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इस दौर में कई विषमुख उन लौटंक साहित्यकारों को प्रमाण पत्र दे रहे हैं जो कब के अपनी लौटंकी करके अपने अपने दड़बों में प्रवेश ले चुके हैं।
गौतम बुद्ध के समय भी ऐसे कई कुक्कर वृत्तिक और गोवृत्तिक लोग थे ,जो तरह तरह के भ्रमों से ग्रसित थे। आज आप इन्हें साहित्यकार और कलहकार (कलाकार )का दर्ज़ा दे रहे हैं।
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