कुछ लोग दंगों को भी प्रायोजित करते हैं। ऐसा लगता है कि वे देश की बदनामी करने में ही देश की सेवा देखते हैं। ऐसे राष्ट्र विरोधी कार्यों में अपनी क्षमता को बर्बाद करने वाले ये सेकुलरिस्ट्स मज़हबी सोच के मार्क्सवादी बौद्धिक अपने आपको देश से ऊंचा मानते हैं। वे सोचते हैं बदनाम तो देश होगा हमारी तो महिमा बढ़ेगी। इसलिए भारत भाव के प्रतीक बन चुके प्रधानमन्त्री मोदी के विरुद्ध जितना विष वमन किया जाए देश के स्नायुमंडल को जितना उत्तेजित किया जा सके उतना अच्छा है। हमें भारत नहीं इंडिया चाहिए जो किसी गौरव बोध को नहीं जगाता। हम देश में रहते हैं क्या ये कम एहसान किया है हमने भारत पर। हमारी वजह से तो सेकुलर इंडिया ज़िंदा है। वे भारत को ध्वस्त कर सेकुलर इंडिया की सेवा कर रहे हैं। और यही पाखंड वे जारी रखे हुए हैं।
फिर चाहे स्थान अलीगढ़ हो या कानपुर। कुछ न कुछ तो होना चाहिए खासकर तब जब प्रधान मंत्री विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले वक्तव्य दे रहे हैं। बी बी सी को इस बात का संतोष होना चाहिए कि भारत विरोध की उसकी नीति को इंडिया के सेकुलरिस्टों ने हाथों हाथ लिया है। इसलिए कोई पाकिस्तान में जाकर वहां की सेना के बहादुरी की तारीफ़ कर रहा है। कोई भारत को बदनाम करने के लिए तनाव की बातें फैला रहा है। कोई अ -सहिषुणता की बात कर रहा है। ताकि विदेशी प्रेस में ये सवाल तो उठाये जा सकें। बहुत तो ऐसे हैं जिनके लिए विदेशी प्रेस के प्रश्न उनकी भारत विरोध की नीति का प्रसार करके उनकी शोहरत बढ़ा रहे हैं।
जिस देश में आज़म खान जैसे लोग हों उसे पाकिस्तान की कहां ज़रुरत है। पाकिस्तान तो फिर भी साफ़ दो टूक बात करता है ये उसमें असहिषुणता का कालकूट विष मिला के कानूनी मामलों में भी दखल -अंदाज़ी करते हैं। एक खान दूसरे खान की हिमायत में निकल आता है रास्ते में एक अल्वी राशिद भी उसमें शामिल हो जाता है। फॉरिन एक्सचेंज मेंटेनेंस एक्ट के तहत आप किसी विदेशी कम्पनी को देश में उसके मूल्य से काम में नहीं बेच सकते। आशंका है शाहरुख खान ने यही किया है। वह मामले को निपटाना भी चाहते हैं लेकिन ये आज़म खान उनकी हिमायत में निकल आते हैं जैसे कह रहे हों एक अलग एन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट चाहिए ताकि खानों के साथ इस देश में न्याय हो सके।
दूसरे मुंह से ये हिन्दू मंदिरों और चर्चों को बड़े पैमाने पर ध्वस्त करने वाले टीपू सुलतान की हिमायत में निकल आते हैं यह कहते हुए कि प्रधानमन्त्री टीपू सुलतान की अंगूठी का हीरा वापस ले आएं उस पर राम नाम की नक्कासी की हुई है।सेकुलर हल्ला मचाने के लिए ये राम का नाम भी लेंगें ज़रुरत पड़ी तो अपने घर में आग भी लगा लेंगे।
तर्क है टीपू अंग्रेज़ों से लड़ा था। तो क्या बिना लड़े वह अपनी सल्तनत बेगम टीपू समेत अंग्रेज़ों को सौंप देता है। कैसा बे हूदा तर्क करते हैं ये बौद्धिक भकुए । एक कलहकार जो पूर्व में फिल इंस्टीट्यट पुणे की शोभा भी बढ़ा चुका है कहता है टीपू यदि महाराष्ट्र में पैदा होता तो शिवाजी का दर्ज़ा पा जाता।
इरफ़ान हबीब से कहके एक इतिहास और लिखवा दो।
फिर चाहे स्थान अलीगढ़ हो या कानपुर। कुछ न कुछ तो होना चाहिए खासकर तब जब प्रधान मंत्री विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले वक्तव्य दे रहे हैं। बी बी सी को इस बात का संतोष होना चाहिए कि भारत विरोध की उसकी नीति को इंडिया के सेकुलरिस्टों ने हाथों हाथ लिया है। इसलिए कोई पाकिस्तान में जाकर वहां की सेना के बहादुरी की तारीफ़ कर रहा है। कोई भारत को बदनाम करने के लिए तनाव की बातें फैला रहा है। कोई अ -सहिषुणता की बात कर रहा है। ताकि विदेशी प्रेस में ये सवाल तो उठाये जा सकें। बहुत तो ऐसे हैं जिनके लिए विदेशी प्रेस के प्रश्न उनकी भारत विरोध की नीति का प्रसार करके उनकी शोहरत बढ़ा रहे हैं।
जिस देश में आज़म खान जैसे लोग हों उसे पाकिस्तान की कहां ज़रुरत है। पाकिस्तान तो फिर भी साफ़ दो टूक बात करता है ये उसमें असहिषुणता का कालकूट विष मिला के कानूनी मामलों में भी दखल -अंदाज़ी करते हैं। एक खान दूसरे खान की हिमायत में निकल आता है रास्ते में एक अल्वी राशिद भी उसमें शामिल हो जाता है। फॉरिन एक्सचेंज मेंटेनेंस एक्ट के तहत आप किसी विदेशी कम्पनी को देश में उसके मूल्य से काम में नहीं बेच सकते। आशंका है शाहरुख खान ने यही किया है। वह मामले को निपटाना भी चाहते हैं लेकिन ये आज़म खान उनकी हिमायत में निकल आते हैं जैसे कह रहे हों एक अलग एन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट चाहिए ताकि खानों के साथ इस देश में न्याय हो सके।
दूसरे मुंह से ये हिन्दू मंदिरों और चर्चों को बड़े पैमाने पर ध्वस्त करने वाले टीपू सुलतान की हिमायत में निकल आते हैं यह कहते हुए कि प्रधानमन्त्री टीपू सुलतान की अंगूठी का हीरा वापस ले आएं उस पर राम नाम की नक्कासी की हुई है।सेकुलर हल्ला मचाने के लिए ये राम का नाम भी लेंगें ज़रुरत पड़ी तो अपने घर में आग भी लगा लेंगे।
तर्क है टीपू अंग्रेज़ों से लड़ा था। तो क्या बिना लड़े वह अपनी सल्तनत बेगम टीपू समेत अंग्रेज़ों को सौंप देता है। कैसा बे हूदा तर्क करते हैं ये बौद्धिक भकुए । एक कलहकार जो पूर्व में फिल इंस्टीट्यट पुणे की शोभा भी बढ़ा चुका है कहता है टीपू यदि महाराष्ट्र में पैदा होता तो शिवाजी का दर्ज़ा पा जाता।
इरफ़ान हबीब से कहके एक इतिहास और लिखवा दो।
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