तो मिस्टर खड़गे ने पूरी लोकसभा को धमकाते हुए जो कहा कि यदि संविधान में बदलाव किये गए तो रक्तपात हो जाएगा
नरेंद्र दामोदर मोदी ने २६ नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने की पहल करके अपने जीवन के सारल्य और पवित्रता का परिचय दिया है। यह काम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने लगभग छः दशक के शासन काल में भी करने का न सोच सकी। ऐसा उसने इसलिए नहीं किया ताकि जनता अपने बुनियादी अधिकारों के प्रति खबरदार न हो सके।
आज जब आईएनसी की वर्तमान अध्यक्षा लोकसभा में अपनी मुस्कराहट से मोहिनी छवि बिखेर रहीं थीं तो बदन में सिरहन सी दौड़ गई ,रोम खड़े हो गए। संविधान भी डर गया होगा कि ज़रूर ये लोमड़िया की तरह ऊँगली नचाने वाली मायनो सोनिया नया षड्यंत्र रच रही है। जब पवित्र दिवस (संविधान दिवस )पर चर्चा हो तो मायनो कांग्रेस को नज़र नीची करके बात करनी चाहिए।
यही वह पार्टी है जिसने संविधान का इस्तेमाल कुर्सी हासिल करने के लिए किया। और फिर उसे ही गद्दी बनाकर कुर्सी पे बिछाकर बैठ गई। १९७५ को कौन भूल सकता है जब इनकी सासू माँ ने पच्चीस जून १९७५ को लोगों का जीने का अधिकार भी छीनकर इमर्जन्सी लाद दी देश पर। संविधान को बंधक बना लिया। इसी दौरान दुष्यंत कुमार ने लिखा था -
कहाँ तो तय था चरागाँ हरेक घर के लिए ,
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहां से चलो और उम्र भर के लिए।
यही वह दौर था जब उन्होंने लिखा -
मत कहो आकाश पर कोहरा घना है ,
यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है।
आज वही कांग्रेस पवित्र दिवस पर अभिव्यक्ति की आज़ादी की बाद करती है। अ -सहिष्णु बतलाती है भारत धर्मी समाज को। जैसे मेघ की रिमझिम सुनके मोर नाचता है वैसी ही अपनी देहमुद्रा बनाके मुस्काती। उसे सिर नीचे झुका करके बात करनी चाहिए। कांग्रेस में कोई भी वक्तव्य मायनो की सहमति के बिना नहीं दिया जा सकता। तो मिस्टर खड़गे ने पूरी लोकसभा को धमकाते हुए जो कहा कि यदि संविधान में बदलाव किये गए तो रक्तपात हो जाएगा। लोकसभा के पटल पर ऐसा कहना , ये साबित करता है कि कांग्रेस अध्यक्षा मायनो शायद देश में रक्त पात करवाने की योजना बना चुकी है। वरना खड़गे की क्या हिम्मत थी कि वह पूरी संसद को हड़काए और रक्तपात की धमकी दे।
https://en.wikipedia.org/wiki/The_Emergency_(India)
आज जब आईएनसी की वर्तमान अध्यक्षा लोकसभा में अपनी मुस्कराहट से मोहिनी छवि बिखेर रहीं थीं तो बदन में सिरहन सी दौड़ गई ,रोम खड़े हो गए। संविधान भी डर गया होगा कि ज़रूर ये लोमड़िया की तरह ऊँगली नचाने वाली मायनो सोनिया नया षड्यंत्र रच रही है। जब पवित्र दिवस (संविधान दिवस )पर चर्चा हो तो मायनो कांग्रेस को नज़र नीची करके बात करनी चाहिए।
यही वह पार्टी है जिसने संविधान का इस्तेमाल कुर्सी हासिल करने के लिए किया। और फिर उसे ही गद्दी बनाकर कुर्सी पे बिछाकर बैठ गई। १९७५ को कौन भूल सकता है जब इनकी सासू माँ ने पच्चीस जून १९७५ को लोगों का जीने का अधिकार भी छीनकर इमर्जन्सी लाद दी देश पर। संविधान को बंधक बना लिया। इसी दौरान दुष्यंत कुमार ने लिखा था -
कहाँ तो तय था चरागाँ हरेक घर के लिए ,
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहां से चलो और उम्र भर के लिए।
यही वह दौर था जब उन्होंने लिखा -
मत कहो आकाश पर कोहरा घना है ,
यह किसी की व्यक्ति गत आलोचना है।
आज वही कांग्रेस पवित्र दिवस पर अभिव्यक्ति की आज़ादी की बाद करती है। अ -सहिष्णु बतलाती है भारत धर्मी समाज को। जैसे मेघ की रिमझिम सुनके मोर नाचता है वैसी ही अपनी देहमुद्रा बनाके मुस्काती। उसे सिर नीचे झुका करके बात करनी चाहिए। कांग्रेस में कोई भी वक्तव्य मायनो की सहमति के बिना नहीं दिया जा सकता। तो मिस्टर खड़गे ने पूरी लोकसभा को धमकाते हुए जो कहा कि यदि संविधान में बदलाव किये गए तो रक्तपात हो जाएगा। लोकसभा के पटल पर ऐसा कहना , ये साबित करता है कि कांग्रेस अध्यक्षा मायनो शायद देश में रक्त पात करवाने की योजना बना चुकी है। वरना खड़गे की क्या हिम्मत थी कि वह पूरी संसद को हड़काए और रक्तपात की धमकी दे।
https://en.wikipedia.org/wiki/The_Emergency_(India)
Constitution of India - Wikipedia, the free encyclopedia
https://en.wikipedia.org/wiki/Constitution_of_India
Parliament cannot override the constitution. The Constitution was adopted by the Constituent Assembly on 26 November 1949, and came into effect on 26 ...
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