गाय बनकर । ऋषि बोले देवी तुम अपना रोना रो रही हो हम खुद ही डरे -डरे रहते हैं न जाने कब मेघनाद आ जाए। जब सत्य मौन हो जाए मनन करने की क्षमता समाप्त हो जाए भगवान अवतार लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। पुण्य और पुण्यात्माओं को बचाने के लिए पाप कर्म के विनाश के लिए। 

देव लोक में देवता घबराये हुए हैं -हम तो बाहर ही नहीं निकलते। देवता सद्कर्मों के प्रतीक हैं जब ये सद्कर्म समाज के कहीं दिखाई न दें दुष्कर्म ही दिखाई दें भगवान् कदम आगे बढ़ा देते हैं अवतार लेने के लिए । 

भगवान् से प्राथना करो  शंकर जी ने देवताओं से ,गाय से  कहा: 

देवता पूछने लगे शंकर जी से -

भगवान् कहाँ  मिलेंगे ,शंकर जी कहते हैं :

हरी व्यापक सर्वत्र समाना ,

प्रेम ते प्रकट होईं  मैं जाना। 

भगवान् कभी खोजे  नहीं जाते खोजने से मिला भी नहीं करते। 

भगवान् पुकारे जाते हैं जैसे चोर कभी पुलिस को नहीं खोजता लेकिन चोर कहीं भी छिपकर बैठ जाये पुलिस उसे ढूंढ ही लेती है वैसे ही भगवान् रुंधे हुए कंठ से पुकारे जाते हैं कंपकंपाते होंठों से याद किये जाते हैं भक्त कहीं भी   हों   फिर  वह खुद ही ढूंढ लेते हैं। 

(ज़ारी ...) 

(१ )https://www.youtube.com/watch?v=Wpd38pP_nP4

(२ )https://www.youtube.com/watch?v=oZf57KKvxao

(३ )



Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 9 Part 2 2016 mangalmaypariwar.com


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