आज राम कथा में उर्मिला जी का मार्मिक प्रसंग है
जो पति के संकोच को दूर करे वही पत्नी होती है। आज उर्मिला गदगद हैं सोचते हुए मेरे पति का कितना सौभाग्य है उन्हें भगवान् की सेवा करने का मौक़ा मिल रहा है। उनकी एक सखी और सहायिका उर्मिला जी को राजमहल में प्रसवित सारा घटना क्रम बतला चुकी है ,उधर लक्ष्मण जी माता सुमित्रा के भवन से निकलते हुए सोच रहे हैं -उर्मिला जी से मिलने जाऊँ न जाऊँ ,गया तो ज़िद करेंगी मैं भी सीता माता की तरह जाऊंगी। अगर में नहीं गया तो मेरे विरह में प्राण त्याग देंगी यह सोच कर के मेरे पति मुझसे मिले वगैर ही चौदह बरस के लिए रामजी के साथ वनगमन को चले गए और अगर मिल कर गया सब कुछ बतला दिया तो अभी से रोना शुरू कर देंगी। कोई वज्र हृदय ही पति ने आंसू देख सकता है। माता के आंसू में वह ताकत होती है जो वज्र को भी पिघला दे।
यही सोचते सोचते लक्ष्मण जी द्वार खटखटा देते हैं। उनकी आँख में आंसू हैं जिन्हें वह बरबस छिपाने का प्रयत्न करते हैं। उधर उर्मिला जी पूरा श्रृंगार किये बैठी है वही साड़ी पहने हैं जो शादी के वक्त पहनी थी।
पति की दुविधा को पत्नी से अधिक और कौन जान सकता है। उर्मिला लक्ष्मण जी की भाव दशा को जानतीं हैं कहने लगतीं हैं आर्य पुरुष -वीर पुरुष रोया नहीं करते ,मुझे सब कुछ पता है जो कुछ हुआ है आप संकोच त्यागिये। कितना बड़ा मेरा सौभाग्य है आपको ये सेवा मिली है और आपको पता है :
धीरज धर्म मित्र अरु नारि ,
आपद काल परखिये चारि।
काल स्वयं कहाँ रोता है काल तो दूसरों को रुलाता है। आज लक्ष्मण जी तीसरी बार रोते हैं पहली बार तब रोये थे जब अग्नि परीक्षा के समय अग्नि चिता सजाई थी ,दूसरी बार तब जब दूसरी बार सीता जी को जब वह गर्भवती थीं लक्ष्मण जी वन में अकेली छोड़कर आते हैं। उर्मिले तुमने मेरा धर्मसंकट समाप्त कर दिया उनके चरणों में गिर गए रुदन जो रुका हुआ था - फ़ूट पड़ा।
उर्मिला जी उन्हें उठाकर उनके आंसू पौंछती हैं अपने आँचल से स्नेह आप्लावित होकर।
आरती उतारती है चरण वंदन को सर झुकाया है लेकिन आँख से एक भी आंसू टपकने नहीं देती -मैं रोइ तो इन्हें ये दृश्य याद आएगा प्रभु की सेवा करने से रोकेगा।
आज जिस दीपक से मैंने आपकी आरती उतारी है चौदह बरस बाद भी मैं इसी दीपक से आपकी आरती उतारूंगी।मुझे धोखा मत देना , ऐसी कथा आती है चौदह बरस तक उर्मिला जी सोईं नहीं हैं ,अन्न ग्रहण नहीं किया है दीपक को बुझने नहीं दिया है ।लक्ष्मण जी के तीर में उर्मिला के तेज़ की आंच थी जिससे मेघनाद मारा गया था।वरना उसे तो अभय होने का वरदान प्राप्त था इंद्रजीत कहता था वह।
प्रसंग है हनुमान जब संजीवनी उठाये अयोध्या (अवध नगरी )के ऊपर से गुज़रते हैं भरत जी शत्रु समझ उन पर तीर चला देते हैं। हनुमान जी गिरकर ज़मीं पर आते ही बे -होश हो जाते हैं। उर्मिला दीपक हाथ में लिए हैं सभी चिंतातुर हो उठते हैं यह जानकार ये तो राम सेवक हनुमान हैं जो मूर्च्छित लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी लिए उड़ रहे थे अवध के ऊपर से जो मार्ग में आई है।
उर्मिला मुस्कुरा रहीं हैं निश्चिन्त भाव से -हनुमान पूछते हैं तुम्हें चिंता नहीं है -मेरे लालिमा फूटने से पहले संजीवनी लेकर भगवान् के पास पहुंचना ज़रूरी है। उर्मिला कहतीं हैं -मैं सूर्य वंश की कुलवधू हूँ ,सूर्य देव इतने निष्ठुर नहीं हैं मैं प्रात : विधवा रूप उनके दर्शन के लिए उठूं और फिर मेरा दीपक जल रहा है लक्ष्मण जी मेरे पति जीवित हैं वह तो भगवान् की गोद में विश्राम कर रहें हैं उस लीला के तहत जो राम जी ने रची है ताकि वह नेक विश्राम कर सकें। मेघनाद के बाणों में वह तेज़ नहीं है जो लक्ष्मण को मार सके।
ऐसा है विश्वास और आस्था उर्मिला की। केवल वह स्वयं ,राम जी ,लक्ष्मण जी स्वयं और सुमित्रा जी जानते हैं भगवान् की इस लीला को जो उन्होंने अपने भाई को अपनी गोद में विश्राम देने के लिए खेली है।क्योंकि लक्ष्मण जी ने प्रण किया था वे वन में पूरी तरह चौकस रहेंगे इसलिए निद्रा लेंगे ही नहीं। क्योंकि निद्रा में स्वप्न और स्वप्न में विकार आ सकते हैं जिन पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं होता है। और फिर भगवान् की गोद में जो सर टिकाये लेटा है स्वयं काल है उसके पास मृत्यु कैसे आने का साहस कर सकती है ?
मंगल भवन अमंगल हारी,
उमा सहित जेहि जपत पुरारी।
जो आनन्द सिंधु सुख राशि ,
सो सुख धाम राम असधामा .....
सकल लोक दायक विश्रामा ....
पूरी अयोध्या नगरी राम के साथ चल पड़ती है जैसे ही राम वनगमन को निकलते हैं केवल कैकई और मंथरा बचते हैं अयोध्या में। समस्त अयोध्या वासी मन ही मन कोसते हैं कैकई को :
"राम सिया भेज दई वन में ,
ओ कैकई तूने का ठानी मन में। "
हठीली तूने का ठानी री मन में
कौशल्या की छिन गई वाणी ,
रो न सकी उर्मिला दीवानी ,
कैकई तू इकली ही रानी ,
रह गई महलन में।
राम सिया भेज दई रे वन में
अब कोई अवध में अयोध्या में रहने को तैयार नहीं है।ऐसे अवध में जहां राम जानकी और लक्ष्मण जी नहीं है।
अवध वहां जहां राम निवासु ,
तहँहि दिवस जहाँ भानु प्रकासु।
सुमंत वापस नहीं लौटना चाहते हैं ....अयोध्या की ओर
बरबस राम सुमंत पठाए,
सुरसरि तीर आप तब आये।
इसके बाद गुह का प्रसंग आता है
भगवान् केवट के पास आ गए।
जिनको भजन में प्रवेश करने की इच्छा है
ज्ञान या योगमार्ग ,कर्म -मार्ग और भक्ति -मार्ग तीन रास्तें हैं। हम तो सगुण साकार के उपासक हैं।
सहज स्नेह विवश रघुराई
छी कुसल निकट बैठाई .
निर्मल मन सो मोहि पावा ,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ,
मन क्रम वचन छाड़ि चतुराई ,
भजत कृपा करहिं रघुराई।
भगवान् कहते हैं मुझे सीधा साधा निष्कपट भक्त ही पसंद है।
कृष्ण के हाथ में वंशी ?ऐसी क्या विशेषता है सखी तुम में एक दिन सौत वंशी से गोपियों ने पुछा ?
बोली वंशी :
मैं गुणहीना हूँ आप गुण से भरी हो रूप और गुमान से
पहले अपना तन कटवाया मन कटवाया ,ग्रन्थिन ग्रन्थिन में छिदवाया जैसा चाहे हैं श्याम मैंने वही स्वर सुनाया। मैं कृष्ण के अनुसार बजा करती हूँ। तुम कृष्ण को अपने तरीके से बजाना चाहती हो।
अपने वंश कुल (वृक्ष )से अलग हुई .....
जेहि कारण मोहे निज अधरन पर मोहे धरत मुरारी
मेरे अंदर मेरा अपना कोई स्वर नहीं है सारे स्वर कृष्ण के -
जहां ले चलोगे वहीँ मैं चलूँगा
चाहे जैसे बजा ले मुरलिया वाले ,
जीवन है तेरे हवाले मुरलिया वाले ,
हम कठपुतली तेरे हाथ की ,
चाहे जैसे नचा ले मुरलिया वाले ,
जीवन है तेरे हवाले मुरलिया वाले।
श्री चरणों का दास बना के ,
वृन्दावन में बसा ले मुरलिया वाले।
सम्पूर्ण समर्पण।
केवट भोला है। भोला बनना बड़ा कठिन है। कई लोग होंठ के बहुत मीठे होते हैं लेकिन पेट के बड़े कड़वे होते हैं। भगवान् पुकारे जाते हैं भरे गले से।भगवान् खोजता है भक्त पुकारता है आद्र दर्दीले कंठ से।
भगवान् खुद ही ढूंढ लेते हैं अपने भक्त को चाहें वह हिमालय की किसी गुफा में छिपा हो। बस वह भोला हो अनघ हो। जागृति चाहिए ,भगवान् सोये हुए को नहीं जगाते ,बड़े करुणावान है।
भक्त की ज़रा सी कुंकुनाहट भगवान् को जगा देती है जैसे माँ को बच्चे की थोड़ी सी भी कुन -कुनाहट भी जगा देती है चाहे माँ कितनी भी गहरी नींद में हो।
विशेष :गोविन्द की कृपा से कथा अब यहां पर ही विराम लेती है बारह बरस बाद फिर कुम्भ पर मिलेंगे-क्षिप्रा मौसी के सानिद्य में।
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=ephFKyixwpc
(२ )
जो पति के संकोच को दूर करे वही पत्नी होती है। आज उर्मिला गदगद हैं सोचते हुए मेरे पति का कितना सौभाग्य है उन्हें भगवान् की सेवा करने का मौक़ा मिल रहा है। उनकी एक सखी और सहायिका उर्मिला जी को राजमहल में प्रसवित सारा घटना क्रम बतला चुकी है ,उधर लक्ष्मण जी माता सुमित्रा के भवन से निकलते हुए सोच रहे हैं -उर्मिला जी से मिलने जाऊँ न जाऊँ ,गया तो ज़िद करेंगी मैं भी सीता माता की तरह जाऊंगी। अगर में नहीं गया तो मेरे विरह में प्राण त्याग देंगी यह सोच कर के मेरे पति मुझसे मिले वगैर ही चौदह बरस के लिए रामजी के साथ वनगमन को चले गए और अगर मिल कर गया सब कुछ बतला दिया तो अभी से रोना शुरू कर देंगी। कोई वज्र हृदय ही पति ने आंसू देख सकता है। माता के आंसू में वह ताकत होती है जो वज्र को भी पिघला दे।
यही सोचते सोचते लक्ष्मण जी द्वार खटखटा देते हैं। उनकी आँख में आंसू हैं जिन्हें वह बरबस छिपाने का प्रयत्न करते हैं। उधर उर्मिला जी पूरा श्रृंगार किये बैठी है वही साड़ी पहने हैं जो शादी के वक्त पहनी थी।
पति की दुविधा को पत्नी से अधिक और कौन जान सकता है। उर्मिला लक्ष्मण जी की भाव दशा को जानतीं हैं कहने लगतीं हैं आर्य पुरुष -वीर पुरुष रोया नहीं करते ,मुझे सब कुछ पता है जो कुछ हुआ है आप संकोच त्यागिये। कितना बड़ा मेरा सौभाग्य है आपको ये सेवा मिली है और आपको पता है :
धीरज धर्म मित्र अरु नारि ,
आपद काल परखिये चारि।
काल स्वयं कहाँ रोता है काल तो दूसरों को रुलाता है। आज लक्ष्मण जी तीसरी बार रोते हैं पहली बार तब रोये थे जब अग्नि परीक्षा के समय अग्नि चिता सजाई थी ,दूसरी बार तब जब दूसरी बार सीता जी को जब वह गर्भवती थीं लक्ष्मण जी वन में अकेली छोड़कर आते हैं। उर्मिले तुमने मेरा धर्मसंकट समाप्त कर दिया उनके चरणों में गिर गए रुदन जो रुका हुआ था - फ़ूट पड़ा।
उर्मिला जी उन्हें उठाकर उनके आंसू पौंछती हैं अपने आँचल से स्नेह आप्लावित होकर।
आरती उतारती है चरण वंदन को सर झुकाया है लेकिन आँख से एक भी आंसू टपकने नहीं देती -मैं रोइ तो इन्हें ये दृश्य याद आएगा प्रभु की सेवा करने से रोकेगा।
आज जिस दीपक से मैंने आपकी आरती उतारी है चौदह बरस बाद भी मैं इसी दीपक से आपकी आरती उतारूंगी।मुझे धोखा मत देना , ऐसी कथा आती है चौदह बरस तक उर्मिला जी सोईं नहीं हैं ,अन्न ग्रहण नहीं किया है दीपक को बुझने नहीं दिया है ।लक्ष्मण जी के तीर में उर्मिला के तेज़ की आंच थी जिससे मेघनाद मारा गया था।वरना उसे तो अभय होने का वरदान प्राप्त था इंद्रजीत कहता था वह।
प्रसंग है हनुमान जब संजीवनी उठाये अयोध्या (अवध नगरी )के ऊपर से गुज़रते हैं भरत जी शत्रु समझ उन पर तीर चला देते हैं। हनुमान जी गिरकर ज़मीं पर आते ही बे -होश हो जाते हैं। उर्मिला दीपक हाथ में लिए हैं सभी चिंतातुर हो उठते हैं यह जानकार ये तो राम सेवक हनुमान हैं जो मूर्च्छित लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी लिए उड़ रहे थे अवध के ऊपर से जो मार्ग में आई है।
उर्मिला मुस्कुरा रहीं हैं निश्चिन्त भाव से -हनुमान पूछते हैं तुम्हें चिंता नहीं है -मेरे लालिमा फूटने से पहले संजीवनी लेकर भगवान् के पास पहुंचना ज़रूरी है। उर्मिला कहतीं हैं -मैं सूर्य वंश की कुलवधू हूँ ,सूर्य देव इतने निष्ठुर नहीं हैं मैं प्रात : विधवा रूप उनके दर्शन के लिए उठूं और फिर मेरा दीपक जल रहा है लक्ष्मण जी मेरे पति जीवित हैं वह तो भगवान् की गोद में विश्राम कर रहें हैं उस लीला के तहत जो राम जी ने रची है ताकि वह नेक विश्राम कर सकें। मेघनाद के बाणों में वह तेज़ नहीं है जो लक्ष्मण को मार सके।
ऐसा है विश्वास और आस्था उर्मिला की। केवल वह स्वयं ,राम जी ,लक्ष्मण जी स्वयं और सुमित्रा जी जानते हैं भगवान् की इस लीला को जो उन्होंने अपने भाई को अपनी गोद में विश्राम देने के लिए खेली है।क्योंकि लक्ष्मण जी ने प्रण किया था वे वन में पूरी तरह चौकस रहेंगे इसलिए निद्रा लेंगे ही नहीं। क्योंकि निद्रा में स्वप्न और स्वप्न में विकार आ सकते हैं जिन पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं होता है। और फिर भगवान् की गोद में जो सर टिकाये लेटा है स्वयं काल है उसके पास मृत्यु कैसे आने का साहस कर सकती है ?
मंगल भवन अमंगल हारी,
उमा सहित जेहि जपत पुरारी।
जो आनन्द सिंधु सुख राशि ,
सो सुख धाम राम असधामा .....
सकल लोक दायक विश्रामा ....
पूरी अयोध्या नगरी राम के साथ चल पड़ती है जैसे ही राम वनगमन को निकलते हैं केवल कैकई और मंथरा बचते हैं अयोध्या में। समस्त अयोध्या वासी मन ही मन कोसते हैं कैकई को :
"राम सिया भेज दई वन में ,
ओ कैकई तूने का ठानी मन में। "
हठीली तूने का ठानी री मन में
कौशल्या की छिन गई वाणी ,
रो न सकी उर्मिला दीवानी ,
कैकई तू इकली ही रानी ,
रह गई महलन में।
राम सिया भेज दई रे वन में
अब कोई अवध में अयोध्या में रहने को तैयार नहीं है।ऐसे अवध में जहां राम जानकी और लक्ष्मण जी नहीं है।
अवध वहां जहां राम निवासु ,
तहँहि दिवस जहाँ भानु प्रकासु।
सुमंत वापस नहीं लौटना चाहते हैं ....अयोध्या की ओर
बरबस राम सुमंत पठाए,
सुरसरि तीर आप तब आये।
इसके बाद गुह का प्रसंग आता है
भगवान् केवट के पास आ गए।
जिनको भजन में प्रवेश करने की इच्छा है
ज्ञान या योगमार्ग ,कर्म -मार्ग और भक्ति -मार्ग तीन रास्तें हैं। हम तो सगुण साकार के उपासक हैं।
सहज स्नेह विवश रघुराई
छी कुसल निकट बैठाई .
निर्मल मन सो मोहि पावा ,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ,
मन क्रम वचन छाड़ि चतुराई ,
भजत कृपा करहिं रघुराई।
भगवान् कहते हैं मुझे सीधा साधा निष्कपट भक्त ही पसंद है।
कृष्ण के हाथ में वंशी ?ऐसी क्या विशेषता है सखी तुम में एक दिन सौत वंशी से गोपियों ने पुछा ?
बोली वंशी :
मैं गुणहीना हूँ आप गुण से भरी हो रूप और गुमान से
पहले अपना तन कटवाया मन कटवाया ,ग्रन्थिन ग्रन्थिन में छिदवाया जैसा चाहे हैं श्याम मैंने वही स्वर सुनाया। मैं कृष्ण के अनुसार बजा करती हूँ। तुम कृष्ण को अपने तरीके से बजाना चाहती हो।
अपने वंश कुल (वृक्ष )से अलग हुई .....
जेहि कारण मोहे निज अधरन पर मोहे धरत मुरारी
मेरे अंदर मेरा अपना कोई स्वर नहीं है सारे स्वर कृष्ण के -
जहां ले चलोगे वहीँ मैं चलूँगा
चाहे जैसे बजा ले मुरलिया वाले ,
जीवन है तेरे हवाले मुरलिया वाले ,
हम कठपुतली तेरे हाथ की ,
चाहे जैसे नचा ले मुरलिया वाले ,
जीवन है तेरे हवाले मुरलिया वाले।
श्री चरणों का दास बना के ,
वृन्दावन में बसा ले मुरलिया वाले।
सम्पूर्ण समर्पण।
केवट भोला है। भोला बनना बड़ा कठिन है। कई लोग होंठ के बहुत मीठे होते हैं लेकिन पेट के बड़े कड़वे होते हैं। भगवान् पुकारे जाते हैं भरे गले से।भगवान् खोजता है भक्त पुकारता है आद्र दर्दीले कंठ से।
भगवान् खुद ही ढूंढ लेते हैं अपने भक्त को चाहें वह हिमालय की किसी गुफा में छिपा हो। बस वह भोला हो अनघ हो। जागृति चाहिए ,भगवान् सोये हुए को नहीं जगाते ,बड़े करुणावान है।
भक्त की ज़रा सी कुंकुनाहट भगवान् को जगा देती है जैसे माँ को बच्चे की थोड़ी सी भी कुन -कुनाहट भी जगा देती है चाहे माँ कितनी भी गहरी नींद में हो।
विशेष :गोविन्द की कृपा से कथा अब यहां पर ही विराम लेती है बारह बरस बाद फिर कुम्भ पर मिलेंगे-क्षिप्रा मौसी के सानिद्य में।
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=ephFKyixwpc
(२ )
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