ये लोग जानते हैं कि भारत धर्मी समाज सहिष्णु है इसलिए अपनी लनतरानियों (गंदे कामों )को ये लोग गौरव का विषय बनाते हैं। ऐसा नहीं है कि भारत धर्मी समाज किसी प्रकार से इन लोगों से भय खाता है पर वह समाज तो तर्क प्रबुद्ध हैं। कोई तर्क की बात करे तो ज़वाब भी दिया जाए। कल को किसी सूअर के सामने खड़े होकर ये कहें हम तेरा गू खाते हैं तू कुछ करके दिखा। तर्क से परे का समाज तो कुछ भी कह सकता है। इससे नीचे गिरकर भी ये अपने धत कर्मों की कहानी कहेंगे तो समाज इनका क्या करेगा। ऐसे लोगों से तो नफरत की जा सकती है। कल को किसी गणित वैज्ञानिक के सामने ऋषि कपूर जैसा आदमी और शोभा डे जैसी औरत ये कहने लगे कि हम तो दो और दो पांच मानते हैं तुम हमारा कुछ बिगाड़ के दिखाओ। लानत है ऐसे लोगों पर जो तर्क विहीन ढंग से अपने अपकर्मों का यशगान करते हैं। बीफ़ के लिए उकसाया जा रहा समाज तो कुछ नहीं कर सकता अगर ऐसे आदमी खुदा के सामने खड़े होकर ये कहें कि हम सूअर खाते हैं तू हमें दोजख में भेज के देख शर्म आती है ऐसे पढ़े लिखे कलाकार कहलाने वाले बे शर्म लोगों पर। समाज के लोग तो यही कह सकते हैं कि तुम गंद खाओ और भाड़ में जाओ। शोभा डे जैसी औरत के लिए ये शोभा की बात हो सकती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें