माननीय सुधीर चौधरी भाई (ज़ीन्यूज़ ) ,
आप टुकड़खोर ,चाटुकार , साहित्य से अर्थार्जन करने वाले लौटंक साहित्यिक कलहकारों ,चंद बोलीवुडिया कलहकार खानों के व्यवहार की संवेदन हीनता से आहत न हों। कश्मीर का दर्द इनकी संवेदनाओं का वायस नहीं हो सकता। ये इस या उस राजनीति के भड़बूज़ों के पाले हुए हैं। आप सोचते हैं आमिर खान के अंदर ऐंठन उनकी अपनी है। पूरा दगैल तंत्र है इनके पीछे जो देश की सम्पदा को लूट रहा था। कभी नेशनल हेराल्ड के बहाने कभी कोई विदेशी कम्पनी से मुनाफ़ा बटोरने के बहाने। इस्केम तो इनका पेशा था।
इस देश का सहिष्णु मन अब नंगों को नंगा कहना सीख गया है। आज वो विरक्त भाव से ये नहीं कहता -कोई नृप होय हमें का हानि। वह आशावान है एक दगैल तंत्र से मुक्ति के बाद।
राजनीति से विमुख युवा भीड़ भी आज खबरदार है। बैंगलुरु में शहजादे को अपना कद पता चल गया होगा।देश को प्रधानमन्त्री मिलगया है जो आर्त भाव से नहीं बराबरी के भाव से संवाद करता है। विदेशी निवेश का भारत की और बहाव हमारे अनिवासी भारतीयों को भी भारत की और खींचेगा। अभी तक तो ऐसे हालात ही न थे कि दगैल तंत्र के बीच कोई आने का भी सोच सके। जबकि कितने ही वापस आना चाःते हैं। एक स्वच्छ तंत्र चाहिए सबसे पहले जिसकी नींव अब तैयार है।
जैश्रीकृष्णा।
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