जीवन में शान्ति न तो छीना -झपटी करने से मिलती है न धोखा धड़ी से। हालांकि देवताओं और असुरों ने दोनों ने ही अमृत पीया था लेकिन फिर भी शांत दोनों में से कोई भी नहीं हुआ क्योंकि देव छलकपट से अमृत -पान करना चाहते थे और असुर छीन -झपट कर। अब ये और बात है देवताओं ने भगवान् को पुकारा और वो मदद को आ गए।
देवासुर संग्राम सुदूर अतीत में हुआ हो या न हुआ हो यह तो पुराण जाने ,लेकिन हमारे भीतर ये निरंतर चल रहा है। ये संघर्ष अंदर का है बाहर का नहीं। देव -वृत्ति और राक्षस- वृत्ति दोनों हमारे भीतर हैं। देव -वृत्ति कहती है कुछ दान करो ,किसी की मदद करो ,माँ बाप की सेवा करो ,असुर -वृत्ति फट कहती हैं इनसे कैसे काम चलेगा ,कुछ बे -ईमानी करो ,छल करो ,पैसा कमाने के लिए यह ज़रूरी है। बेटी की शादी करनी है बेटा विदेश में पढ़ने को भेजना है। यह संघर्ष शाश्वत है।
सच ये है उस घड़े में अमृत -कलश में अमृत नहीं था। हर घड़े में अमृत है। शोध करो ,मिलेगा।
न शेष नाग के फन में है अमृत -होता तो उसमें विष क्यों है। सागर में है तो वह खारा क्यों है। किसी अप्सरा सुंदरी के ओंठों में है तो पति तो उसका नियमित सेवन करता है उसकी मौत क्यों हो जाती है फिर ?
अमृत की धार बहे संतन की वाणी में
हम सब मृत के लिए जी रहे हैं। जो कुछ भी हम कर रहें हैं ,जो कुछ भी अर्जित कर रहें हैं इसे एक दिन मौत छीन लेती है। जिनके लिए हम ने जीवन खपाया वह सब का सब यहीं रह जाता है। हम सब मृत में डूबे हैं। फिर अमृत क्या है ?
कथा ही अमृत है
समस्त देवों की कथा अमृत है -राम कथा ,कृष्ण कथा ,भागवद कथा
संजीवनी 'भगत' लाता है हनुमान जी लाते हैं तब लक्ष्मन की मूर्छा दूर होती है। मेघनाद काम का प्रतीक है। लक्ष्मण जैसा 24x7 चौबीस घंटा जागृत व्यक्ति भी काम मूर्छित हो जाए तो भगवंत भी उसे ठीक नहीं कर सकते उसे ठीक करने के लिए हनुमंत चाहिए। राम भक्त चाहिए जो निरंतर राम कथा का सेवन कर रहा है युगों -युगों से। इस संसार में मन के मैल को धोने का यदि कोई साबुन है तो वह राम कथा है।
मोक्ष प्राप्त करने का यदि कोई साधन है तो वह राम कथा ही है। मन का मैल किसी साधना से ,किसी योग से ,प्राणायाम से दूर नहीं होता है। बड़ी -बड़ी योग साधना करने वालों के भी मन में इतना कचरा भरा रहता है ,वह पडोसी के घर के दीपक भी देखना पसंद नहीं करते।
रघुवंश भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं कहहिं जे गावहिं ,
कलि मल मनोमल धोइ बिन ......
कथा सुनिए आपको पाप छोड़ के खुद ब खुद चले जाएंगे ,किसी प्रकार की ताकत इन्हें छोड़ने में मत लगाइये।
सुनहिं जे कथा श्रवण मन लाइ ......
मनसा -वाचा -कर्मणा जो भी पाप हुए ,कथा सुनिए ,आपको छोड़ के चले जाएंगे। केवल राम कथा सुनिए और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है सुन लीजिये रोग भव का चला जाएगा।मनुष्य की समस्या यही है ये किसी की सुनता ही नहीं है। यही शिकायत घर के एक सदस्य को दूसरे से रहती है। झगड़ा सारा सुन ने का है और इसी न सुनने के कारण मनुष्य अशांत रहता है।
जो सुन लेता है वह सबसे बड़ा हो जाता है। माँ सबकी सुन लेती है इसलिए घर में सबसे बड़ी मानी जाती है।
सुनी महेश परम सुख मानी .....
परम सुख का माने परमात्मा का दर्शन परमात्मा का सानिद्ध्य। शिव को यही प्राप्त होता है। जहां कथा होती है वहां सभी तीरथ चले आते हैं बस जाते हैं।
सुख केवल सांसारिक वस्तुओं का होता है।
कथा तो स्वयं भगवान् भी सुनेंगे।
गंगा धाम में बैठकर भगवान् भी सुनते हैं कथा ,कथा में ही मिलते हैं राम।
शरीर विज्ञान है यह ध्यान से सुनिए :जो कुछ हम मुख से खाते हैं मल के रास्ते बाहर आता है।
जो कुछ भी हम कानों से सुनते हैं दिन भर ,मुँह से भी वही निकलता है ,निर्णय हम करें कानों से अंदर कथा ले जानी है या कचरा । जीवन कचरा -घर नहीं कथा -घर होना चाहिए। भोग थोड़ी देर का ही अच्छा रहता है फिर तो भोग से भी गंध आती है। जो भी हम सुनेंगे वह हमारे मन में बसेगा। हनुमान चालीसा इसका प्रमाण है।
राम लखन सीता मन बसिया -हनुमान रात दिन भगवान् की कथा सुनते हैं ,राम उनके मन में बस जाते हैं।
गुरु वही है जो मार्ग बताते दे गुरु कोई शरीर नहीं है।जो भगवद प्राप्ति का मार्ग बता दे , प्यास बढ़ा दे वही गुरु है ,उसकी कोई जाति नहीं होती।संतों की वाणी में ही गुरु का वास है।
सांवरे से मिलने का बस कथा ठिकाना है। भक्ति की दीक्षा कोई भी दे सकता है ,रानी को रानी की दासी भी दे सकती है। भगवान् में डूब जाना ,रम जाना विलीन हो जाना ही भजन है।
बिन सत्संग न काहू पाए
सत्संग संक्रामक होता है। सत्संग अपने रंग में रंग लेता है।
राम कृपा बिन सुलभ न सोइ
बिन सत्संग बिबेक न होइ।
आदमी दो में ही डूबा करता है प्रेमी में या दुश्मन में बस स्वाद में अंतर होता है। अपना बेटा हर वक्त याद आता है वह जो दूर देश पढ़ने चला गया है। भगवान् को याद करने के लिए माला जपनी पड़ती है।
हम ध्यान करते हैं भगवान् हमारे दिल में आये गोपी याद करती है भगवान् कुछ देर के लिए दिल से निकल जाए ताकि वह कुछ तो घर बार के भी काम कर सके।
गोपी गायेगी -वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भुला दे ,मुझे याद आने वाले कोई रास्ता बता दे।
हम आम संसारी गाते हैं -वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो दिला दे।
तेरी बद-सुलूकी देख मन कहता है कभी तेरी गली में न आऊं ,
मगर क्या करूँ ,रोज़ तेरी गली में कोई काम निकल आता है।
नाम की महिमा -इस कलिकाल में किसी दूसरे साधन में उलझने की आवश्यकता नहीं है।
एहि कलिकाल न साधन दूजा ,
जोग जग्य जप तप व्रत पूजा
रामहि सुमिरिये गाइएहि रामहि।
कलियुग केवल नाम अधारा
सुमिर सुमिर उतरहि नर पारा।
नहीं कलि योग न यग न ग्याना
एक आधार राम गुणगाना।
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )जीवन में किसी न किसी का पाश (रखिये )अपने सिर पर ,बाल्य -कैशोर्य तक माँ -बाप का
(२ )
देवासुर संग्राम सुदूर अतीत में हुआ हो या न हुआ हो यह तो पुराण जाने ,लेकिन हमारे भीतर ये निरंतर चल रहा है। ये संघर्ष अंदर का है बाहर का नहीं। देव -वृत्ति और राक्षस- वृत्ति दोनों हमारे भीतर हैं। देव -वृत्ति कहती है कुछ दान करो ,किसी की मदद करो ,माँ बाप की सेवा करो ,असुर -वृत्ति फट कहती हैं इनसे कैसे काम चलेगा ,कुछ बे -ईमानी करो ,छल करो ,पैसा कमाने के लिए यह ज़रूरी है। बेटी की शादी करनी है बेटा विदेश में पढ़ने को भेजना है। यह संघर्ष शाश्वत है।
सच ये है उस घड़े में अमृत -कलश में अमृत नहीं था। हर घड़े में अमृत है। शोध करो ,मिलेगा।
न शेष नाग के फन में है अमृत -होता तो उसमें विष क्यों है। सागर में है तो वह खारा क्यों है। किसी अप्सरा सुंदरी के ओंठों में है तो पति तो उसका नियमित सेवन करता है उसकी मौत क्यों हो जाती है फिर ?
अमृत की धार बहे संतन की वाणी में
हम सब मृत के लिए जी रहे हैं। जो कुछ भी हम कर रहें हैं ,जो कुछ भी अर्जित कर रहें हैं इसे एक दिन मौत छीन लेती है। जिनके लिए हम ने जीवन खपाया वह सब का सब यहीं रह जाता है। हम सब मृत में डूबे हैं। फिर अमृत क्या है ?
कथा ही अमृत है
समस्त देवों की कथा अमृत है -राम कथा ,कृष्ण कथा ,भागवद कथा
संजीवनी 'भगत' लाता है हनुमान जी लाते हैं तब लक्ष्मन की मूर्छा दूर होती है। मेघनाद काम का प्रतीक है। लक्ष्मण जैसा 24x7 चौबीस घंटा जागृत व्यक्ति भी काम मूर्छित हो जाए तो भगवंत भी उसे ठीक नहीं कर सकते उसे ठीक करने के लिए हनुमंत चाहिए। राम भक्त चाहिए जो निरंतर राम कथा का सेवन कर रहा है युगों -युगों से। इस संसार में मन के मैल को धोने का यदि कोई साबुन है तो वह राम कथा है।
मोक्ष प्राप्त करने का यदि कोई साधन है तो वह राम कथा ही है। मन का मैल किसी साधना से ,किसी योग से ,प्राणायाम से दूर नहीं होता है। बड़ी -बड़ी योग साधना करने वालों के भी मन में इतना कचरा भरा रहता है ,वह पडोसी के घर के दीपक भी देखना पसंद नहीं करते।
रघुवंश भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं कहहिं जे गावहिं ,
कलि मल मनोमल धोइ बिन ......
कथा सुनिए आपको पाप छोड़ के खुद ब खुद चले जाएंगे ,किसी प्रकार की ताकत इन्हें छोड़ने में मत लगाइये।
सुनहिं जे कथा श्रवण मन लाइ ......
मनसा -वाचा -कर्मणा जो भी पाप हुए ,कथा सुनिए ,आपको छोड़ के चले जाएंगे। केवल राम कथा सुनिए और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है सुन लीजिये रोग भव का चला जाएगा।मनुष्य की समस्या यही है ये किसी की सुनता ही नहीं है। यही शिकायत घर के एक सदस्य को दूसरे से रहती है। झगड़ा सारा सुन ने का है और इसी न सुनने के कारण मनुष्य अशांत रहता है।
जो सुन लेता है वह सबसे बड़ा हो जाता है। माँ सबकी सुन लेती है इसलिए घर में सबसे बड़ी मानी जाती है।
सुनी महेश परम सुख मानी .....
परम सुख का माने परमात्मा का दर्शन परमात्मा का सानिद्ध्य। शिव को यही प्राप्त होता है। जहां कथा होती है वहां सभी तीरथ चले आते हैं बस जाते हैं।
सुख केवल सांसारिक वस्तुओं का होता है।
कथा तो स्वयं भगवान् भी सुनेंगे।
गंगा धाम में बैठकर भगवान् भी सुनते हैं कथा ,कथा में ही मिलते हैं राम।
शरीर विज्ञान है यह ध्यान से सुनिए :जो कुछ हम मुख से खाते हैं मल के रास्ते बाहर आता है।
जो कुछ भी हम कानों से सुनते हैं दिन भर ,मुँह से भी वही निकलता है ,निर्णय हम करें कानों से अंदर कथा ले जानी है या कचरा । जीवन कचरा -घर नहीं कथा -घर होना चाहिए। भोग थोड़ी देर का ही अच्छा रहता है फिर तो भोग से भी गंध आती है। जो भी हम सुनेंगे वह हमारे मन में बसेगा। हनुमान चालीसा इसका प्रमाण है।
राम लखन सीता मन बसिया -हनुमान रात दिन भगवान् की कथा सुनते हैं ,राम उनके मन में बस जाते हैं।
गुरु वही है जो मार्ग बताते दे गुरु कोई शरीर नहीं है।जो भगवद प्राप्ति का मार्ग बता दे , प्यास बढ़ा दे वही गुरु है ,उसकी कोई जाति नहीं होती।संतों की वाणी में ही गुरु का वास है।
सांवरे से मिलने का बस कथा ठिकाना है। भक्ति की दीक्षा कोई भी दे सकता है ,रानी को रानी की दासी भी दे सकती है। भगवान् में डूब जाना ,रम जाना विलीन हो जाना ही भजन है।
बिन सत्संग न काहू पाए
सत्संग संक्रामक होता है। सत्संग अपने रंग में रंग लेता है।
राम कृपा बिन सुलभ न सोइ
बिन सत्संग बिबेक न होइ।
आदमी दो में ही डूबा करता है प्रेमी में या दुश्मन में बस स्वाद में अंतर होता है। अपना बेटा हर वक्त याद आता है वह जो दूर देश पढ़ने चला गया है। भगवान् को याद करने के लिए माला जपनी पड़ती है।
हम ध्यान करते हैं भगवान् हमारे दिल में आये गोपी याद करती है भगवान् कुछ देर के लिए दिल से निकल जाए ताकि वह कुछ तो घर बार के भी काम कर सके।
गोपी गायेगी -वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भुला दे ,मुझे याद आने वाले कोई रास्ता बता दे।
हम आम संसारी गाते हैं -वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो दिला दे।
तेरी बद-सुलूकी देख मन कहता है कभी तेरी गली में न आऊं ,
मगर क्या करूँ ,रोज़ तेरी गली में कोई काम निकल आता है।
नाम की महिमा -इस कलिकाल में किसी दूसरे साधन में उलझने की आवश्यकता नहीं है।
एहि कलिकाल न साधन दूजा ,
जोग जग्य जप तप व्रत पूजा
रामहि सुमिरिये गाइएहि रामहि।
कलियुग केवल नाम अधारा
सुमिर सुमिर उतरहि नर पारा।
नहीं कलि योग न यग न ग्याना
एक आधार राम गुणगाना।
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )जीवन में किसी न किसी का पाश (रखिये )अपने सिर पर ,बाल्य -कैशोर्य तक माँ -बाप का
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