स्त्री अलग जात (Species)है वह मनुष्यों में नहीं ,उसमें दैवीय गुण हैं।
कथा है एक बार ब्रह्मा विष्णु महेश को पराम्बा के रूप में एक परम ज्योति दिखलाई दी।पराम्बा प्रकट हुईं। वे अत्यंत तेजरूपा ,जननी स्वरूप दिखलाई दीं त्रिदेवों को। उनकी दिव्यता और परम तेज को देख कर त्रिदेव अभिभूत हो गए। इन चर्म नेत्रों से हमें वह पदार्थ ही दिखाई देते हैं जगत के जो अस्थाई हैं नश्वर हैं। मृत्यु के मुख में हैं वैसे ही जैसे सांप के मुख में मेंढक। संसार की वास्तविकता ,वस्तुओं का यथार्थ ,सत्य हमें दिखलाई नहीं देताहै इन नेत्रों से। वह अंतर के नेत्रों से ही दिखलाई देता है।
इस परमज्योति स्वरूपा ने त्रिदेवों से पूछा -मेरा वरण कौन करेगा। ब्रह्मा ने पलकें झुका लीं ,विष्णु ने भी सकुचाकर आँखें झुका लीं। नीचे की और देखने लगे। शिव ने साहस जुटा कर कहा। मैं आपका वरण करूंगा ,पर मेरी एक शर्त है। आप मुझे ये तीसरा नेत्र दे देवें जो आपके मस्तक पर शोभित है। मैंने आज तक दो ही नेत्र वाले देखें हैं।पराम्बा तैयार हो गईं। शिव के पास चला आया वह तीसरा नेत्र।
देवी ने तीसरा नेत्र शिव को दे दिया। शिव ने अपने दोनों नेत्रों से देखा यह तो कोई अनिंद्य स्त्री है।जिसमें अद्भुत लावण्य है ,कल्याणकारी शक्तियां हैं जिसके पास। सिर्फ संहार नहीं है निर्माण भी है।
शिव सोचने लगे इसे तीसरे नेत्रों से भी देखूं। तीसरा नेत्र शिव ने खोला -वह देवी भस्म होकर राख का ढेर हो गई। शिव ने तीन ढेरियां बनाई। एक से ब्रह्माणी प्रकट हो गईं दूसरी ढ़ेरी से रमा और तीसरी से रुद्राणी (गौरी ,भवानी )फिर भी कुछ भस्म बच गई जो शिव से बटोरी ही न गई भगवानशिव ने उसे फूंक मार कर उड़ा दिया। उसी से संसार की समस्त नारियां बनी हैं।इनमें अलग गुण हैं। देवत्व है इनमें।ये मनुष्य की जाति से अलग हैं।
विशेष :विष्णु वध करते हैं शिव संहार करते हैं। वध प्रायश्चित का मौक़ा देता है। तीन शक्तियां बतलाई गईं हैं :
ज्ञान शक्ति ,इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति।
ज्ञानं प्राप्त होने के बाद कुछ बचता नहीं है। कुछ है ही नहीं इस नश्वर संसार में। एक प्रतीति भर है। एक अपीरीएंस ही तो है।
कथा है एक बार ब्रह्मा विष्णु महेश को पराम्बा के रूप में एक परम ज्योति दिखलाई दी।पराम्बा प्रकट हुईं। वे अत्यंत तेजरूपा ,जननी स्वरूप दिखलाई दीं त्रिदेवों को। उनकी दिव्यता और परम तेज को देख कर त्रिदेव अभिभूत हो गए। इन चर्म नेत्रों से हमें वह पदार्थ ही दिखाई देते हैं जगत के जो अस्थाई हैं नश्वर हैं। मृत्यु के मुख में हैं वैसे ही जैसे सांप के मुख में मेंढक। संसार की वास्तविकता ,वस्तुओं का यथार्थ ,सत्य हमें दिखलाई नहीं देताहै इन नेत्रों से। वह अंतर के नेत्रों से ही दिखलाई देता है।
इस परमज्योति स्वरूपा ने त्रिदेवों से पूछा -मेरा वरण कौन करेगा। ब्रह्मा ने पलकें झुका लीं ,विष्णु ने भी सकुचाकर आँखें झुका लीं। नीचे की और देखने लगे। शिव ने साहस जुटा कर कहा। मैं आपका वरण करूंगा ,पर मेरी एक शर्त है। आप मुझे ये तीसरा नेत्र दे देवें जो आपके मस्तक पर शोभित है। मैंने आज तक दो ही नेत्र वाले देखें हैं।पराम्बा तैयार हो गईं। शिव के पास चला आया वह तीसरा नेत्र।
देवी ने तीसरा नेत्र शिव को दे दिया। शिव ने अपने दोनों नेत्रों से देखा यह तो कोई अनिंद्य स्त्री है।जिसमें अद्भुत लावण्य है ,कल्याणकारी शक्तियां हैं जिसके पास। सिर्फ संहार नहीं है निर्माण भी है।
शिव सोचने लगे इसे तीसरे नेत्रों से भी देखूं। तीसरा नेत्र शिव ने खोला -वह देवी भस्म होकर राख का ढेर हो गई। शिव ने तीन ढेरियां बनाई। एक से ब्रह्माणी प्रकट हो गईं दूसरी ढ़ेरी से रमा और तीसरी से रुद्राणी (गौरी ,भवानी )फिर भी कुछ भस्म बच गई जो शिव से बटोरी ही न गई भगवानशिव ने उसे फूंक मार कर उड़ा दिया। उसी से संसार की समस्त नारियां बनी हैं।इनमें अलग गुण हैं। देवत्व है इनमें।ये मनुष्य की जाति से अलग हैं।
विशेष :विष्णु वध करते हैं शिव संहार करते हैं। वध प्रायश्चित का मौक़ा देता है। तीन शक्तियां बतलाई गईं हैं :
ज्ञान शक्ति ,इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति।
ज्ञानं प्राप्त होने के बाद कुछ बचता नहीं है। कुछ है ही नहीं इस नश्वर संसार में। एक प्रतीति भर है। एक अपीरीएंस ही तो है।
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