हमारे शाश्त्रों में सीख दी गई है किसी ईमानदार व्यक्ति के साथ देर तक मखौल करना उसका मज़ाक उड़ाना ,ऐसा करने वाले की गंभीर क्षति का कारण बनता है। भागवदपुराण के ग्यारहवें स्कंध में कथा है कैसे यदुवंश का विनाश हुआ। नारद के नेतृत्व में जब भगवान के वैकुण्ठ लौटने से पहले विश्वामित्र ,अत्रि ,आंगिरस,वशिष्ठ ,दुर्वासा ,भृगु वर्तमान गुजरात के क्षेत्र पिण्डारका में सर्वजन हिताय यज्ञ कर रहे थे।
यदुवंश के लौंडे लपारे भी वहां पहुँच गए। जांबवती(कृष्णा की एक रानी ) के पुत्र साम्बा को इन्होनें एक गर्भवती महिला के रूप में ऋषियों के सामने प्रस्तुत करते हुए पूछा -हे परमपावन अच्युत ऋषियों ये श्याम नेत्रों वाली गर्भणी संकोचवश आपसे पूछ नहीं पा रही है ,ये पुत्र प्राप्ति की कामना लगाए हुए है। कृपया बतलाएं इसे पुत्र प्राप्त होगा या महालक्ष्मी।
ऋषियों ने इनकी घटिया स्तर की हंसी ठिठोली से कुपित होकर शाप दिया -इसे मूसल पैदा होगा। अब जब इन उदंड मूढ़मति छोकरों ने साम्बा का पेट उघाड़ा तो वहां मूसल देख के इनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई । घबरा के द्वारका के राजा उग्रसेन को सारा वृत्तांत सुनाया।
राजा ऋषियों की अमोघ शक्ति से घबरा गया। एक ही युक्ति सुझायी -इस मूसल को कूटपीसकर चूरा बनाके समुन्दर के हवाले कर दिया जाए। ऐसा ही किया गया लेकिन एक टुकड़ा जो बिना पिसा रह गया था उसे एक मछली निगल गई।
सारा लोह चूर्ण लहरों ने किनारे पे ला पटका जो पानी में घुल नहीं सकता था ,जो देखते ही देखते लम्बी घास में तब्दील हो गया। ये घास क्या धारदार नुकीले अश्त्र थे। जो यदुवंश के विनाश का कारण बने।
शराब पीकर नशे में धुत्त यदुवंशियों ने इन्हीं का शस्त्र रूप में इस्तेमाल किया था।
स्वयं भगवान कृष्ण उस शिकारी (आखेटक )के हाथों मारे गए जिसके हाथ वह मछली लगी थी जो लौह का बिना पिसा अंश निगल गई थी। उससे ही उसने एक धारदार तीर तैयार किया था। यह कथा सबको पता है -कैसे भगवान कृष्ण एक वृक्ष के नीचे पीताम्बर पहने बैठे थे -बहेलिया को उनकी जंघा में हिरन की आँखें दिखलाई दीं थी और उसने तीर चला दिया। भगवान कृष्ण ने क्योंकि मनुष्य रूप अवतार लिया था सो उन्हें मनुष्य की मौत ही मरना था।
खुद भगवान ने गांधारी का मन बदला था जिसने भगावन को शाप दिया था -वंशहीन होकर मरने का।
कथा का सार और सीख यही है किसी भी व्यक्ति को अपनी विजय का बढ़चढ़कर बखान नहीं करना चाहिए। किसी ईमानदार व्यक्ति का बढ़चढ़ कर मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए। आज बिहार में विजयश्री के उन्माद में यही हो रहा है।
कोई ये न सोचे मैं भगवान (सत्ता )के बहुत नज़दीक हूँ। यहां कुछ भी थिर नहीं है।
यदुवंश के लौंडे लपारे भी वहां पहुँच गए। जांबवती(कृष्णा की एक रानी ) के पुत्र साम्बा को इन्होनें एक गर्भवती महिला के रूप में ऋषियों के सामने प्रस्तुत करते हुए पूछा -हे परमपावन अच्युत ऋषियों ये श्याम नेत्रों वाली गर्भणी संकोचवश आपसे पूछ नहीं पा रही है ,ये पुत्र प्राप्ति की कामना लगाए हुए है। कृपया बतलाएं इसे पुत्र प्राप्त होगा या महालक्ष्मी।
ऋषियों ने इनकी घटिया स्तर की हंसी ठिठोली से कुपित होकर शाप दिया -इसे मूसल पैदा होगा। अब जब इन उदंड मूढ़मति छोकरों ने साम्बा का पेट उघाड़ा तो वहां मूसल देख के इनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई । घबरा के द्वारका के राजा उग्रसेन को सारा वृत्तांत सुनाया।
राजा ऋषियों की अमोघ शक्ति से घबरा गया। एक ही युक्ति सुझायी -इस मूसल को कूटपीसकर चूरा बनाके समुन्दर के हवाले कर दिया जाए। ऐसा ही किया गया लेकिन एक टुकड़ा जो बिना पिसा रह गया था उसे एक मछली निगल गई।
सारा लोह चूर्ण लहरों ने किनारे पे ला पटका जो पानी में घुल नहीं सकता था ,जो देखते ही देखते लम्बी घास में तब्दील हो गया। ये घास क्या धारदार नुकीले अश्त्र थे। जो यदुवंश के विनाश का कारण बने।
शराब पीकर नशे में धुत्त यदुवंशियों ने इन्हीं का शस्त्र रूप में इस्तेमाल किया था।
स्वयं भगवान कृष्ण उस शिकारी (आखेटक )के हाथों मारे गए जिसके हाथ वह मछली लगी थी जो लौह का बिना पिसा अंश निगल गई थी। उससे ही उसने एक धारदार तीर तैयार किया था। यह कथा सबको पता है -कैसे भगवान कृष्ण एक वृक्ष के नीचे पीताम्बर पहने बैठे थे -बहेलिया को उनकी जंघा में हिरन की आँखें दिखलाई दीं थी और उसने तीर चला दिया। भगवान कृष्ण ने क्योंकि मनुष्य रूप अवतार लिया था सो उन्हें मनुष्य की मौत ही मरना था।
खुद भगवान ने गांधारी का मन बदला था जिसने भगावन को शाप दिया था -वंशहीन होकर मरने का।
कथा का सार और सीख यही है किसी भी व्यक्ति को अपनी विजय का बढ़चढ़कर बखान नहीं करना चाहिए। किसी ईमानदार व्यक्ति का बढ़चढ़ कर मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए। आज बिहार में विजयश्री के उन्माद में यही हो रहा है।
कोई ये न सोचे मैं भगवान (सत्ता )के बहुत नज़दीक हूँ। यहां कुछ भी थिर नहीं है।
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