फ़्रांस आतंकी हमलों का नया पसंदीदा ठिकाना बन गया है. विशेषकर, 2015 के शुरू से ही एक के बाद एक हमले ने इस पश्चिमी देश को डराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. आतंकियों का वर्तमान हमला इस साल फ्रांस में होने वाला छठा आतंकी हमला है.
थोड़ा पीछे से चला जाय तो, 7 जनवरी, 2015 को पेरिस में मशहूर व्यंग्य पत्रिका चार्ली ऐब्दो के दफ्तर में हुए आतंकी हमले में 20 लोगों की जान गई थी. तब 'अल्लाहु अकबर' का नारा लगाते हुए कुछ नकाबपोश पत्रिका के दफ्तर में घुसे थे और अंधाधुंध गोलियां चलायी थीं. हमले में चार मुख्य कार्टूनिस्ट और प्रधान संपादक मारे गए थे. इसके बाद 3 फरवरी, 2015 को नाइस में एक यहूदी सामुदायिक केंद्र की रखवाली करते हुए 3 सैनिकों पर हमला हुआ था. फिर 19 अप्रैल को एक अल्जीरियाई यहूदी द्वारा 2 चर्चों पर हमले किए गए, जिसमें 1 महिला की मौत हुई. 26 जून 2015 को फिर से पूर्वी फ्रांस की एक गैस फैक्ट्री में दिनदहाड़े एक इस्लामी हमलावर ने एक व्यक्ति की गला काटकर हत्या कर दी थी. इसके बाद 21 अगस्त 2015 को भारी हथियारों से लैस एक आतंकी ने एम्सटर्डम से पेरिस जा रही एक हाई स्पीड ट्रेन में फायरिंग की, जिससे कम से कम 4 लोग घायल हो गए.
इन तमाम हमलों की सीरीज को देखते हुए आशंका जताई जाने लगी है कि क्या फ़्रांस आतंकियों के लिए आसान शिकार बनता जा रहा है ?? हालाँकि, विश्व भर के कई देश इस तरह की घटनाओं का शिकार बन रहे हैं, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है.
वैश्विक परिदृश्य पर 21वीं सदी की शुरुआत से ही कुछ बड़े बदलाव हुए हैं, जिसने आने वाले समय की रूपरेखा काफी हद तक साफ़ कर दी है. सदी की शुरुआत में ही अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले के पहले दुनिया के बड़े और ताकतवर देश आतंकवाद को काफी हलके में लेते थे और जब भारत जैसे देश इसका शिकार होते थे तब उनका भाव काफी हद तक 'उपहास' का रहता था. इससे भी आगे बढ़कर कहा जाय तो कई देश इसको अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का एक मोहरा मानने में भी संकोच नहीं करते थे और राजनीतिक बिसात पर इसका प्रयोग खुलकर एक-दुसरे के खिलाफ करते थे. संयोग देखिये छोटे-बड़े देशों से आतंक का रास्ता गुजरता हुआ बड़े और मजबूत माने जाने वाले देशों तक पहुँच गया है, और न सिर्फ पहुँच गया है, बल्कि दुनिया को दहला सकने की हद तक जड़ भी जमा चुका है. अमेरिका ने जिस शिद्दत से ओसामा बिन लादेन को मार गिराया, काश वैसी ही शिद्दत वह हाफिज सईद, दाऊद इब्राहिम और दुसरे आतंकियों के प्रति दिखाता!
आतंकी घटनाओं की इस कड़ी में फ्रांस की राजधानी पेरिस पर हुए एक बड़े आतंकी हमले में कम से कम 140 लोगों के मारे जाने और 55 लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की जो खबर आ रही है, उसने समूची मानवता को एक बार फिर दहला दिया है. आतंकी संगठन आईएस (ISIS) ने इन हमलों की जिम्मेदारी ले ली है. कई आतंकियों के भी मारे जाने की खबर है, किन्तु उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि इसी आईएस को समाप्त करने के लिए विश्व के तमाम देश गुटबाजी में क्यों उलझ कर रह गए हैं? रूस, सीरिया में आईएस के ठिकानों को नष्ट कर रहा है तो अमेरिका सहित दुसरे पश्चिमी देश इसका पुरजोर विरोध करने में लगे हैं!
सवाल यह नहीं है कि सीरियाई राष्ट्रपति हटें या रहें, बल्कि इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस खूंखार आतंकी संगठन पर भी वैश्विक बिरादरी एक नहीं है! आज बड़ी शिद्दत से अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रांस के साथ खड़े होने का अहसास दिला रहे हैं, किन्तु सवाल वही है कि पूरा विश्व आतंक के खिलाफ एकजुट क्यों नहीं होता है? पाकिस्तान के जनरल और राष्ट्रपति रहे परवेज मुशर्रफ खुलेआम यह स्वीकारोक्ति करते हैं कि उनके देश के हीरो हाफिज सईद और लादेन रहे हैं, इसके बावजूद पाकिस्तान जैसे देश को हथियार दिए जाते हैं, उससे परमाणु समझौता करने की गुंजाइशें खोजी जाती हैं तो यह शर्मनाक ही नहीं, खतरनाक भी है. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पेरिस में हुए घातक आतंकवादी हमलों की निंदा करते हुए कहा कि यह केवल फ्रांस ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता और सार्वभौमिक मूल्यों पर हमला है. इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को न्याय के दायरे में लाने के लिए फ्रांस के साथ मिलकर काम करने का संकल्प जताया.
पर ओबामा जी, पूरे विश्व के प्रति आपको यह दर्द क्यों नहीं होता है? मुंबई में जिन आतंकियों ने हमला किया, क्या उनके बारे में आपका देश नहीं जानता है? क्या आपकी इतनी भी हैसियत नहीं कि पाकिस्तान को आतंक से अलग कर सकें? तो फिर झूठमूठ का दिखावा करना छोड़िये और अपने विकसित मित्रों की चिंता कीजिये! क्योंकि, अपनी तो जैसे-तैसे कट जाएगी, आप जैसों का क्या होगा... !!
पूरे विश्व से फ़्रांस हमले पर तीखी प्रतिक्रियाएं आयी हैं, जिसमें इस कायरतापूर्ण कृत्य की कठोर निंदा की गयी है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर लिखा है, 'पेरिस से आ रही खबर दर्दनाक और दुखद है. मारे गए लोगों के साथ हमारी संवेदनाएं हैं. इस घड़ी में हम पेरिस के लोगों के साथ हैं.' ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ट्वीट किया है, 'पेरिस में आज हुई घटना से मैं स्तब्ध हूं. हम लोग पूरी तरह से फ्रांस के लोगों के साथ हैं. हमसे जो भी मदद हो सकेगी, हम करेंगे.' संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने इस हमले को बर्बर करार दिया और कहा कि इस घड़ी में पूरी दुनिया फ्रांस के साथ खड़ी है. संयोग देखिये, ब्रिटेन यात्रा पर गए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वेम्बली स्टेडियम में अपने सम्बोधन में कहा कि भारत की धरती से निकली सुफी परंपरा अगर बलवान हुई होती तो, इस्लाम में हाथ में बंदुक लेने का विचार नहीं आता!
चर्चित इतिहासकार इरफान हबीब ने भी पेरिस हमलों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए वहाबी इस्लाम को आतंकवाद का उद्गम बताया. हबीब ने कहा, 'वहाबी इस्लाम आतंकवाद का उद्गम है, मैंने इसके बारे में लिखा भी है. सबसे पहले पश्चिम को ये बात माननी होगी.'
इन तमाम बातों को जोड़कर देखा जाय तो यह बात साफ़ है कि इस्लाम को लेकर वैश्विक समुदाय को एक स्वस्थ नजरिया विकसित करने की आवश्यकता है, जिसका सुझाव हमारे प्रधानमंत्री ने वेम्ब्ली स्टेडियम में दिया है.
देखना दिलचस्प होगा कि आतंकवाद और सहिष्णुता को अलग-अलग चश्मे से देखने वाला पश्चिम इस फ़्रांस-त्रासदी से कुछ सबक सीखता है या नहीं!
अगर सच में विकसित देश आतंकी हमलों को नियंत्रित करना चाहते हैं तो उनको वगैर किसी भेदभाव के समूचे विश्व में आतंकियों की नकेल कसने का कार्य करना चाहिए. आखिर, संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाएं किस दिन काम आएँगी? क्या सिर्फ महासभा में बैठकर आतंकवाद पर दो शब्द बोल देना पर्याप्त है? आज फ़्रांस में हुए हमले पर घड़ियाली आंसू बहाने वालों को समझना ही पड़ेगा कि भारत इस तरह के हमलों का दशकों से शिकार रहा है और अगर आतंक की नब्ज़ काटनी है तो पाकिस्तान की नब्ज़ दबानी ही होगी जो छुपकर और खुलेआम आतंकियों को मदद करता है. अगर किसी को शक हो तो उसका पूरा इतिहास उठाकर देख ले! विश्व समुदाय को चाहिए कि फ़्रांस हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने से आगे बढ़कर कदम उठाए, अन्यथा ... !!
ॐ शांति, शांति, शांति.
- जागृति गुप्ता
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