कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव के बाद मार्क्सवादी बौद्धिक गुलामी के आखिरी अवशेष अर्थ और काम को साधने वाले नामवर सिंह कहतें हैं भैया मार्क्सवादी लेखकों अर्थ और पुरूस्कार दोनों अपने पास रखो विमर्श करो सम्मलेन करो ,संस्कृति मंत्रालय और भारत सरकार को पत्र लिखो ,पुरूस्कार क्यों लौटाते हो।
बहुत बारीक तरह से विद्वेष फैलाते हैं ये राष्ट्र के खिलाफ राष्ट्रीय हितों के खिलाफ मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलाम रक्तरंगी भकुए। धोती फटकार कर बार बार अपनी जांघ दिखाने वाले नामावर संस्कृति मंत्रालय को क्यों यूएन को पत्र लिखो और उसे प्रॉपर चैनल से भेजो अग्रेसित कराके मायनो सोनिया और अबुध कुमार से क्योंकि कर्नाटक में जहां मल्लेशवर कुल्बर्गी मारा गया है वहां कांग्रेस की सरकार है मोदी की नहीं है।
ये जितने इनामात साहित्य अकादमी ने बांटे बहुलांश में इस सेकुलर भट्ट की सिफारिश पर ही बांटे गए थे। कुछ इनके करकमलों द्वारा ही दिए गए थे। इसीलिए ये अर्थ और काम दोनों को साधने वाले साधक पुरुस्कार न लौटाने की बात कह रहे हैं।इन्हें एक और पुरूस्कार ,पुरूस्कार न लौटाने की एवज़ मिलना चाहिए। सम्मलेन करो पुरूस्कार राशि अपने पास रखो भारत सरकार को बदनाम करो -सबसे बड़ा मार्कवादी पुरूस्कार तो यही है।
लिंगायत संतों का निरादर करने वाला यह मार्क्सवादी चेहरा अपनी करनी का शिकार बना है। कृष्ण जब मथुरा पहुँच कर कंस को प्रणाम करते हैं तो वह कहता है भांजे तुम मुझे नहीं मार सकते। बोले कृष्ण मामा तुमने पहली बार पते की बात कही है मैं किसी को नहीं मारता आदमी के कर्म ही उसे मार देते है।
साहित्य को ख़ेमोंमे बांटके काम करने वाले ये खेमापति नामवर पिछले दिनों काशी गए थे दो तीन और चमचों को साथ ले गए थे -वहां इन्होनें मोदी की खुलकर आलोचना की थी। बतलादें आपको माननीय नामवर सिंह काशी की गंगा ही संभालेगी आपकी अस्थियों को अंत में। अपने धत कर्मों को छोड़कर अब राम भजो। लोक तो बिगाड़ लिया अब परलोक की चिंता करो -साहित्य सियासत का प्रतिबिम्ब नहीं है जैसा कि आप और आपके प्रेयस चेले मानते हैं।
बहुत बारीक तरह से विद्वेष फैलाते हैं ये राष्ट्र के खिलाफ राष्ट्रीय हितों के खिलाफ मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलाम रक्तरंगी भकुए। धोती फटकार कर बार बार अपनी जांघ दिखाने वाले नामावर संस्कृति मंत्रालय को क्यों यूएन को पत्र लिखो और उसे प्रॉपर चैनल से भेजो अग्रेसित कराके मायनो सोनिया और अबुध कुमार से क्योंकि कर्नाटक में जहां मल्लेशवर कुल्बर्गी मारा गया है वहां कांग्रेस की सरकार है मोदी की नहीं है।
ये जितने इनामात साहित्य अकादमी ने बांटे बहुलांश में इस सेकुलर भट्ट की सिफारिश पर ही बांटे गए थे। कुछ इनके करकमलों द्वारा ही दिए गए थे। इसीलिए ये अर्थ और काम दोनों को साधने वाले साधक पुरुस्कार न लौटाने की बात कह रहे हैं।इन्हें एक और पुरूस्कार ,पुरूस्कार न लौटाने की एवज़ मिलना चाहिए। सम्मलेन करो पुरूस्कार राशि अपने पास रखो भारत सरकार को बदनाम करो -सबसे बड़ा मार्कवादी पुरूस्कार तो यही है।
लिंगायत संतों का निरादर करने वाला यह मार्क्सवादी चेहरा अपनी करनी का शिकार बना है। कृष्ण जब मथुरा पहुँच कर कंस को प्रणाम करते हैं तो वह कहता है भांजे तुम मुझे नहीं मार सकते। बोले कृष्ण मामा तुमने पहली बार पते की बात कही है मैं किसी को नहीं मारता आदमी के कर्म ही उसे मार देते है।
साहित्य को ख़ेमोंमे बांटके काम करने वाले ये खेमापति नामवर पिछले दिनों काशी गए थे दो तीन और चमचों को साथ ले गए थे -वहां इन्होनें मोदी की खुलकर आलोचना की थी। बतलादें आपको माननीय नामवर सिंह काशी की गंगा ही संभालेगी आपकी अस्थियों को अंत में। अपने धत कर्मों को छोड़कर अब राम भजो। लोक तो बिगाड़ लिया अब परलोक की चिंता करो -साहित्य सियासत का प्रतिबिम्ब नहीं है जैसा कि आप और आपके प्रेयस चेले मानते हैं।
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Maithily Gupta और नामवर जी ...
http://www.livehindustan.com/.../article1-The-author...
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