गुरुवार, 23 नवंबर 2017

Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 14 Part 2 ,3

आये थे हरी भजन को ओटन लगे कपास 

नामदेव जी प्रभु का नाम लेकर उतर  गए यमुना जी में और एक के बाद एक शैया यमुना में से निकालकर सिकंदर लोदी को दिखाने लगे तुम्हारी जो भी है पहचान लो। लोदी ने पाँव पकड़ लिए नामदेव जी के ,और कहा मुझसे कुछ ले लो -नामदेव बोले आइंदा किसी हिन्दू फ़कीर को इस तरह तंग मत करना।बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मुझे तो भगवान  के श्री चरणों की रज चाहिए बस।

नामदेव जी ने वह रत्न जटित शैया जो सिंकंदर लोदी ने भगवान् के शयन के लिए दी थी यमुना में फेंक दी थी -मैं कहाँ तक इस कीमती शैया की हिफाज़त करूंगा अभी तो बादशाह के सैनिक हैं हिफाज़त के लिए आगे के सफर में  इसकी देख भालकौन करेगा  जब सैनिक लौट जाएंगे। कहाँ करने देगी ये रत्न जटित  शैया भजन ।   

नाम की महिमा सिद्ध करके दिखाई थी नामदेव जी ने। उनके दो बूँद आंसुओं से कुँए का पानी ऊपर आ गया था उनकी पुकार सुनकर।संत ज्ञानदेव (ज्ञानेश्वर जी )तो योग सिद्धि से छोटे होकर कुँए में उतरे और जल पीकर पुन : निकल आये। नामा तो निरे भजनी साधु जिहने सिद्धि विद्धि कुछ नहीं आती सिर्फ भगवान् का भजन करना आता है कुँए में झाँक झुक कर रोने लगे -नामा प्यासा ,नामा प्यासा ,प्यासा ही मर जायेगा ,भगवान तुम्हारा नामा ,उनकी आँख से निकल कर दो आंसू कुँए के जल में मिल गए। शुद्ध भक्ति के आंसू थे ये। जल एक उफान के साथ ऊपर आ गया सब ने खूबी पीया। ज्ञानेश्वर नामा के चरणों में गिर गए -आज से तू मेरा गुरु।   

एक और उल्लेखनीय घटना उस समय की है जब नामा (नामदेव जी )श्री नाथ जी के दर्शन के लिए राजस्थान आते हैं। राजस्थानी नै जूती की जोड़ी आपने बगल  में दबा रखी थी जिस पर वहां के पंडों की नज़र पड़  गई थी ,इनकी ख्याति से ये पण्डे पहले ही आतंकित थे मौक़ा देखा किसी ने बता दिया था नामा की बगल में जूते हैं पंडों ने इन्हें धक्का देकर मंदिर से बाहर फेंक दिया।तेरी ये मज़ाल एक नीच जाती और ऊपर से ये हिमाकत जूती लेकर मंदिर में आएगा।  

नामा जी मन्दिर के पिछवाड़े जाकर रोने लगे वहीँ से भगवान को पुकारने लगे। तभी कबीर दास प्रकट हुए उन्होंने नामा से कहा चलो गरीब की यहां कौन सुनता है तभी प्रभु ने लीला की -देखा मेरे दो सेवक जा रहे हैं मेरा दर्शन किये बिना ही। 

और मंदिर का मुख नामा की तरफ कर दिया। 

लेकिन मंदिर को घुमाने की प्रक्रिया में भगवान् की कमर में लचक आ गई। अगर किसी दिन नामा दर्शन को नहीं आ पाते थे भगवान् अधीर हो जाते थे। एक दिन नामा की पत्नी ने कहा -रोज़ रोज़ आप ही जाते हैं कभी भगवान हमारे घर में नहीं आ सकते। 

भगवान बोले इतनी देर कौन खड़े होगा मंदिर में जहां चोबीस घंटों लोग दर्शन करने आते हैं -पत्नी बोलीं उतनी देर आप खड़े हो जाना। 

भगवान् बोले आजा बेटा आजा। भगवान् ने अपना श्रृंगार उतारा और नामा को पकड़ा दिया -नामा को खड़े खड़े दर्द होने लगा ,हाज़त होने लगी पेशाब करने की। नामा उलझ गए भगवान् से दो घंटे की कह कर गए थे छः घंटे लगा दिए। 
ये भगवान् ही हैं जो भक्तों के लिए चौबीस घंटों खड़े रहते हैं। भगवान राम और श्री कृष्ण  कहीं भी बैठे हुए नहीं मिलते हैं खड़े ही रहते हैं। ओरछा में ही एक मूर्ती है जहां भगवान् आपको बैठे हुए भी मिलेंगे। बिठ्ठल नाथ भी भगवान् कृष्ण के ही अवतार हैं।भक्तों की सहायता के लिए भगवान् चौबीस घंटों खड़े रहते हैं न जाने कब दौड़ना पड़े। 

नाना भाँती नचायो भक्तन ने मोहे ,

गज ने पुकारो मैंने गरुण बिसारो ,

द्रौपदी पुकारी मैंने त्यागी द्वारका 

करी  देर नहीं मैंने ,तुरत ही चीर बढ़ायो ,

लोक लाज ही तजि नहीं,

 मैंने वैकुण्ठ ही बिसरायो। 

नाम देव को भूत में भी भगवान् दिखाई देते हैं कुत्ते में भी ,ऐसी आस्था है उनकी भगवान बिठ्ठल में। प्रत्येक में भगवान् बिठ्ठल को ही देखते हैं नामा।कभी बिठ्ठल कुत्ता बनके आते हैं कभी भूत प्रेत नामा की परीक्षा लेने। नामा कभी भी नहीं चूकते  सब में बिठ्ठल ही बिठ्ठल देखते हैं।  

भगवद भरोसे वाले भक्त हैं नामा ,इन्हें भगवान् पर भरोसा है पारस पत्थर पर नहीं जो इनकी  पत्नी कहीं से ले आईं थीं। उनकी एक सहेली इन्हें दे गई थी।  इन्होने पत्नी को न सिर्फ फटकारा ,पारसमणि फेंक  आये,चंद्रप्रभा में।सहेली मांगने आई इनकी पत्नी से लड़ने लगी ,नामा चंद्रप्रभा में उतर  गए जिस भी पत्थर को उठाया  पारस पत्थर हो गया। 

अब राम कथा में प्रवेश करते हैं :

विवाह के बाद जब भगवान् अयोध्या में आते हैं यहां का पूरा दृश्य बदल जाता है।सुन्दर काण्ड संपन्न होता है अब अयोध्या काण्ड प्रारम्भ होता है। जिनके घर में रामचरितमानस हैं -पहली आठ मांगलिक चौपाइयों का प्रतिदिन पाठ करिये उनके घर में कभी गरीबी प्रवेश नहीं करेगी। 

जब ते राम ब्याही घर आये ,

नित नव मंगल मोद बधाये ......  

सब बिधि सब पुर लोक सुहाए   ..... 

मोदक मुद प्रिय मंगल दाता .....

अयोध्या रुपी सागर में रिद्धि सिद्धि रूपा नदियाँ प्रवेश कर रहीं हैं ,मिलन मना रहीं हैं। अभी तक अयोध्या वासी रामचंद्र मुख का दर्शन कर रहें हैं।

लेकिन  दसरथ जी राम का भवन छोड़कर काम का भवन चले गए और देखिये दशरथ जी की क्या दशा होती है। 

आवश्यकता पूरी हो जाती है इच्छा नहीं। आवश्यकताएं बढ़ाओ ,इच्छाएं घटाओ। 
आज राम के विवाह के बाद पहली बार राजसभा बैठी है क्योंकि राजा दशरथ चक्रवर्ती सम्राट हैं आसपास के राजा भी इसमें शिरकत करतें हैं राम भी सभा में बैठे हैं। राजा आइना निकाल कर देखते हैं अपना चेहरा -मुकुट तिरछा और कनपटी के बाल सफ़ेद दिखाई देते हैं। 

मुकुट का तिरछा होना अस्थिर शासन का तथा बालों की सफेदी बुढ़ापे के आने का सत्ता के बूढी होने अस्थिर होने का संकेत है अब सत्ता युवा हाथों में जानी चाहिये। दशरथ जी तभी फैसला करते हैं। सभा के बाद वशिष्ठ  जी को बुलाकर कहते हैं  मैंने तय किया है अब सत्ता राम को सौंप दी जाए वह चारों भाइयों में बड़े हैं तुम राम के भवन में जाकर उसे ये सन्देश दो। 

वशिष्ठ जी राम के भवन में आते हैं जानकी जी ये समाचार राम को देती हैं गुरु समान भगवान् वशिष्ठ आये हैं राम वैसे तो खुश होते हैं गुरु का आना सदैव ही मंगलकारी होता है लेकिन जब उन्हें पता चलता है गुरु दशरथ जी का सन्देश लेकर आये हैं तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। होना तो यह चाहिए था राजा गुरु के भवन आते वहां मुझे बुलाते मैं ऐसे राज्य में नहीं रह सकता जहां गुरु का इस प्रकार अपमान हो। 

राम गुरु जी के चरणों में गिर गए कहा आप मुझे बुला अपने भवन बुला लेते आप ने ये कष्ट क्यों किया ?

राम ने तभी अयोध्या छोड़ने का फैसला कर लिया था कैकई और मंथरा तो एक बहाना थे। गुरु ये समाचार देकर चले गए -कल तुम्हारा  राज्याभिषेक है:

आज पूजा में अधिक समय तक  बैठना ,रात को संयम से रहना -यानी सत्ता सेवा धर्म है संयम मांगती है भोग नहीं निजी सुख साधन नहीं परसेवा है सत्ता या गद्दी नशीन होना। लेकिन राम जानकी जी को अपने मन की व्यथा कहते हैं :हम चारों भाई एक साथ पैदा हुए एक साथ पले - बढ़े,एक ही मंडप में एक साथ   ब्याहे गए  ,एक साथ खेले शयन किया फिर राज्याभिषेक मेरा क्यों भरत का क्यों नहीं ?

 बड़ा वह है जो छोटों को बड़प्पन का एहसास कराये। भरत राजा बनते तो मेरा मान और बढ़ता। अभी तो मैं सिर्फ भरत का बड़ा भाई कहलाता हूँ फिर महाराजा भरत का बड़ा भाई कहलाता मेरा मान और भी ज्यादा  बढ़ जाता। ये है राम राज्य की अवधारणा। अपने से छोटों को बड़ा बनाना  न की छोटों को और छोटा होने का एहसास करवाना। उधर देवताओं में अंदर खाने एक षड्यंत्र सभा बैठती है उसमें क्या  फैसला होता है ये  कथा अगले अंक में सुनिए।    


सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )Vijya Kaushal JI Ram Katha Day 14 ,Part 2 ,Ujjain 

(२ )Ram Katha Ujjain Day 14 Part 3 

(३ )

Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 14 Part 3

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