गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

एक विज्ञापन आता है -जागो ग्राहक जागो। यह नहीं आता कि जागो साधक जागो। भारत कर्म की ही नहीं निष्काम कर्म की बात करता था ,अधिकार की नहीं

सतसंग के झरोखे से 

यकीन मानिए मुझे नहीं मालूम था मेरे देश भारत का मतलब क्या है शब्दश :अर्थ क्या है ?यह तो पता था कि ऋषभ देव के ज्येष्ठ पुत्र का नाम भरत था। ऋषभ देव ने अपने सौ पुत्रों को अक्षर ब्रह्म के विषय में बतलाया था। बतलाया था कि शब्द ब्रह्म है। वेदों का सार गायत्री है और गायत्री का सार अक्षर ओम है। ओम ही वह  ध्वनि है जिसका क्षर नहीं होता वह अ -क्षर है ,अ -क्षय है।निर्गुण ब्रह्म को भी ओम कहा गया है। हरि ओम शब्द में निर्गुण और सगुण दोनों आ जाते हैं। कुछ लोग अभिवादन करते समय हरिओम ही कहते हैं।  

भारत शब्द वैसे ही है जैसे कार्यरत है जो रत है कार्य में वह कार्यरत है। 'भा' का एक अर्थ है प्रकाश। 'भा' का एक और अर्थ है ज्ञान। जो निरंतर ज्ञानकी साधना में रत है वह भारत है। जब योरोप वासी मचान बनाके रहते थे यहां बड़े बड़े महल (प्रासाद थे )ज़ब उन्हें गणना करनी भी नहीं आती थी हम प्रतिशत निकाल लेते थे। गणना के मामले में हम पद्म शंख नील पर ही नहीं रुकते थे अनंत तक चले जाते थे। 

महाराज ज्ञान के शिखर पर पहुंच कर भी लोग गिर जाते हैं। भरत के साथ ऐसा ही हुआ था एक मृग शावक से आसक्ति हो गई। कहाँ स्वर्ग में देवता उनके लिए विशेष आवास का प्रबंधन कर रहे थे। आसक्ति का मतलब ही यह है जो आ तो सकती है जा नहीं सकती। संसार से आसक्ति कभी समाप्त नहीं हो सकती प्राप्ति के साथ बढ़ती ही जाती है। 

एक विज्ञापन आता है -जागो ग्राहक जागो। यह नहीं आता कि जागो साधक जागो। भारत कर्म की ही नहीं निष्काम कर्म की बात करता था ,अधिकार की नहीं। भारत तो आज भी नहीं जानता उसके अधिकार क्या क्या हैं। क्योंकि अधिकार से आसक्ति पैदा होती है। जो सभी दुखों का मूल है। अच्छी बात है जानो अधिकार को भी गूगल के  भी बाप बनो लेकिन कर्तव्य के प्रति उदासीन मत रहना। गूगल का मतलब सिर्फ टेन टू दी पावर हंडेर्ड है जिसे गूगोल (googol )कहा गया है। उससे बेशक आगे की यात्रा पे जाओ लेकिन कर्तव्य पहले अधिकार बाद में। 
जयश्रीकृष्ण !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें